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भारत ने उइगर मूसलमानों के मामले में चीन के खिलाफ वोटिंग क्यों नहीं की?

Ram Gopal Jat
भारत और चीन के बीच दुश्मनी दशकों पुरानी है। चीन हमेशा से ही भारत के खिलाफ गतिविधियां करता रहता है, चाहे सीमा पर घुसपेठ हो गया डिजीटल घुसपेठ हो, हर जगह चीन के द्वारा भारत को कमजोर करने के प्रयास किये जाते रहे हैं, लेकिन भारत फिर भी पडोसी का धर्म निभाते हुये उसके साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाता रहा है। तमाम विरोधाभाष के बीच भारत ने एक बार फिर से चीन के साथ मित्रता शुरू करने का प्रयास किया है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में चीन के शिनजियांग प्रांत में मानवाधिकारों पर बहस को लेकर लाये गये मसौदा प्रस्ताव के मामले में भारत ने चीन के खिलाफ वोटिंग करने से इनकार कर दिया है। पश्चिमी देशों की तरफ से लाए गए इस प्रस्ताव पर बहस के लिए एक ओर जहां 17 देश सहमत हुए, तो वहीं 19 से इनकार कर दिया। साथ ही भारत समेत 11 देश ऐसे भी थे, जिन्होंने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र में मानवाधिकार पर चीन के खिलाफ जाने से इनकार करने में उन देशों का नाम शामिल है, जो भारत में इस मुद्दे को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। आखिर क्या वजह रही है कि भारत ने इस मुद्दे पर चीन के खिलाफ वोट नहीं दिया है? सारे मामले को समझेंगे, लेकिन उससे पहले यह जान लेते हैं कि किन देशों ने इसका विरोध किया, कौन समर्थन में रहा और कौन से देश अनुपस्थित रहकर बच निकले हैं?
जिस समूह की तरफ से यह मसौदा लाया गया था। उनमें कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आईलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, ब्रिटेन और अमेरिका का नाम शामिल है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया और लिथुआनिया भी इन देशों की सूची में शामिल रहे। ये सभी देश चीन को घेरने जा रहे थे। बोलिविया, कैमरून, चीन, क्यूबा, गैबोन, इंडोनेशिया, कजकस्तान, मॉरिशियाना, नामीबिया, नेपाल, पाकिस्तान, कतर, सेनेगल, सुडान, संयुक्त अरब अमीरात, उज्बेकिस्तान, वेनेजुएला ने विरोध में वोट दिया है। जबकि चेकिया, फ्रांस, जर्मनी, होंडुरस, जापान, लिथुआनिया, लक्समबर्ग, मार्शल आईलैंड्स, मोंटेनेग्रो, नीदरलैंड्स, पैराग्वे, पोलैंड, कोरिया गणराज्य, सोमालिया समर्थन में मतदान किया है। इसके साथ ही अर्जेंटीना, आर्मेनिया, बेनिन, ब्राजील, गाम्बिया, भारत, लीबिया, मलावी, मलेशिया, मैक्सिको, यूक्रेन इस वोटिंग से अनुपस्थित रहे हैं। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून में जनवरी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने जेनोसाइड वॉच की तरफ से भारत में मुसलमानों के मारे जाने को लेकर जारी चेतावनी का समर्थन किया था, जो कि वह हमेशा करता रहता है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का कहना था कि यह गंभीर चेतावनी नरसंहार के 10 चरणों के साइंटिफिक मॉडल से निकाले गए डेटा के आधार पर थी। विदेश मंत्रालय के तत्कालीन प्रवक्ता असीम इफ्तिखार ने कहा था कि इस मॉडल के अनुसार भारत ने सभी 10 चरणों को पार कर लिया। साथ ही पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने भारत में रहने वाली मुसलमानों की 20 करोड़ से ज्यादा आबादी की सुरक्षा पर चिंता जाहिर की थी।
इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा की तरफ से की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर कई इस्लामिक देशों ने आपत्ति जाहिर की थी। पैगंबर के खिलाफ की गई कथित टिप्पणी को लेकर भारत को चेतावनी देने वालों में ईरान, कुवैत और कतर का नाम भी शामिल है। इन देशों ने भारत के सामने औपचारिक रूप से शिकायत दर्ज कराई थी। दुनिया के 57 देशों के समूह ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोपरेशन ने भारत से इस्लाम के प्रति बढ़ती नफरत, अपमान और भारतीय मुसलमानों के खिलाफ व्यवस्थित प्रथाओं को रोकने का आह्वान किया था। अगस्त में मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त मिशेल बैशलेट की एक रिपोर्ट जारी करते हुये चीन के शिनजियांग में उइगर मुसलमानों के हाल पर चिंता जाहिर की थी। खबरें ये भी आई थीं कि बीजिंग की तरफ से रिपोर्ट को रोकने की कोशिशें भी की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि चीनी सरकार की तरफ से किए जा रहे उत्पीड़न मानवता के खिलाफ अपराध के बराबर हो सकते हैं। इसमें जबरन हिरासत, बलात्कार, यातना, जबरन मजदूरी समेत कई बातों का भी जिक्र किया गया था।
अब यह समझना जरुरी है कि आखिर भारत में भाजपा के नेता चीन को लेकर उइगर मुसलमानों की खिलाफत करते हैं, लेकिन ऐसा क्या कारण है कि चीन खिलाफ लाये गये प्रस्ताव में भारत वोटिंग करने इनकार कर दिया है? क्या भारत इस प्रस्ताव की वोटिंग से बचकर चीन को मित्रता का प्रस्ताव दे रहा है? क्या भारत ने इस मामले में अमेरिका समेत यूरोप को एक बार फिर से अपनी ताकत का अहसास करवाया है? क्यों चीन के प्रति भारत का रुख बदल गया है? इसके कई कारण हो सकते हैं। इन्हीं कारणों में से कुछ पर चर्चा कर समझने का प्रयास करेंगे कि आखिर क्या वजह है, जिसके चलते भारत ने चीन का परोक्ष रुप से बचाव किया है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि आप दोस्त बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं बदल सकते, इसलिये विकास करना है तो हमेशा पडोसियों के साथ मित्रवत संबंध होने चाहिये। प्रधानमंत्री वाजपेयी के कहे कथन पर ही भारत चल रहा है। हालांकि, पाकिस्तान को बार—बार समझाने के बाद भी जब वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो उससे संबंध समाप्त कर गहरी चोट दी गई है, लेकिन इस मामले में चीन का मामला अलग है।
भारत और चीन के बीच गहरे कारोबारी संबंध हैं। आज की तारीख में यदि भारत और चीन का व्यापार बंद हो जाये तो दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात लगेगा। भारत ने पिछले साल ही चीन से करीब 80 अरब डॉलर के उत्पाद आयात किये थे, जबकि करीब 28 करोड डॉलर का निर्यात किया था। भारत में इलेक्ट्रोनिक आइटम मुख्यत: चीन से आयात किये जाते हैं। इसी तरह से सस्ते मोबाइल भी खूब आयात किये जाते हैं। इसी तरह से भारत के भी कई उत्पाद चीन को निर्यात किये जाते हैं।
भारत और चीन के बीच हमेशा से ही सीमा विवाद रहा है। पिछले कुछ सालों में डोकलाम और लद्दाख में चीन की घुसपेठ की कोशिशों के बाद भारत ने कड़ा रुख दिखाया है, लेकिन पाकिस्तान और चीन में बहुत बड़ा अंतर है। पाकिस्तान को भारत हरा भी सकता है और कारोबारी चोट भी कर सकता है, लेकिन चीन को सैनिक युद्ध में हराना इस वक्त भारत के बस की बात नहीं है। साथ ही कारोबार बंद कर देश को आर्थिक तौर पर कमजोर भी नहीं किया जा सकता है। इसलिये भारत की नीति चीन के साथ बदल जाती है। भारत कई बार चीन को समझाने और मित्रता बनाये रखने के प्रयास कर चुका है। अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खूब प्रयास किये थे, लेकिन वह हमेशा पीठ में छुरा घोंपने के लिये कुख्यात है।
फिर भी भारत ने हमेशा चीन को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि भारत अब भी चीन के साथ मैत्री संबंध बनाये रखना चाहता है। हालांकि, पिछले तीन साल से भारत ने चीन के साथ राजनेयिक संबंध खत्म कर लिये हैं। पिछले दिनों जब चीन के विदेश मंत्री वांग भारत आये थे, तब भी उनसे केवल भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ही मिले थे, जबकि चीन के विदेश मंत्री वांग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलना चाहते थे। पीएम मोदी ने उनसे मिलने में कोई रुचि नहीं दिखाई, जबकि उसी दौरान रूस के विदेश मंत्री लावरोव भारत आये तो ना केवल विदेश मंत्री जयशंकर उनसे मिले, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी भी उनसे मिले थे। इससे साफ है कि भारत ने चीन को बिलकुल स्पष्ट कर दिया है कि जब​ तक चीन के द्वारा सीमा विवाद खत्म नहीं किया जायेगा, तब तक भारत की तरफ से कोई राजनेतिक रिश्ते नहीं रखे जायेंगे। चीन का चाहता है कि सीमा विवाद के जरिये भारत पर दबाव भी बनाया जाये और साथ ही कारोबारी रिश्तों को भी बनाये रखा जाये, जो भारत को मंजूर नहीं है।
हालांकि, उइगर मूसलमानों की बात की जाये तो शिंजयांग प्रांत में उनपर चीनी सरकार द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों की खबरें कई बार सामने आ चुकी हैं, लेकिन क्योंकि चीन अपने देश की खबरों का आइसोलेट करके रखता है, इसलिये पूरी सच्चाई बाहर नहीं आ पाती हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि मुसलमानों को दाढ़ी रखने, पायजामा पहनने, महिलाओं को बुर्का पहनने, मस्जिदों में नमाज पढ़ने तक पर रोक है। साथ ही उनको सरिया कानून के अनुसार शादी विवाह करने पर भी पूर्ण प्रतिबंध है। तलाक लेने का अधिकार भी नहीं है। इसी तरह से सरकार के कहे अनुसार नहीं चलने पर उनको जेलों में डाल दिया जाता है, जिनकी सुनने वाला कोई नहीं होता है। इस तरह के अत्याचारों के बाद भी क्या कारण है कि भारत ने चीन के खिलाफ वोटिंग नहीं की?
विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिमी देशों की ओर से लाये गये प्रस्ताव भेदभाव पूर्ण थे, जिनके जरिये ये देश चीन को वैश्विक स्तर पर बदनाम करना चाहते थे, लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि पिछले सात आठ महीनों से अमेरिका व यूरोप के कहे अनुसार भारत के नहीं चलने के कारण ये देश चीन के बाद इसी तरह का प्रस्ताव भारत के खिलाफ भी लाने वाले थे। जिसकी भनक भारत को लग चुकी थी। यही वजह है कि इन देशों की भेदभाव वाली नीति का भारत ने समर्थन नहीं किया है। साथ ही चीन को भी यह संदेश दिया है कि वह भारत के साथ मित्रता निभाकर बहुत कुछ हासिल कर सकता है, लेकिन दुश्मनी के जरिये उसको केवल हार ही मिलेगी। अब चीन के उपर है कि वह भारत के इस परोक्ष प्रस्ताव को कैसे लेता है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भारत ने पिछले सात माह में रूस के खिलाफ भी वोटिंग नहीं की है, जिसके कारण भारत, रूस व चीन के रुप में एक नया रणनीतिक समीकरण बन रहा है। यही वजह है कि रूस ने भारत को चीन के खिलाफ वोटिंग नहीं करने के लिये मनाया है। इसके साथ यह भी वादा किया है कि भारत और चीन के बीच रूस के मध्यस्तता कर दुश्मनी खत्म करने का काम भी करेगा। हालांकि, फिर भी भारत की इस बदली हुई रणनीति के पीछे अहम वजह क्या है, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है, लेकिन फिलहाल भारत ने चीन के खिलाफ वोटिंग नहीं करके पश्चिमी देशों को अपनी ताकत का अहसास फिर से करवा दिया है।

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