Ram Gopal Jat
अब बिलकुल साफ हो गया है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना आलाकमान नहीं मानते हैं। इस बात के प्रमाण पिछले दिनों की दो घटनाओं के पहले और बाद में अशोक गहलोत ने जो बयानबाजी की है, उसमें साफ तौर पर देखे जा सकते हैं। दोनों घटनाओं में जो हुआ, वह तो पूरे देश ने देखा, लेकिन यदि इस दौरान गहलोत के बयानों को देखा जाये तो वह सोनिया गांधी को अपना आलाकमान भी नहीं मानते हैं और आलाकमान के कहने के अनुसार काम भी नहीं कर रहे हैं, और ना ही आगे करने वाले हैं। इसके लिये चाहे उनको पार्टी तोड़नी पड़े या पार्टी छोड़नी पड़े। अशोक गहलोत जातने हैं कि जैसे बसपा को तोड़कर उन्होंने इकाई को कांग्रेस में मिला लिया था, उसी तरह से दो तिहाही विधायकों को लेकर वह नई पार्टी बना सकते हैं, या किसी दूसरी पार्टी में जा सकते हैं, इससे उनपर दल बदल कानून भी नहीं लगेगा।
असल में पिछले दिनों राष्ट्रीय अध्यक्ष के नामांकन से पहले जयपुर में कांग्रेस विधायकों द्वारा हाई प्रोफाइल ड्रामे के तहत इस्तीफे देने का नाटक किया गया और अशोक गहलोत ने उस ड्रामे को शांति से देखा, इससे साफ है कि उनको ना तो आलाकमान के निर्देश से फर्क पड़ता है और ना ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के द्वारा भेजे गये उनके नुमाइंदे ओब्जर्वर मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन की फजीहत से, जो जयपुर में कांग्रेस विधायकों द्वारा विधायक दल की बैठक में नहीं जाकर की गई है। यह बात सही है कि अशोक गहलोत शुरू से ही कांग्रेस अध्यक्ष बनने के मूड में नहीं थे। उन्होंने कई बार कहा था कि वह राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिये मनायेंगे और वह नहीं मानेंगे, तो ही अध्यक्ष बनने के लिये तैयार होंगे।
इसके बाद अशोक गहलोत ने कोच्चि जाकर राहुल गांधी को मनाने का प्रयास भी किया, लेकिन वह नहीं माने तब कहा कि वह अध्यक्ष के लिये नामांकन पत्र दाखिल करने जा रहे हैं। लेकिन इसके दूसरे ही दिन जब जयपुर में विधायक दल की बैठक होनी थी, तब वह जैसलमेर चले गये, शाम को लौटे तो उनके गुट के विधायकों ने शांति धारीवाल के बंगले पर मीटिंग करके विधायक दल की बैठक के बजाये इस्तीफे देने का ड्रामा किया। इसको ड्रामा इसलिये कहा जाना उचित है, क्योंकि ना तो अब तक इस्तीफे स्वीकार हुये हैं और ना ही इस्तीफा देने वाले सभी विधायकों ने कहा कि वे इस्तीफा देना चाहते थे। कुछ ने साफ कहा कि वे तो दबाव के लिये अशोक गहलोत के पक्ष में इस्तीफों का ड्रामा कर रहे थे। यह पहला मौका था, जब गहलोत ने सोनिया गांधी के आलाकमान मानने से साफ मना कर दिया।
इस घटनाक्रम के बाद खडगे और माकन तो दिल्ली लौट गये, लेकिन पीछे से विधायकों और मंत्रियों की बयानबाजी चालू हो गई। कई विधायक पक्ष में तो कई खिलाफ हो गये और अंतत: इस जंग को रोकने के लिये सोनिया गांधी ने सभी को मीडिया में बयान नहीं देने का आदेश जारी करना पड़ा। इस आदेश के बाद सभी मंत्री और विधायक चुप हो गये, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गांधी जयंति पर भी अपने आलाकमान के आदेश को धत्ता बताकर मीडिया में बयानबाजी करते रहे। अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी के नुमाइदें खड़गे और अजय माकन की कार्यशैली पर सवाल उठाकर आलाकमान को सवालों में ले लिया और विधायकों की नाराजगी का हवाला देकर सोनिया गांधी के फैसले पर फिर से बगावत करने का संकेत भी दे दिया। यह अशोक गहलोत ने दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यानी आलाकमान को दूसरी चुनौती दी है।
इस दौरान नाम नहीं लिये बिना ही अशोक गहलोत ने सचिन पायलट पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि नए सीएम के नाम पर 102 विधायक इस कदर भड़क गए कि उन्होंने किसी की नहीं मानी, आलाकमान को ये सोचना चाहिए कि आखिर विधायकों को किस बात का डर है, पार्टी सर्वोपरी है, लेकिन कार्यकर्ताओं के मन को टटोलना भी पार्टी की जिम्मेदारी है।
गहलोत ने कहा कि मैं मुख्यमंत्री रहूं या न रहूं, लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए वो जी तोड़ कोशिश करेंगे, उन्होंने 102 विधायकों की भी तारीफ की, जिनकी वजह से कांग्रेस की सरकार बची थी। उन्होंने साफ कहा कि कांग्रेस पार्टी का राजस्थान में चुनाव जीतना बहुत आवश्यक है। सरकार को रिपीट कराने के लिए पूरी मेहनत से जुटेंगे।
अशोक गहलोत ने बात को डायवर्ट करते हुये कहा है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से बीजेपी बौखलाई हुई है, सोशल मीडिया पर षड्यंत्र रचा जा रहा है और यात्रा को बदनाम करने की कोशिश हो रही हैं, केन्द्र के खिलाफ लोगों में रोष है। इससे पता चलता है कि गहलोत दोहरी नीति पर काम कर रहे हैं। एक ओर से विधायकों के दम पर आलाकमान को चेतावनी दे रहे हैं, दूसरी तरफ उन्हीं विधायकों के दम पर सरकार बनाये रखने का दम भी भर रहे हैं। माना जा रहा है कि अशोक गहलोत को लेकर सोनिया गांधी काफी नाराज हैं, लेकिन देश में दो ही सरकार होने के कारण उनका कड़ा फैसला लेने में भी दिक्कत आ रही हैं। यह भी कहा जा रहा है कि सोनिया गांधी कभी भी राजस्थान के मुख्यमंत्री को लेकर अपना फैसला सुना सकती हैं, जिसको ध्यान में रखते हुये ही अशोक गहलोत दबाव की राजनीति के तहत इस तरह से बयान दे रहे हैं, ताकि आलाकमान को साफ हो जाये कि यदि उनको सीएम पद से हटाया गया तो सरकार भी नहीं रहेगी।
दूसरी ओर भाजपा ने भी गहलोत के बयान का कड़ा विरोध करते हुये उनको चुनौती दी है कि यदि कभी हॉर्स ट्रेडिंग हुई है, तो उसके सबूत क्यों नहीं देते हैं मुख्यमंत्री? भाजपा नेता और सदन में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने गहलोत को इस बात की चुनौती दी है कि यदि उनके बयानों पर वह कायम हैं, और सच है कि साल 2020 में या बाद में कभी भी कांग्रेस के विधायकों को खरीदने की भाजपा ने कोशिश की है, और इस बात के सबूत उनके पास हैं, तो वह सार्वजनिक करें, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाये।
असल बात यह है कि जुलाई 2020 से अब तक अशोक गहलोत कम से कम 100 बार कह चुके हैं कि भाजपा उनकी सरकार गिराना चाहती है, भाजपा उनके विधायकों को खरीदने के लिये 35—35 करोड़ रुपये दे चुकी है, जो वापस भी नहीं लिये गये हैं। हॉर्स ट्रेडिंग तो अशोक गहलोत का सबसे पसंदीदा शब्द बन गया है। सरकार के मुखिया रहते अपने ही दल के विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ देशद्रोह तक का मुकदमा अशोक गहलोत करवा चुके हैं। अशोक गहलोत ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जो सरकार का हिस्सा वाले मंत्रियों पर 50 करोड़ रुपये लेकर सरकार गिराने के आरोप लगा रहे हैं, लेकिन सबूत आजतक नहीं दे पाये हैं। और गहलोत ऐसे पहले मुख्मयंत्री हैं, जो जिनपर आरोप लगाते हैं, उनको ही मंत्री भी बना चुके हैं। गहलोत के बयानों में जो विरोधाभाष है, वही सरकार के लिये सबसे बड़ी समस्या बन गये हैं।
लेकिन एक बात साफ हो गई है कि अशोक गहलोत किसी भी हद तक जाकर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के लिये राजी नहीं होंगे। यह भी माना जा रहा है कि गहलोत इसके लिये पार्टी तोड़ भी सकते हैं और विधानसभा भंग करने की सिफारिश भी कर सकते हैं। भाजपा भी इस बात को जानती है, इसलिये बीजेपी ने मध्यावधि चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है। अब सबको सोनिया गांधी के फैसले और निर्णय विपक्ष में आने पर सचिन पायलट के कदम का इंतजार है, लेकिन अशोक गहलोत भी सोनिया गांधी के विपरीत निर्णय को स्वीकार नहीं करेंगे। कहने का मतलब यह है कि राजस्थान कांग्रेस में अब घमासान किसी भी सूरत में थमने वाला नहीं है।
अशोक गहलोत नहीं मानते कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना आलाकमान?
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