Ram Gopal Jat
एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने एक मंच से पूजा अर्चना की है। इसको लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की बातें की ज रही हैं। यह पहला अवसर नहीं है, जब गहलोत और वसंधुरा की सियासी नजदीकी सामने आई है, इससे पहले जब वसुंधरा ने 2013 में सीएम पद की शपथ ली थी, तब भी दोनों नेताओं की नजदीकियां सामने आई थीं और जब गहलोत ने 2018 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तब भी दोनों की घनिष्ठता सामने आई थी।
इसका मतलब यह है कि जब गहलोत कहते हैं कि पूर्व सीएम के नाते वह वसुंधरा से अच्छे राजनीतिक संबंध रखना चाहते थे, लेकिन वसंधुरा के सलाहकारों ने ऐसा नहीं करने दिया, तो ऐसी बातों झूठ हैं, क्योंकि दोनों का एक साथ आना उस बयान का खंडन करता है, जो गहलोत ने विधानसभा में दिया था। गहलोत कई बार कहते हैं कि राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं और जो दिखता है, वह होता नहीं। अब यही बात सचिन पायलट ने भी एक दिन पहले दोहराई है।
आपको याद होगा 11 जुलाई 2020 को तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार से बगावत की थी। तब 34 दिन तक चले हाईप्रोफाइल ड्रामे ने पूरे देश को चकित कर दिया था। साल 2018 के चुनाव से पहले सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच सीएम पद को लेकर जो शब्दबाण चले थे, वह तो सबने देखे ही थे, लेकिन बगावत के बाद दोनों के बीच रिश्ते कैसे हैं, यह किसी को बताने जरुरत नहीं है।
आज जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है, तब भी दोनों के पक्षों के बीच खींचतान जारी है। दोनों ओर से इशारों में बहुत कुछ कहा जा रहा है। अब तो मीडिया भी इस बात को खुलकर ना तो लिखता है और ना ही टीवी चैनल वाले दिखाते हैं, क्योंकि उस बगावत के वक्त की घटनाओं का विश्लेषण करने पर राज्य सरकार ने कुछ पत्रकारों पर भी मुकदमे दर्ज करवा दिये थे। शायद यही कारण है कि कोई पत्रकार इस झमेले में नहीं पड़ना चाहता है। सरकारों ने पत्रकारों के खिलाफ कानून का बेजा उपयोग करना एक हथियार बना लिया है।
इस बीच अब हाल ही में कांग्रेस छोड़ने वाले कश्मीर के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद का एक बयान वायरल हो रहा है। इस वीडियो में आजाद साफतौर पर कह रहे हैं कि जब पायलट ने बगावत की थी, तब वह भाजपा में जाना चाहते थे, लेकिन वसुंधरा राजे ने उनको स्वीकार ही नहीं किया। इस बात को अगर उस घटना से जोड़ें, जिसमें बगावत के दौरान अशोक गहलोत सरकार के अविश्वास प्रस्ताव के समय भाजपा के 4 विधायक अनुपस्थित रहे थे, और जब भाजपा के विधायक भी गुजरात बाड़ेबंदी में भेजे गये थे, तब भी कुछ बीजेपी विधायक वहां नहीं गये थे, तो साफ हो जाता है कि पर्दे के पीछे वसुंधरा राजे का गुट कहीं ना कहीं अशोक गहलोत की सरकार को बचाने का काम कर रहा था।
तब यह बात खूब उछाली गई थी कि वसुंधरा राजे नहीं चाहती हैं कि सचिन पायलट भाजपा में शामिल हों और अशोक गहलोत की सरकार गिर जाये। अब जो गुलाम नबी आजाद का वीडियो बयान सामने आया है, उससे साफ होता है कि पर्दे के पीछे वास्तव में वसुंधरा राजे नहीं चाहती थीं कि अशोक गहलोत की सरकार गिर जाये और सचिन पालयट भाजपा में शामिल होकर मुख्यमंत्री बन जायें। कहा तो यही जाता है कि सचिन पायलट को भाजपा ने सीएम पद ओफर किया था। किंतु वसुंधरा राजे नहीं चाहती थीं कि पार्टी में उनका कोई कॉम्पिटीटर बने, इसलिये पर्दे के पीछे से वसुंधरा कैंप ने गहलोत गुट का समर्थन किया था। उसी समय यह बात भी सामने आई थी कि सचिन पायलट के साथ मानेसर में कांग्रेस के 42 विधायक जाने वाले थे, लेकिन यह बात भाजपा के किसी बड़े नेता ने अशोक गहलोत को बता दी थी, जिसके कारण समय पर अधिकांश विधायकों को रोक लिया गया।
अभी राजस्थान में विधानसभा चुनाव को करीब सवा साल बाकी है, लेकिन जिस तेजी से समीकरण बन रहे हैं, उससे ऐसा लग रहा है कि अगले 5—7 महीनों में आने वाले विधानसभा चुनाव की तस्वीर साफ हो जायेगी। भाजपा में जहां वसुंधरा राजे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने की फिराक में हैं, तो पार्टी आलाकमान बार—बार मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने का ऐलान करके साफ संदेश देना चाहता है कि जो लोग वसुंधरा राजे के पाले में रहेंगे, उनके टिकट कटने तय है। शायद पार्टी आलाकमान यही चाहता है कि चुनाव से पहले ही वसुंधरा राजे को इतना कमजोर कर दिया जाये कि वह अपनी ताकत दिखा ही नहीं पाये और पार्टी पर प्रेशर नहीं बने। इसी को ध्यान में रखते हुये पिछले दिनों संगठन महामंत्री अरूण सिंह द्वारा सतीश पूनिया के नेतृत्व में चुनाव कराने के बयान भी दिये गये हैं।
यह बात तो कई बार साबित हो चुकी है कि अशोक गहलोत की लीडरशिप में कांग्रेस पहले के मुकाबले ज्यादा बुरी तरह से चुनाव हारती है, लेकिन इस बार गहलोत सरकार जिस तरह से रेवडियां बांट रही है, उससे यही लगता है कि वह यह साबित करना चाहते हैं कि उनके नेतृत्व में भी पार्टी सत्ता में रिपीट हो सकती है। किंतु यह इस बात पर निर्भर करता है कि सचिन पायलट का आगे क्या रुख रहेगा, क्योंकि हालिया सम्पन्न छात्रसंघ चुनाव से यह बात भी साफ हो गई है कि यूथ पूरी तरह से कांग्रेस के खिलाफ हो गया है। सभी 17 विश्वविद्यालयों में एनएसयूआई का हारना इस बात का प्रमाण है कि पांच लाख से ज्यादा युवाओं ने सरकार को नकार दिया है।
इसके बाद से सचिन पायलट कैंप भी एक बार फिर जोश में आ चुका है, लेकिन इसका परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि कांग्रेस आलाकमान के उपर इसका कितना असर पड़ता है। क्योंकि जब तक आलाकमान पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा कि राजस्थान का यूथ क्या चाहता है, तब तक राज्य में परिवर्तन की कोई भी बात सोचनी बेमानी है। हालांकि, फिर भी पायलट कैंप को इससे संजीवनी मिली है। क्योंकि राज्य के सबसे बड़े विवि में पायलट कैंप के निर्मल चौधरी को जीत हासिल हुई है, जहां पर एनएसयूआई की उम्मीदवार तीसरे नंबर पर चली गईं। ऐसे में पायलट ने भी बयान दिया है कि यह काफी सोचनीय विषय है कि एनएसयूआई के प्रत्याशी क्यों नहीं जीत पाये और क्या बदलाव करने की जरुरत है? पायलट का इशारा कांग्रेस आलाकमान के अलावा पूरा राजस्थान समझ रहा है।
इधर, भाजपा में भले ही वसुंधरा राजे को दरकिनार करने का प्रयास किया जा रहा हो, लेकिन फिर भी वसुंधरा कैंप अपने दौरों पर निकल पड़ा है। वसुंधरा कैंप के यूनूस खान, अशोक परनामी जैसे नेता पश्चिमी राजस्थान में वसुंधरा की बड़ी सभा करवाने के लिये तैयारी कर रहे हैं। जहां पर बीकानेर में देवीसिंह भाटी जैसे चेहरे को चुना गया है। पहले भरतपुर, फिर कोटा, उसके बाद मेवाड और अब बीकानेर में वसुंधरा राजे शक्ति प्रदर्शन करके दिखाना चाहती हैं कि भाजपा में उनका कोई विकल्प नहीं है। इसका मतलब यह है कि जोधपुर में अमित शाह की ओबीसी बैठक के बाद वसुंधरा राजे राजस्थान में अपना दमदार उपस्थित दिखाकर आलाकमान को सोचने के लिये मजबूर करना चाहती हैं।
आने वाला एक साल राजस्थान की राजनीति में बहुत बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है। इस दौरान कांग्रेस में जहां पायलट गहलोत का विवाद चरम पर जायेगा, तो भाजपा में वसुंधरा कैंप एक बार फिर से अपना पुराना इतिहास दोहराने के लिये आतुर नजर आयेगा। इन दोनों ही घटनाओं में दोनों ही दलों के आलाकमान की बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है, जो राजस्थान की जनता के वोट के बाद मुख्यमंत्री बनाना और बिगाड़ना तय करता है।
सचिन पायलट को वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया!
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