Ram Kishan Gurjar
राजस्थान विश्वविद्यालय में इस बार फिर से छात्रसंघ चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है..... इस चुनाव में एनएसयूआई से प्रत्याशी रितु बराला हैं, जबकि एबीवीपी के उम्मीदवार नरेंद्र यादव हैं, इसके साथ ही अशोक गहलोत सरकार में सचिन पायलट कैंप के मंत्री मुरारी लाल मीणा की बेटी का निहारिका जोरवाल के बागी होने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है...
आगे हम आपको बताएंगे, कौनसे प्रत्याशी की क्या है मजबूती.... और क्या कमजोरी....
सबसे पहले बात करते हैं एनएसयूआई की अधिकृत उम्मीदवार रितु बराला की, जो पहले महारानी कॉलेज की अध्यक्ष रह चुकी हैं, जबकि विवि में सबसे बड़ा वोटबैंक महारानी कॉलेज का ही है। रितु बराला काफी समय से छात्रसंघ चुनाव की तैयारी में जुटी हुई हैं. कोराना काल में भी रितु ने छात्रों की मदद की है. इसके साथ ही संगठन की अधिकृत प्रत्याशी होने के कारण रितु की जीत या हार सीधे अशोक गहलोत कैंप पर असर डालने वाली है। वैसे भी एनएसयूआई के अध्यक्ष अभिषेक चौधरी हैं, जो पहले विवि का छात्रसंघ चुनाव लड़ चुके हैं। हालांंकि, वह चुनाव हार गये थे, लेकिन उनकी विवि में गहरी पकड़ मानी जाती है।
बात अगर बागी उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोक रहीं निहारिका जोरवाल की करें तो राजस्थान विवि में बीते पिछले पांच छात्रसंघ चुनाव में बागियों ने ही छात्र संगठनों का खेल बिगाड़ा है... लगातार बागियों ने चुनाव जीतकर इतिहास रचा है. पिछले दो चुनाव एनएसयूआई के बागी जीते हैं, जबकि उससे पहले लगातार दो बार एबीवीपी के बागी चुनाव जीते थे। एबीवीपी पांच साल से और एनएसयूआई चार साल से जीत की दहलीज तक नहीं पहुंच पाई है.
निहारिका जोरवाल के मजबूत दावेदार होने के कुछ अहम फैक्टर हैं.....जिनमें पहला फैक्टर तो यह है पिछले दो चुनावों में विनोद जाखड़ से लेकर पूजा वर्मा ने निर्दलीय चुनाव लड़कर एसटी—एससी कोंबीनेशन के दम पर चुनाव जीता.... निहारिका जोरवाल को भी उनके समर्थकों ने इसी का सपना दिखाया है, जिस तरह से टिकट कटने के तुरंत बाद निहारिका के समर्थकों ने हिम्मत दी है, शायद उसी के दम पर ये सारी जोर आजमाइश चल रही है.
राजस्थान विवि में आज की तारीख में जातिगत आधार पर वोटर्स की बात की जाये तो जाट जाति के मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है, किंतु जब एससी और एसटी वर्ग एक साथ होते हैं, तो जाट मतदाताओं पर भार पड़ते हैं, यह बात पिछले दो चुनाव में देखने को भी मिली है.
दूसरा फैक्टर माना जा रहा है निहारिका जोरवाल सचिन पायलट कैंप की मंत्री मुरारी लाल मीणा की बेटी हैं, ऐसे में छात्र संगठनों के साथ ही पायलट कैंप के बड़े नेता भी निहारिका की जीत की जमीन तैयार कर सकते हैं.... इसके चलते अंदर खाने निहारिका जोरवाल के समर्थन में वोट बैंक में इजाफा होना तय है. पायलट कैंप के विधायक मुकेश भाकर और रामनिवास गावड़िया विवि की छात्र राजनीति से बीते पांच साल में ही निकले हैं, इसलिये इन दोनों नेताओं की विवि की राजनीति पर अभी भी मजबूत पकड़ है.
तीसरा फैक्ट्रर यह है कि एनएसयूआई के छात्रनेता निर्मल चौधरी कैंपस में निर्दलीय के तौर पर पहले से ही ताल ठोक रहे हैं, जो छात्रसंघ चुनाव की नियमावली में फिट नहीं होने के चलते चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। ऐसे में माना जा रहा है मुकेश भाकर और रामनिवास गावड़िया के करीबी निर्मल चौधरी भी निहारिका जोरवाल को समर्थन कर सकते हैं, इसके चलते निहारिका को पूर्वी राजस्थान के साथ ही शेखावटी और मारवाड़ क्षेत्र से आने वाले छात्रों का समर्थन मिल सकता है.
चौथा सबसे अहम फैक्टर माना जा रहा है कि निहारिका जोरवाल को जिताकर सचिन पायलट कैंप राज्य के युवा वर्ग के साथ ही कांग्रेस को भी एक मजबूत मैसेज दे सकता है.... आपको याद होगा जुलाई 2020 अशोक गहलोत सरकार से बगावत के बाद सचिन पायलट को अध्यक्ष पद से और यूथ कांग्रेस के पद से मुकेश भाकर को हटा दिया गया था। इसी तरह से एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष पद से पायलट कैंप के अभिमन्यू पूनिया को हटाया गया था.... तब सचिन पायलट की जगह गोविंद सिंह डोटासरा अध्यक्ष बने थे, जबकि और यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष मुकेश भाकर की जगह डूंगरपुर के विधायक गणेश घोघरा को अध्यक्ष बनाया गया था. ठीक ऐसे ही एनएसयूआई में अभिमन्यु पूनिया की जगह अभिषेक चौधरी को अध्यक्ष बनाया गया था.
कांग्रेसी सूत्रों की माने तो तब से ही कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में इस बात की टीस है.... कि उनकी कमान डमी लोगों को देकर सक्रिय कार्यकर्ताओं को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है. ऐसे में यह माना जा रहा है कि इस छात्रसंघ चुनाव के जरिए कांग्रेस के विभिन्न संगठनों के सक्रिय कार्यकर्ता... जिनको लगातार नजरअंदाज किया गया है, वे बड़ा मैसेज दे सकते हैं. निहारिका के पिता मंत्री हैं, ऐसे में निहारिका के चुनावी कैंपेन को अनुभवी लोग डिजाइन करेंगे.... जिसके चलते वोटर्स को रिझाने में आसानी हो सकती हैं.
पायलट कैंप की बगावत के बाद युवाओं का यह सबसे बड़ा चुनाव है और कांग्रेस का युवा सचिन पायलट को बेहद पसंद करता है। इसके चलते चुनाव केवल विवि कैंपस तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि राजधानी के सिविल लांइन्स स्थित बंगला नंबर 8 से लेकर बंगला नंबर 11 तक चुनाव की रणनीति बनाई जा रही है। प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में यदि एनएसयूआई के प्रत्याशियों पर पायलट कैंप के निर्दलीय उम्मीदवार भारी पड़ते हैं, तो यह पक्का है कि अशोक गहलोत के लिये अगस्त का यह महीना बुरी खबर लेकर आने वाला है.
Rajasthan University Election2022: गहलोत पर भारी पड़ेगा पायलट कैंप
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