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नरेंद्र मोदी से ईर्ष्या में छोटे से छोटे होते चले गये नीतिश कुमार

Ram Gopal Jat
नेता हो या परिवार का व्यक्ति, एक चीज सब जगह समान है, और वह है दिल बड़ा होना, किसी के बढ़ते कद को दिल से स्वीकार कर लेना, किसी की गलती पर उसको माफ करके आगे बढ़ना, आवश्यकता पड़ने पर खुले मन से सहायता करना और दूसरों को दबाने में समय खराब करने के बजाये खुद का विकास कर अपना कद बड़ा करना। ये ऐसी बातें हैं, और इनका पालन करने वाला व्यक्ति जीवन में वह सबकुछ पा लेता है, जिसकी वह अपेक्षा करता है और योग्यता रखता है, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो योग्यत—मेहनती होने के बावजूद उचित स्थान नहीं पाते। ऐसे ही एक राजनेता हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, जिनको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऐसी व्यक्तिगत ईर्ष्या है कि उन्होंने अपने कद को बीते 8 साल में बहुत छोटा कर लिया है। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि कभी वह प्रधानमंत्री पद के तगड़े दावेदार थे, लेकिन अपने कर्मों के दम पर ना केवल मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिये भी संघर्ष करना पड़ रहा है, बल्कि अपनी पार्टी को मरणास्न्न हालात में ले गये हैं।
आज नीतिश कुमार फिर पाला बदलने जा रहे हैं और इसका एकमात्र कारण हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ईर्ष्या, जिसका उपचार केवल उनके खुद के पास है, अन्य कोई भी इसका इलाज नहीं कर सकता। आगे चाहे भाजपा के साथ नीतिश कुमार की सरकार रहे या नहीं रहे, लेकिन इतना पक्का है कि नीतिश को मोदी से आजीवन कंपिटीशन हो गया है, जो मरते दम तक जारी रहेगा। इस वीडियो में हम चर्चा करेंगे नरेंद्र मोदी और नीतिश कुमार के बीच चल रहे इस शीतयुद्ध की, और साथ ही यह भी चर्चा करेंगे कि बिहार में अब आगे क्या होने वाला है, क्या नहीं चाहकर भी नीतिश कुमार उस मर्डर केस के कारण भाजपा का साथ देंगे, जो सीबीआई के पास है? लेकिन उससे पहले बीते दो दिन में क्या हुआ, वह जान लीजिये।
बिहार में नया गठबंधन के आकार लेने और एनडीए में टूट की आहट साफ सुनाई दे रही है। सोमवार की सुबह से शाम तक सियासी गतिविधियां और तमाम दलों के नेताओं की प्रतिक्रियाओं से इस आहट को और बल मिला है। नीतिश कुमार की जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने मीडिया में जो प्रतिक्रिया दी हैं, उससे भाजपा के प्रति उनकी तल्खी साफ नजर आ रही है। वैसे तमाम दलों ने अपने प्रवक्ताओं और नेताओं को किसी भी बयान से परहेज करने की हिदायत दी है। लालू यादव द्वारा स्थापित राष्ट्रीय जनता दल ने अपने प्रवक्ताओं का पैनल ही भंग कर दिया है, तो बिहार में भाजपा के नेताओं ने भी चुप्पी साध रखी है।
मंगलवार को जदयू, राजद और हम पार्टी ने विधायक दलों की बैठक बुलाई है। इनमें नए गठबंधन पर अहम फैसला होना है। नया गठबंधन आकार लेगा तो संख्याबल करीब दो तिहाई होगा। महागठबंधन में राजद के 79 विधायक, कांग्रेस के 19 और वामदलों के 16 विधायक, यानी कुल 114 विधायक हैं। जदयू और हम की संख्या 49 है। ये सभी मिलकर 163 विधायक होते हैं। राजद, जदयू, कांग्रेस एवं वामदलों के नए गठबंधन के आकार लेने की गूंज दिनभर सुनाई देती रही। जदयू के ललन सिंह ने कहा, आरसीपी सिंह प्रकरण के बाद जो स्थितियां बनी हैं, उसे लेकर मंगलवार को बैठक होगी, केंद्रीय मंत्रिमंडल में जदयू का कौन नेता शामिल होगा, यह भाजपा तय करेगी?
इस बीच हालात की जानकारी सार्वजनिक होने पर मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की गृहमंत्री अमित शाह से सोमवार सुबह फोन पर बात भी हुई है। हालांकि, बातचीत क्या हुई यह साफ नहीं है। जदयू की शर्तें भाजपा मान लेती है तो सरकार बनी भी रह सकती है। भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद शाहनवाज हुसैन, भीखू दलसानिया देर शाम दिल्ली रवाना हो गए। गठबंधन पर मंगलवार को मंथन हो सकता है। माना जा रहा है कि इन सबके बीच भी भाजपा नीतीश कुमार के फैसले का इंतजार करेगी। सोमवार को मुख्यमंत्री नीतिश कुमार दिनभर जनता दरबार में रहे और वे भाजपा कोटे के दोनों उपमुख्यमंत्रियों से बात करते दिखे। इधर, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी अपने साथियों के साथ मंथन करते रहे। उन्होंने अपने दल के प्रमुख नेताओं को बयानबाजी न करने की सलाह देते रहे। कांग्रेस केवल हालात पर पार्टी नजर रख रही है।
नीतीश कुमार अगर भाजपा से गठबंधन तोड़ते हैं तो कांग्रेस के साथ-साथ भाकपा माले, माकपा और हम ने उनके समर्थन का एलान किया है। कांग्रेस पार्टी ने विधानमंडल दल की बैठक में नीतीश कुमार को समर्थन देने का फैसला किया। माकपा ने कहा है कि बिहार में नये सत्ता समीकरण का वह स्वागत करेगा। एनडीए में जदयू के सहयोगी ‘हम’ ने कहा है कि वह हर निर्णय में जदयू के साथ है। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान किया है। सोमवार को पार्टी विधानमंडल दल के नेता अजीत शर्मा के आवास पर हुई विधायकों की बैठक में पार्टी ने तय किया कि अगर कोई परिस्थितियां बनती हैं और मुख्यमंत्री नीतिश कुमार महागठबंधन के साथ सरकार बनाते हैं, तो कांग्रेस उसका बिना शर्त समर्थन करेगी। इसलिये कांग्रेस पार्टी ने सभी विधायकों को पटना में ही डटे रहने को कहा है।
उधर, पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने कहा है कि हमारी पार्टी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हर निर्णय के साथ है। विधायकों-सांसदों की बैठक बुलाई है, लेकिन एनडीए अटूट और अटल है। जदयू के सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों की बैठक मंगलवार को होगी। बैठक में वर्तमान राजनीतिक हालात पर विचार-विमर्श कर आगे की रणनीति पर फैसला लिया जाएगा। इस संबंध में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने बताया कि आरसीपी सिंह प्रकरण के बाद जो परिस्थिति बनी है, उसपर सभी से राय लेने के लिए मुख्यमंत्री ने बैठक बुलाई है। शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि एनडीए में अभी कुछ गड़बड़ नहीं है। हम लोगों की पार्टी में कुछ गतिविधियां हुई हैं, इस पर बात करने के लिए विधायकों, सांसदों और पदाधिकारियों की बैठक तय है। इसी में राजनीतिक हालात पर भी चर्चा होगी।
इसका मतलब यह है कि मंगलवार को सबकुछ साफ होने की संभावना है। राजद और कांग्रेस का सिर्फ एक ही मकसद है, और वह है राज्य में भाजपा को सत्ता से बाहर कर महाराष्ट्र का बदला लिया जाये। यदि यहां पर भाजपा सत्ता से बाहर होती है, तो कांग्रेस के हाथ से गया महाराष्ट्र की पूर्ति यहां हो जायेगी। राजद को कैसे भी सत्ता चाहिये, इसके लिये उसने उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री बनने की मांग भी छोड़ दी है, केवल कुछ मंत्रालय लेकर संतुष्ट होने को राजी है, बनिस्पत भाजपा सत्ता से बाहर हो जाये। भाजपा भले ही यहां पर 77 विधायकों के साथ दूसरा सबसे बड़ा दल हो, लेकिन बीते कुछ बरसों से भाजपा की रणनीति के चलते स्थानीय लीडरशिप दम तोड़ती नजर आ रही है, मोदी जैसे वटवृक्ष के नीचे कोई पौधा पनप ही नहीं पा रहा है, भाजपा की यह नीति आने वाले समय में पार्टी को नुकसान पहुंचायेगी। कोई भी राष्ट्रीय दल जब तक स्थानीय नेतृत्व को आगे बढ़ने का अवसर नहीं देता है, तब आने वाले समय में उसको राष्ट्रीय लीडरशिप के लिये तरसना पड़ता है, जिससे आज कांग्रेस जूझ रही है। भाजपा के पास आज राष्ट्रीय स्तर पर तो कई नेता हैं, लेकिन राज्यों के लेवल पर शून्य स्थिति बनती जा रही है।
बिहार में भी भाजपा के पास भले ही जनता का बड़ा समर्थन हो, लेकिन सर्वमान्य एक नेता का अभाव है, जिसके नाम पर विधानसभा चुनाव लड़ा जा सके। पिछले चुनाव में भाजपा जदयू से बड़े भाई की भूमिका में आ चुकी है, तभी से नीतिश कुमार अनकंफर्टेबल फील कर रहे हैं, उनको डर है कि अगले चुनाव में भाजपा उनके दल को समाप्त नहीं कर दे। इसी डर के कारण चलती सरकार में हलचल मचा बैठे हैं। नीतिश कुमार का यह डर कोई नया नहीं है, अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने में रेल मंत्री रह चुके नीतिश कुमार को तब भाजपा से असहज स्थिति दिखी, जब नरेंद्र मोदी को एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया। भाजपा में जिन लोगों ने मोदी के नाम का विरोध किया था, उनके अलावा सहयोगी दलों में नीतिश कुमार भी मोदी को प्रमोट करने के विरोधी थे। तब से ही नीतिश कुमार और मोदी में दूरियां हैं। हालांकि, मोदी ने इनको कम करने का प्रयास किया है, लेकिन नीतिश कुमार के मन में एक डर बैठा हुआ है, तो बार—बार उभरकर सामने आ जाता है।
आपको याद होगा पिछली सरकार के समय नीतिश कुमार और लालू यादव की पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा था, तब लालू के एक बेटे को डिप्टी सीएम और एक को मंत्री बनाया गया था। कहा जाता है कि उस गठबंधन को तोड़ने का कारण नीतिश कुमार के खिलाफ लंबित वह मर्डर केस था, जो सीबीआई के पास है। चर्चा हुई थी कि यदि उन्होंने लालू यादव की राजद से गठबंधन नहीं तोड़ा होता, तो सीबीआई उनको ​अरेस्ट कर लेती। जिससे बचने के लिये उन्होंने भाजपा के साथ सरकार बनाई, लेकिन 2019 में केंद्रीय सत्ता रिपीट होने के बाद बदली भाजपा की रणनीति नीतिश को पसंद नहीं आई,​ जिसमें चाहे कितने ही सांसद हों, लेकिन एनडीए के सहयोगी दलों को केवल एक मंत्री पद दिया। नीतीश कुमार चाहते थे कि संख्याबल के आधार पर मंत्री पद मिले, लेकिन भाजपा ने इनकार कर दिया, तो जदयू ने मंत्रीमंडल से बाहर रहना स्वीकार किया।
अब नीतीश के सामने दो रास्ते हैं, जिनमें से उनको एक तय करना है। पहला तो यह है कि उनको अपनी ईर्ष्या को त्यागकर मोदी को सर्वमान्य सबसे बड़ा नेता मानते हुये भाजपा से गठबंधन जारी रखें और अगले चुनाव में अधिक से अधिक सीटों के साथ पार्टी को फिर से सत्ता दिलायें। दूसरा रास्ता यह है कि वह भाजपा जैसी एक पार्टी के दबाव को छोड़कर महागठबंधन में शामिल होकर अनेक दलों का तनाव लेते हुये सीएम बनकर सीबीआई के केस का सामना करें। यदि भाजपा के साथ रहे, तो सरकार तो पांच साल चलेगी, लेकिन आगे उनकी पार्टी की परफोर्मेंस क्या रहेगी, इसकी कोई गांरटी नहीं दे सकता। साथ ही भाजपा उनको कितनी सीटें देगी, यह भी तय नहीं है। दूसरे रास्ते से उनको कई दलों के नेताओं का तनाव झेलते हुये अगले चुनाव में जाना है, जहां भी उनको बहुत कम सीटों पर संतोष करना होगा, लेकिन उनकी पार्टी जमींदोज नहीं होगी और हो सकता है मर्डर वाले केस में इस दौरान सीबीआई उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दे। भाजपा को यहां पर दोनों ही स्थितियों में फायदा है। वह सत्ता में रहेगी, तो भी अगले चुनाव में अधिक सीटों पर जीतने वाली है, और यदि गठबंधन टूट जाता है, तो भी अगले चुनाव में वह सभी 242 सीटों पर चुनाव लड़कर अपने दम पर सरकार बनाने का प्रयास करेगी।
अब यदि हाल में हुई घटनाओं के आधार पर देखें तो इन पांच वजह से दोनों के बीच दरार बड़ हुई है। पहला कारण तो यह है कि BJP कोटे से स्पीकर बने विजय कुमार सिन्हा और CM नीतीश के बीच तकरार चल रही है। नी​तीश कुमार चाहते हैं कि भाजपा उनको हटाकर दूसरे किसी को स्पीकार बनाये। दूसरा कारण यह है कि जदयू सांसदों की संख्या के अनुपात में केंद्री मंत्री पद JDU को नहीं मिले हैं, जो अब जदयू चाहती है। तीसरी वजह BJP और JDU के बीच अलग-अलग पॉलिसी मतभेद, जिसमें अग्निवीर, वन नेशन, वन इलेक्शन और कॉमन सिविल कोड, जिसको जदयू भाजपा को मुद्दा मानती है। चौथी वजह BJP कोटे के मंत्रियों पर भी CM नीतीश कुमार को कंट्रोल चाहना। वह चाहते हैं कि बीजेपी के कोटे के मंत्री उनको पूछकर ही निर्णय लें, अभी वे अपने विवेक से फैसले करते हैं। पांचवा कारण यह है कि जदयू ने मंगलवार को अचाकर पार्लीयामेंट बोर्ड की अचानक मीटिंग बुलाई, जिससे सियासी हलचल बढ़ गई है। यह कारण ऐसा है, तो अकारण भी राजनीति को गर्म कर रहा है। इन सबके बीच यदि नीतिश कुमार ने बड़ा दिल दिखाते हुये मोदी को स्वीकार कर भाजपा के साथ गठबंधन जारी रखा तो वह वर्तमान कद में बने रहेंगे, और यदि उन्होंने इस अलायंस से छेड़खानी की, तो आने वाले समय में वह खुद को ठीक वैसे ही राजनीति में छोटा कर लेंगे, जैसे मोदी के अंध विरोध में यशवंत सिन्हा, क्षत्रुघन सिन्हा, अरूण शोरी, चंद्रबाबू नायडू जैसे कई नेता कर चुके हैं।

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