Ram Gopal Jat
बीते 21 साल से गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सिक्का चल रहा है। चाहे विधानसभा चुनाव हो, या लोकसभा चुनाव, हर बार गुजरात की जनता ने मोदी के नाम पर भाजपा को जमकर वोटिंग की है। यहां पर 2001 में पहली बार मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया था, उसके एक साल बाद दंगे हुये और फिर विधानसभा चुनाव हुये, जिसमें मोदी के नाम पर भाजपा को पहली बार सर्वाधिक सीटों पर जीत हासिल हुई। इस चुनाव ने गुजरात भाजपा को पहली बार 127 सीटों का प्रचंड़ बहुमत दिया और मोदी के एक साल के कार्यों पर मुहर लगा दी। जबकि सीएम बनने के कुछ समय पहले ही गोधरा में 59 कार सेवकों को जिंदा जलाने के बाद दंगे भड़क उठे थे। तब विपक्षी दलों ने मोदी को दंगों का गुनाहगार ठहराने का 19 साल तक प्रयास किया।
मोदी 2001 से 2014 तक सीएम रहे और भाजपा को 2002, 2007, 2012 का विधानसभा चुनाव जिताया। मोदी ने सीएम के तौर पर ऐसी उड़ान भरी कि 2014 उनको देश ने प्रधानमंत्री चुन लिया। गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री को पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का अवसर मिला। बीते आठ साल से मोदी प्रधानमंत्री हैं और 2017 को विधानसभा चुनाव भी वह अपने ही दम पर गुजरात में भाजपा को जिता चुके हैं। अब एक बार फिर गुजरात में दिसंबर में चुनाव होने जा रहे हैं। इसको लेकर भाजपा ने तैयारी काफी पहले शुरू कर दी थी, तो कांग्रेस भी इस बार सत्ता के सूखे को मिटाना चाहती है। इस बीच दिल्ली में तीसरी बार सीएम बने अरविंद केजरीवाल ने भी गुजरात चुनाव में दम दिखाना शुरू कर दिया है।
पीएम मोदी का हमेशा विकास मॉडल रहा है, तो केजरीवाल का जहां फ्री मॉडल है। ऐसे में इस बार कांग्रेस को एक तरफा नहीं, बल्कि दो तरफा लड़ाई लड़नी है। केजरीवाल ने पहले कांग्रेस से दिल्ली की कुर्सी छीन ली, और फिर इसी साल के शुरुआत में पंजाब भी छीन लिया। ऐसे में कांग्रेस को चार गुणी मेहनत करने की जरुरत है। उसे मोदी से भी लड़ना है और केजरीवाल की फ्री योजनाओं का तोड़ भी ढूंढना है।
पीएम मोदी जहां गुजरात से दिल्ली गये हैं, तो केजरीवाल दिल्ली से गुजरात जा रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि एक दिग्गज प्रधानमंत्री का एक अर्द राज्य का सीएम कैसे मुकाबला कर पायेगा? क्या गुजरात की जनता मोदी के गुजरात मॉडल को ठुकराकर, उसकी जगह केजरीवाल का फ्री मॉडल स्वीकार करेंगे? आज हम इसी बात की पड़ताल करेंगे कि आखिर गुजरात में कौन, किसपर भारी पड़ने जा रहा है और इसका कारण क्या हो सकता है?
गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आदिवासी कार्ड खेलने का प्रयास किया है। गुजरात में 'आप' की सरकार बनने पर मुफ्त बिजली और सबको रोजगार का वादा कर चुके केजरीवाल ने आदिवासी समाज के लिए 6 ऐलान किए हैं। उन्होंने आदिवासियों के लिए पेसा कानून को पूरी तरह लागू करने, ट्राइबल अडवाइजरी कमेटी के चेयरमैन को आदिवासी समाज के किसी व्यक्ति को बनाने से लेकर हर गांव में स्कूल, मुफ्त इलाज, घर, सड़क और कास्ट सर्टिफिकेट की प्रक्रिया को आसान बनाने के वादे किए हैं। गुजरात की कुल आबादी में आदिवासियों की करीब 14.8 फीसदी हिस्सेदारी है और 27 सीटें अनूसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।
केजरीवाल ने कहा है कि आदिवासी समाज 75 साल बाद भी पिछड़ा रह गया। सभी दलों को चुनाव से पहले ही उनकी याद आती है। सबने उनका शोषण किया। आदिवासियों के लिए संविधान में अलग व्यवस्था है, क्योंकि उनकी अलग संस्कृति और तौर-तरीका है, क्योंकि वे बहुत पिछड़े हैं, लेकिन कोई भी सरकार उन प्रावधानों को लागू करने को तैयार नहीं है। सभी की नजर उनकी जंगल-जमीन पर रहती है। पहली गारंटी है कि आदिवासियों के लिए संविधान में जो 'पेसा' का प्रावधान उसे लागू करेंगे, इसके तहत प्रावधान है कि सभी फैसले ग्रामसभा ही करेगी।
केजरीवाल ने दूसरी गारंटी के दौर पर ट्राइबल अडवाइजरी कमेटी का चेयरमैन किसी आदिवासी को ही बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि गुजरात में सीएम इसके चेयरमैन हैं। इस व्यवस्था को खत्म किया जाएगा। आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो किसी आदिवासी को इसका चेयरमैन बनाया जाएगा। दिल्ली के सीएम ने कहा कि आदिवासी शिक्षा के अभाव में पिछड़े रह गए। दिल्ली का उदाहरण देते हुए उन्होंने वादा किया कि उनकी पार्टी की सरकार बनी तो हर आदिवासी गांव में अच्छा सरकारी स्कूल खोला जाएगा, जिनमें शिक्षा पाकर आदिवासी बच्चे आगे बढ़ पाएंगे।
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के सरकारी अस्पताल और मोहल्ला क्लीनिक का उदाहरण देते हुए कहा कि उनकी सरकार बनी तो हर आदिवासी गांव में 'गांव क्लीनिक' खोला जाएगा। आदिवासी इलाकों में अच्छे सरकारी अस्पताल बनाए जाएंगे, जहां सभी को पूरी तरह मुफ्त इलाज मिलेगा। चौथी गारंटी के रूप में उन्होंने कास्ट सर्टिफिकेट की प्रक्रिया को आसान बनाने की बात कही। पांचवीं गारंटी में उन्होंने कहा कि जिन आदिवासियों के पास अपना घर नहीं है, उन्हें पक्का मकान दिया जाएगा। छठी गारंटी यह है कि हर गांव में पक्की सड़क बनाई जाएगी।
आम आदमी पार्टी को ईमानदार, शरीफों और देशभक्तों की पार्टी बताते हुए केजरीवाल ने कहा, हमें लड़ाई, झगड़ा, दंगे फसाद नहीं आते हैं, जिस किस्म के मुद्दे हम उठा रहे हैं, आज तक 75 साल में किसी पार्टी ने नहीं उठाए हैं। बीजेपी ने एक सर्वे कराया है और लोगों से पूछा है कि 'आप' मुफ्त शिक्षा, बिजली जैसे वादे कर रही है, अधिकतर लोगों ने इसे सही बताया है। दिल्ली में उनकी सरकार को परेशान किया जा रहा है। गुजरात में परेशान होने की वजह से दिल्ली में उनकी सरकार को तंग किया जा रहा है।
केजरीवाल का यह मॉडल कोई नया नहीं है। इससे पहले दिल्ली में तीन बार इसी तरह के वादे कर सत्ता हासिल की है। दिल्ली में जिन मोहल्ला क्लिनिक की दुहाई देने गुजरात तक पहुंच गये हैं, उनमें आज कुत्ते—बिल्ली पल रहे हैं। जिन सरकारी स्कूलों का दम भरा जा रहा है, वो स्कूलों ही केंद्र सरकार के फंड से चल रही हैं। बिजली और पानी फ्री करने की वजह से दिल्ली जैसा सर्वाधिक टैक्स कमाने वाला राज्य कंगाली में पहुंच चुका है। दिल्ली जल बोर्ड और बिजली बोर्ड पर कर्जे का बोझ इतना है कि आज उनको बेचने के लिये दिल्ली सरकार ने निविदाएं मांग ली हैं। दिल्ली बिजली बोर्ड 13 हजार करोड़ के घाटे में चल रहा है तो जल बोर्ड पर इतना कर्जा हो गया है कि सरकार चलाने में अक्षम हो गई है।
गुजरात में शराब बैन है, लेकिन दिल्ली में शराब की नदियां बह रही हैं। पिछले दिनों ही दिल्ली में शराब में घोटाले के बाद उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर सीबीआई ने शिकंजा कस दिया है। जहां शराब की दुकाने कम करके दिल्ली में सत्ता पाई थी, उसी दिल्ली में आज हर गली में शराब की दुकान खोल दी गई है। पंजाब में किये गये झूठे वादों का परिणाम यह हुआ है कि पंजाब की भगवंत मान की सरकार के पास विकास के लिये रुपया नहीं है, जिसके कारण वह भी भागकर बार बार प्रधानमंत्री मोदी से फंड मांग रहे हैं।
झूठी वाहवाही के चक्कर में पंजाब की सरकार ने वीआईपी सुरक्षा हटाई और उसको प्रचारित किया, जिसके कारण पंजाब के सबसे प्रसिद्ध गायक सिद्धू मुसेवाला का मर्डर हो गया। केजरीवाल के वादों में फंसा पंजाब आज फिर से खालिस्तान की राह पर चल पड़ा है। दिल्ली में जब भी दंगे होते हैं, तब केजरीवाल का दोहरा चेहरा सामने आता है। हर बार केजरीवाल मुसलमानों का पक्ष और हिंदुओं के खिलाफ होने वाली हिंसा पर चुप्पी साधकर बैठ जाते हैं। यहां तक कि खिलाड़ियों के साथ भी भेदभाव किया जाता है।
कांग्रेस पार्टी गुजरात में 1990 के बाद कभी सत्ता में नहीं आई है। वह यहां पर बीते 32 साल से सत्ता के लिय तरस रही है। हालांकि, पिछले चुनाव में पार्टी को अच्छा रेसपोंस मिला था, लेकिन वह बहुमत से दूर रह गई थी। इसलिये पार्टी ने इस बार मोदी पर व्यक्तिगत हमलों से बचने और विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है।
कांग्रेस पार्टी का भाजपा की एंटी इनकंबेंसी का सहारा है, तो साथ ही मोदी के गुजरात में नहीं होने का भी फायदा मिलेगा, लेकिन आम आदमी पार्टी की एंट्री ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। क्योंकि इससे पहले दिल्ली और पंजाब में भी कांग्रेस की सरकारों की जगह आम आदमी पार्टी की सरकारें बन चुकी हैं। जिस सक्रियता से केजरीवाल ने गुजरात में फ्री की घोषणाओं के वादे किये हैं, उसके कारण कांग्रेस को अब अधिक ताकत से लड़ना होगा।
भाजपा के पास आज भी मोदी ही सबसे बड़ा चेहरा हैं, तो मुख्यमंत्री भुपेंद्र पटेल और युवा नेता हार्दिक पटेल के सहारे सबसे बड़े वोट बैंक को एक तरफा करके सत्ता में रिपीट होने का प्लान बनाया है। पार्टी को इस बात का पता है है कि तीन दशक तक सरकार रहने के बाद सत्ता विरोधी लहर का बनना लाजमी है, जिसका फायदा निश्चित तौर पर विपक्षी दलों को मिलेगा, लेकिन काम और मोदी के नाम के दम पर भाजपा फिर से सत्ता में आना चाहेगी।
दूसरी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य यदि भाजपा के हाथ से छिटक जायेगा, तो आने वाले लोकसभा चुनाव में नकारात्मक असर पड़ेगा, जिससे बचने के लिये भाजपा किसी भी सूरत में सत्ता रिपीट कराना चाहेगा। यह चुनाव केवल सीएम भुपेंद्र पटेल का चुनाव नहीं है, यह भाजपा का भी चुनाव नहीं है, बल्कि विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता बन चुके नरेंद्र मोदी और काम के दम पर सरकार पटेल का अक्स लिये गृहमंत्री अमित शाह की साख का चुनाव है। इसलिये भाजपा, मोदी और अमित शाह किसी भी हालत में यहां पर चुनाव हारना नहीं चाहेंगे।
मोदी के विकास से टकरायेगा केजरीवाल का फ्री वाला मोहल्ला क्लिनिक
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