Ram Kishan Gurjar
राजस्थान में छात्रों ने अपनी सरकार चुन ली है. प्रदेश की 17 यूनिवर्सिटीज और 450 से अधिक कॉलेजों के चुनाव के परिणाम जारी कर दिये गये। राज्य के 17 विवि में से एक भी अध्यक्ष नहीं जिता पाने के कारण ना केवल एनएसयूआई के अध्यक्ष अभिषेक चौधरी पर सवाल खड़े हो रहे हैं, बल्कि खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके बेटे वैभव गहलोत भी सवालों के घेरे में हैं। इस चुनाव में सबसे अधिक 9 विवि में निर्दलीय जीते हैं, जबकि 6 जगह पर एबीवीपी और दो स्थानों पर एसएफआई ने जीत दर्ज की है।
प्रदेश के सबसे बड़े विवि, राजस्थान यूनिवर्सिटी में लगातार पांचवी बार निर्दलीय ने जीत हासिल की है। नागौर से आने वाले पायलट कैंप के प्रत्याशी निर्मल चौधरी ने अशोक गहलोत के मंत्री मुरारीलाल मीणा की बेटी निहारिका जोरवाल को करारी शिकस्त देकर साबित कर दिया है कि प्रदेश का करीब 25 फीसदी युवा सचिन पायलट का पंसद करता है, भले ही सोनिया गांधी के आर्शीवाद से अशोक गहलोत प्रदेश के मुख्यमंत्री हों।
इस बार के छात्र संघ चुनाव में सत्ता विरोधी लहर का टेंड़ साफ तौर पर नजर आया है. कई जगह पर कांग्रेस के ही छात्र संगठन एनएसयूआई के बागियों ने जीत दर्ज करवाई है. लेकिन किसी भी विश्वविद्यालय में एनएसयूआई जीत नहीं पाई हैं.
आगे के वीडियो में आपको बताएंगे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह क्षेत्र से लेकर कांग्रेस के अग्रिम संगठनों के प्रदेश अध्यक्षों के क्षेत्र में, जिनमें गोविंद सिंह डोटासरा, गणेश घोघरा और अभिषेक चौधरी के गृह जिले में भी कांग्रेस का छात्र संगठन जीत नहीं पाया है. चुनाव के वक्त् पार्टी अध्यक्ष, यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष और एनएसयूआई अध्यक्ष ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन एक भी सीट नहीं जीतना इस खेमे के के लिये भारी चुनौती है।
सबसे पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर की बात करें तो जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में जा पर्दे के पीछे कांग्रेस के कई विधायक एनएसयूआई के प्रत्याशी की मदद कर रहे थे, तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे और आरसीए के अध्यक्ष वैभव गहलोत ने विश्वविद्यालय के कैंपस में जाकर तक प्रचार किया, लेकिन जिता नहीं पाए.
एनएसयूआई की हार के बाद छात्रों ने सोशल मीडिया पर कमेंट्स किये कि यह हार वैभव गहलोत कि है, जिन्होंने कैंपस में प्रचार करके एनएसयूआई के प्रत्याशी की हार तय कर दी थी। आपको याद होगा 2019 के लोकसभा चुनाव में वैभव गहलोत बड़े अंतर से गजेंद्र सिंह शेखावत के सामने चुनाव हार चुके हैं. बगावत के समय एनएसयूआई अध्यक्ष पद से अभिमन्यू पूनिया द्वारा इस्तीफा देने के बाद अशोक गहलोत के आर्शीवाद से एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष बने अभिषेक चौधरी का गृह जिला भी जोधपुर ही है।
कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के गृह जिले सीकर में शेखावाटी विश्वविद्यालय और एसके कॉलेज में भी एनएसयूआई जीत नहीं पाई। यहां पर एसएफआई ने कब्जा जमाकर साफ कर दिया है कि डोटासरा में अध्यक्ष जैसे कोई गुण दिखाई नहीं देते हैं। इसके साथ ही मुकेश भाकर के इस्तीफा देने पर गहलोत के सिपहसालार बने यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष गणेश घोघरा के गृह जिले डूंगरपुर में भी एनएसयूआई की जगह बीटीपी के छात्र संगठन ने बाजी मार ली।
इस क्षेत्र में मुख्यमंत्री की अति सक्रियता और गणेश घोघरा यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने के बाद भी इस तरह की लो परफॉर्मेंस कांग्रेस के लिए अगले विधानसभा चुनाव से पहले चिंता का विषय बन गई है. आपको बता दें कि बीटीपी के एक विधायक राजकुमार रोत भी छात्र राजनीति से निकलकर आगे आए हैं.
इसके साथ ही छात्रसंघ चुनाव में कांग्रेस उस जिले में पिछड़ गई, जहां उसने सबसे ज्यादा मंत्री बनाएं, यानी भरतपुर के महाराजा सूरजमल विश्वविद्यालय में भी एनएसयूआई खाली हाथ रही. यहां एबीवीपी जीतने में कामयाब रही. पूर्वी राजस्थान में सूरजमल विवि का बड़ा नाम है, जहां से पूरी 8 जिलों में प्रभाव माना जाता है। यहां से एनएसयूआई की हार ने कांग्रेस की चिंता को दोगुना कर दिया है, क्योंकि कांग्रेस की वर्तमान सरकार में सबसे अधिक विधायक पूर्वी राजस्थान से ही हैं।
छात्रसंघ चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस से लेकर विपक्ष में बैठी भाजपा के लिए भी बड़े सियासी संकेत दे गया है. असल में साल 2018 में विधानसभा चुनाव में भाजपा केवल आधा फीसदी वोट कम लेकर सत्ता से बाहर हो गई थी। कांग्रेस को भाजपा से केवल एक लाख 70 हजार वोट अधिक मिले थे, जबकि इस वक्त प्रदेश में 28 साल से कम उम्र के वोटर्स करीब 25 फीसदी हैं। परोक्ष रुप से देखा जाये तो प्रदेश की कांग्रेस सरकार को करीब 5 लाख युवाओं ने सत्ता से बाहर निकाल दिया है। राज्य में इस वक्त 5 करोड़, साढे 9 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 28 साल से कम उम्र के एक करोड़, 28 लाख मतदाता हैं।
कांग्रेस पर सत्ता विरोधी लहर हावी होने के साथ ही युवाओं का मूड किस ओर है इस बात का साफ संकेत दे रहा है. वहीं भाजपा और उसके छात्र संगठनों के लिए अभी और मेहनत और मशक्कत करने की तरफ इशारा कर रहा हैं। भाजपा भले ही सत्ता विरोधी लहर को हथियार बनाकर सत्ता पाने का इंतजार कर रही हो, लेकिन बीटीपी, एसएफआई के अलावा निर्दलीयों की जीत ने उसकी भी सांस फुला दी है। यदि हनुमान बेनीवाल ने अपने उम्मीदवार उतार दिये होते, तो पश्चिम राजस्थान में एबीवीपी और एनएसयूआई का सूपड़ा साफ होने का खतरा भी बन सकता था।
कांग्रेस संगठन के लिहाज से यह छात्र संघ चुनाव इस बात का भी स्पष्ट संकेत देता है कि जनता से सीधे जुड़े नेताओं को नजरअंदाज करना कांग्रेस के लिए हर मोर्चे पर भारी पड़ेगा। खास तौर पर राजस्थान विश्वविद्यालय में जीत दर्ज कराने वाले सचिन पायलट कैंप के निर्मल चौधरी की बॉडी लैंग्वेज और शुरुआती बयानों से तो यही लगता है कि पायलट के बिना कांग्रेस को प्रदेश में कोई युवा पसंद नहीं करता है।
आसान भाषा में समझे तो संगठन के सक्रिय कार्यकर्ता यूथ कांग्रेस के निर्वाचित अध्यक्ष रहे विधायक मुकेश भाकर और एनएसयूआई के निर्वाचित अध्यक्ष रहे अभिमन्यु पूनिया हैं ना कि नियुक्त यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष गणेश घोघरा और आर्शीवाद से एनएसयूआई के अध्यक्ष बने हुये अभिषेक चौधरी के साथ।
कुल मिलाकर इस बार के छात्र संघ चुनाव से भाजपा और कांग्रेस सबक लेकर आने वाले विधानसभा, लोकसभा सहित अन्य चुनावों में युवा मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कवायद तेज करेंगे. लेकिन कांग्रेस के लिये साफ संकेत है कि जब तब सचिन पायलट, मुकेश भाकर, अभिमन्यू पूनिया जैसे नये और लड़ाका योद्धाओं को सम्मान नहीं दिया जायेगा, तब तक उसका राजस्थान में भाजपा से मुकाबला करना बेहद कठिन होगा।
एनएसयूआई का क्यों हुआ सूपड़ा साफ?
Siyasi Bharat
0
Post a Comment