Ram Gopal Jat
बीते दिनों जब एक टीवी चैनल का सौदा अडानी ग्रुप ने किया, तब कथित बड़े कहे जाने वाले एंकर रवीश कुमार ने लिखा कि उन्होंने एनडीटीवी चैनल से इस्तीफा नहीं दिया है, यह खबर उतनी ही सच्ची है, जितना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनको इंटरव्यू देने का तैयार हो गये हैं और अक्षय कुमार मुंबइया आम लेकर उनके घर के बाहर खड़े हैं। रवीश कुमार की प्रधानमंत्री से इस कुंठा के कई कारण हैं, जिनमें सरकारी विज्ञापन से लेकर वामपंथी एजेंडा और मुस्लिम तुष्टिकरण भी उनका प्रिय विषय है, इसलिये देश के करीब 80 फीसदी लोग उनको गंभीरता से नहीं लेते हैं।
किंतु एक बात जरुर विचारणीय है कि आखिर नरेंद्र मोदी इन लोगों को इंटरव्यू क्यों नहीं देते हैं? आखिर आठ साल प्रधानमंत्री रहने के बाद भी नरेंद्र मोदी ऐसा नहीं मानते हैं कि रवीश कुमार जैसे कुंठित एंकर्स को इंटरव्यू देकर जनता को सच बताने का काम क्यों नहीं करना चाहिये? क्यों मोदी इनको इंटरव्यू नहीं देते हैं? क्यों प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं में इनको जगह नहीं दी जाती है?
हो सकता है कि ऐसे ही कई सवाल आपके भी मन में उठ रहा हों, लेकिन इन सवालों के साथ सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर अपने विदेश दौरों पर प्रधानमंत्री मोदी पत्रकारों को क्यों नहीं ले जाते हैं, जबकि पूर्व के सभी प्रधानमंत्री अपने साथ भारत से पत्रकारों का एक पूरा ग्रुप लेकर जाते थे, उनको हवाई यात्रा करवाई जाती थी, उनको महंगे होटलों में रखा जाता था, विदेश से शॉपिंग करवाई जाती थी, उनकी महंगी यात्रा का बोझ देश के करदाताओं को उठाना पड़ता था। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मीडियाकर्मियों से दूरी बनाने और इंटरव्यू नहीं देने की चर्चा जरुर करेंगे, लेकिन उससे पहले यह जान लीजिये कि मोदी की विदेश यात्राओं पर कितना खर्च होता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल का आखिरी दौरा फरवरी महीने में दक्षिण कोरिया का किया था। दक्षिण कोरिया में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साल 2018 में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए 'सियोल शांति पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। पीएम मोदी को इस सम्मान के साथ 1 करोड़ 30 लाख रुपये की राशि भी मिली, जो उन्होंने नमामि गंगे परियोजना को समर्पित कर दिया। पीएम मोदी अपने पहले कार्यकाल के पांच साल में 93 विदेश दौरे कर जा चुके थे, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने दस साल के कार्यकाल में कुल 93 बार विदेश दौरे पर गए थे। यानी मनमोहन सिंह के 10 साल और मोदी के पांच साल बराबर हो गये।
आंकड़ों के मुताबिक पीएम मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के 5 साल के कार्यकाल में ही पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के 10 साल के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली थी। उस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश दौरों पर करीब 2021 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इस हिसाब से उनके एक दौरे पर औसतन 22 करोड़ रुपये खर्च हुए, तो मनमोहन सिंह की एक विदेश दौरे पर औसतन 27 करोड़ रुपये खर्च होते थे, वह भी जब समय करीब 10 साल पुराना था, यानी महंगाई कम होने के कारण खर्च भी कम होता था। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने इन दौरों पर कुल 480 समझौतों और एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। पांच साल के कार्यकाल में पीएम मोदी ने साल 2015 में सबसे ज्यादा 24 देशों का दौरे किये थे।
प्रधानमंत्री मोदी ने साल 2016 में 18 देश, 2017 में 19 देश और 2018 में भी उन्होंने 18 देशों का दौरा किया। साल 2019 में पीएम मोदी ने केवल दक्षिण कोरिया का ही दौरा किया। दक्षिण कोरिया जाने से पहले वे अर्जेंटीना गए थे। आपको याद होगा मोदी के इन दौरों की वजह से लोगों ने उनकी मजाक उड़ाना शुरू कर दिया था, लेकिन बाद में जब दूसरे देशों की भारत को वैश्विक मंच पर जरुरत पड़ी, तब ये देश बिना शर्त भारत को समर्थन दे रहे थे। मतलब यह है कि मोदी ने जो दोस्ती की, उसका फायदा भारत को मिला, खासकर जब धारा 370 को हटाया गया और अब, जबकि रूस यूक्रेन युद्ध के समय भारत के द्वारा रूस से सस्ते सौदे किये जा रहे हैं और अमेरिका नाराज हो रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी और मनमोहन सिंह के विदेश दौरों में एक बड़ा अंतर यह है कि मोदी के हर दौरे पर औसतन 22 करोड़ खर्च हुये, जबकि मनमोहन सिंह के दौरे पर 27 करोड़ खर्च होता था, मतलब हर दौरे पर 5 करोड़ का अधिक खर्चा आता था। एक फर्क यह रहा कि मोदी के साथ केवल खुद का एक विमान जाता है, जबकि मनमोहन सिंह के साथ एक अन्य विमान विदेश दौरों पर जाता था। आप सोच रहे होंगे कि यह अंतर क्यों था? असल में यही वह वजह है, जिसके कारण रवीश कुमार जैसे टीवी एंकर मोदी सरकार से नाराज दिखाई देते हैं।
उल्लेखनीय बात यह है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले जितने भी प्रधानमंत्री हुआ करते थे, वो सभी अपने विदेश दौरों पर पत्रकारों का एक प्रतिनिधि मंडल साथ लेकर जाते थे। हालांकि, यह बात भी सही है कि उन दौरों पर मीडिया संस्थानों की ओर से असली पत्रकारों के बजाये मशहूर न्यूज एंकर्स या मीडिया मालिकों को भेजा जाता था, जिनमें टीवी पर दिखने वाले बड़े बड़े नाम शामिल थे, जैसे रवीश कुमार, सुधीर चौधरी, अंजना ओम कश्यप इत्यादी शामिल थे। उनको प्रधानमंत्री के साथ एक अलग से प्लेन के द्वारा ले जाया जाता था, और उनके लिये उसी होटल में रहने का इंतजाम किया जाता था, जिसमें खुद प्रधानमंत्री को ठहराया जाता था। यही कारण है कि मनमोहन सिंह के हर दौरे पर 5 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च होता था।
अब बात यदि मोदी द्वारा पत्रकारों का प्रतिनिधि मंडल विदेश दौरों पर नहीं ले जाने की करें तो इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि मोदी सरकार ने विदेश दौरों पर खर्च घटाने के लिये अपने साथ किसी भी अतिरिक्त स्टाफ को हटा दिया गया। साथ ही जिन पत्रकारों को साथ ले जाया जाता था, जिसपर 5 करोड़ का खर्च होता था, उनको भी ले जाना बंद कर दिया गया। साथ ही बड़ा कारण यह भी रहा है मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब दंगों के बाद उनपर आरोप लगे तो 2004 से 2014 तक यूपीए की सरकार के द्वारा मोदी को बदनाम करने के लिये टीवी चैनल्स का इस्तेमाल किया गया, जिसके कारण मोदी को इन चैनल्स पर से विश्वास खत्म हो गया।
उस दौर में मोदी के खिलाफ एक एजेंडा चलाया गया, जिसके कारण उनको हर जगह विवाद में घसीटने का प्रयास किया जाता था। यहां तक की मोदी से हर बार इंटरव्यू में वही सवाल बार बार पूछे जाते थे, जिनके जवाब मोदी कई बार पहले दे चुके थे। इन सबसे परेशान होकर मोदी ने टीवी चैनल्स को इंटरव्यू देना ही बंद कर दिया। कुछ बड़े नाम थे, जैसे राजदीप सरदेसाई और करण थापर, जो एक एजेंडे के तहत तत्कालीन केंद्र की यूपीए सरकार के इशारे पर काम करते थे, वो मोदी के साथ इंटरव्यू में इस तरह की रचना रचते थे कि अधिक से अधिक उनको बदनाम करने का काम किया जाये।
एक और बदलाव मोदी सरकार ने यह किया कि लगातार घाटे में चल रहे दूरदर्शन को फिर से फायदे में लाने के लिये प्रधामनंत्री की यात्राओं और कार्यक्रमों की न्यूज फीड निजी टीवी चैनल्स के बजाये दूरदर्शन से कवरेज करवाकर उनसे खरीदने का चलन शुरू किया गया। परिणाम यह हुआ कि आज प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या मंत्रियों के कार्यक्रम होते हैं, या सरकारी कार्यक्रम होते हैं, उसकी न्यूज फीड के लिये इन टीवी चैनल्स को दूरदर्शन से करार करना होता है। दूरदर्शन जो कवरेज करता है, उसी को इन्हें दिखाना होता है। इसके कारण दूरदर्शन को घाटे से उबार लिया गया है।
ये ऐसे कारण हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बड़े नाम वाले न्यूज एंकर्स को विदेशी दौरों पर साथ ले जाना बंद कर दिया गया है। इससे एक ओर तो प्रधामनंत्री की यात्राओं पर खर्च कम हो रहा है, दूसरा मनमर्जी से चलने वाले समाचारों पर रोक लग गई है। जो एजेंडा चलाते थे, उनको एजेंडा बंद हो गया है। साथ ही दूरदर्शन की वैल्यू फिर से बन गई है, जिस चैनल को ये प्राइवेट टीवी चैनल वाले खत्म करने का प्रयास शुरू कर चुके थे। इसके अलावा प्रधानमंत्री को कहीं भी खड़ा करके सवाल पूछने का चलन खत्म हो गया है। अब प्रधानमंत्री जब चाहते हैं, तभी मीडिया वालों से बात करते हैं।
मोदी को टीवी मीडिया से इतना नफरत क्यो है?
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