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पीएम मोदी को आइना दिखाना अध्यक्ष को पड़ सकता है भारी

Ram Gopal Jat
वैसे तो राजनीति में कोई भी आजीवन रिटायर नहीं होना चाहता, लेकिन कुछ नेताओं ने खुद के लिये रिटायर होने की आयुसीमा तय करके नजीर पेश की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं और अपनी पार्टी के नेताओं के लिये स्वत: 75 साल की आयुसीमा तय की है, जबकि उनसे आगे बढ़कर राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां ने भी खुद की रिटायरमेंट की उम्र बता दी है। मोदी के बयान पर क्रॉस बयान देने की किसी की हिम्मत नहीं है, इसलिये सब उसको स्वीकार करते हैं, लेकिन सतीश पूनियां उम्र और राजनीति अनुभव में कई नेताओं से काफी छोटे हैं, इसलिये उनके बयान पर भाजपा में बवंडर खड़ा होता दिखाई दे रहा है। तीन दिन पहले डॉ. सतीश पूनियां ने एक कार्यक्रम में कहा था कि वह जब 70 साल के हो जायेंगे, तब स्वयं ही रिटायर हो जायेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि यह आयुसीमा उन्होंने खुद के लिये खींच रखी है, किसी अन्य को वह इस मामले में कोई राय नहीं दे रहे हैं। सतीश पूनियां के इस बयान के बाद भाजपा के कई नेता असहज हो गये। कुछ ने दबी जुबान में इसको अपने उपर लेते हुये विरोध किया तो कुछ ने खुलेआम कहा है कि राजनीति में रिटायर होने की सीमा काम करने के सामर्थ्य से देखी जानी चाहिये, ना कि उम्र के हिसाब से। भाजपा के करीब 25 नेता ऐसे हैं, जो इस उम्र में खुद को रिटायर महसूस कर रहे हैं। इसलिये एक वर्ग ने सतीश पूनियां के बयान को लेकर प्रतिक्रियाएं दी हैं।
हालांकि, सतीश पूनियां ने आयुसीमा खुद के लिये तय की है, लेकिन क्या कारण है कि उनके बयान से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से लेकर वर्तमान में कई सांसदों पर रिटायमेंट का दबाव बन गया है? साथ ही करीब 8 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा राजनीति में संन्यास की सीमा 75 साल तय करने के बाद सतीश पूनियां के इस बयान पर भी सवाल उठ रहे हैं? क्या वास्तव में सतीश पूनियां ने वसुंधरा राजे को राजनीति आउट करने के लिये यह बयान दिया है? क्या उनसे यह बयान दिलवाया गया है? क्या सतीश पूनियां ने नरेंद्र मोदी द्वारा तय की गई सीमा को भी तोड़ने का प्रयास किया है? क्या सतीश पूनियां की इस सीमारेखा के बाद राजस्थान भाजपा के कई नेताओं की राजनीति पर फुल स्टॉप लगने वाला है?
इस वीडियो में सतीश पूनियां की मंशा और अन्य नेताओं पर पड़ने वाले प्रभाव की चर्चा करेंगे, साथ ही वसुंधरा राजे की राजनीति पर संभावित नियंत्रण पर भी बात करेंगे और यह भी तुलनात्मक चर्चा करेंगे कि सतीश पूनियां और नरेंद्र मोदी द्वारा बताई गई रिटायरमेंट की सीमा में से कौनसी आयुसीमा सही मानी जा सकती है? उससे पहले उस हस्ती के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने बरसों पहले सियासत में रिटायरमेंट की आयुसीमा 65 साल बताई थी। नानाजी देशमुख ने कहा था कि सरकार कर्मचारियों को 60 साल की उम्र में रिटायर्ड कर देती है और राजनीतिक रिटायरमेंट की उम्र 65 साल होना चाहिए। सतीश पूनिया ने भी कहा कि मैं इसमें 5 साल और जोड़ कर देता हूं और मेरे हिसाब से 70 साल की उम्र में राजनीतिक सेवानिवृत्ति लेकर नई पीढ़ी को मार्गदर्शन और संरक्षण देने का काम करना चाहिए। मैं यह कमिटमेंट करता हूं कि 70 साल की उम्र में मैं राजनीतिक जीवन से रिटायरमेंट ले लूंगा।
नानाजी देशमुख भाजपा के नेता और समाजसेवी थे। उनको अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने राज्यसभा सांसद बनाया था और दूसरा सबसे बड़े सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया था। इसके बाद साल 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने उनको भारत रत्न से नवाजा था। इसलिये सतीश पूनिया का बयान काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि नानाजी देशमुख की मंशा को मोदी और भाजपा भी नहीं नकार सकती। लिहाजा राजस्थान के सांसदों—विधायकों को अगर इस उम्र सीमा की कसौटी में कसा जाये तो कई अगला चुनाव नहीं लड़ पायेंगे। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और विधायक कैलाशचंद मेघवाल 88 साल के हो गये हैं, वह वैसे भी बाहर होंगे।
पूर्व गृहमंत्री और नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया 77 साल के हो चुके हैं, वह भी बाहर हो जायेंगे। साल 2023 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 70 साल की हो जायेंगी, तो भी स्वत: सन्यास ले सकती हैं। यदि पार्टी ने 70 साल में रिटायरमेंट का निर्णय लिया तो पूर्व मंत्री कालीचरण सराफ, राजेंद्र सिंह राठौड़, नरपत सिंह राजवी समेत भाजपा के 71 विधायक, 24 सांसद और 4 राज्यसभा सांसदों में से 2023 में 38 सांसद—विधायक 70 साल से अधिक होने पर चुनाव लड़ने में अयोग्य हो जायेंगे। वर्तमान विधायकों में से 12 विधायक, 5 लोकसभा सांसद, 3 राज्यसभा सांसद 2023 के विधानसभा चुनाव तक 70 साल से अधिक हो जायेंगे। इसी तरह से 18 पूर्व विधायक और विधायक प्रत्याशी भी स्वत: ही रिटायर हो जायेंगे। हालांकि, मोदी द्वारा तय की गई 75 साल की आयुसीमा के हिसाब से देखा जाये तो केवल कैलाशचंद मेघवाल, गुलाबचंद कटारिया, वासुदेव देवनानी, सूर्याकांता व्यास जैसे नेताओं के टिकट कटना तय है।
असल में साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बनी मोदी सरकार ने तय किया था कि 75 साल से पार नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में जगह दी जायेगी। उस वक्त लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सरीखे नेताओं को मंत्री मंडल में जगह नहीं दी गई थी, तब मोदी ने कहा था कि राजनीति में 75 साल के बाद खुद ही रिटायर हो जाना चाहिये। सवाल यह उठता है कि जब सरकारी कर्मचारियों को 58, 60 या 64 साल में काम करने योग्य नहीं मानकर रिटायर किया जाता है, तो फिर राजनीति में आयुसीमा क्यों नहीं है? मोदी ने इसी को ध्यान में रखते हुये 2019 के चुनाव में अपवाद को छोड़कर किसी भी 75 साल से उपर वाले नेता को टिकट नहीं दिया। तब यह माना गया कि मोदी भी खुद 75 साल में रिटायर हो जायेंगे। मोदी इस वक्त 72 साल के हैं, जबकि सतीश पूनियां 57 साल के हैं। खुद गृहमंत्री अमित शाह भी 57 साल के हैं।
राजनीति में मोदी द्वारा रिटायर होने की उम्र से अधिकांश नेता मन नहीं करने पर भी सहमत हो जाते हैं, लेकिन राजस्थान भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनियां द्वारा जब खुद के लिये रिटायरमेंट की उम्र 70 साल तय ​की गई तो कई नेताओं को अच्छा नहीं लगा। लोगों सतीश पूनियां के इस बयान को वसुंधरा राजे के रिटायरमेंट से जोड़कर देखा है। पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने पूर्व उपराष्ट्रपति भैंरोसिंह शेखावत का उदाहरण देते हुये कहा है कि जब तक व्यक्ति का शरीर साथ देता है, तब तक रिटायर नहीं होना चाहिये, जबकि पूर्व मंत्री कालीचरण सराफ, जो कि सतीश पूनियां के आलोचक और वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते हैं, उन्होंने कहा कि यह बयान उनका निजी बयान है, इससे कोई इत्तेफाक नहीं रखता है।
आपको याद होगा पिछले दिनों ही केंद्र से निर्देश मिले थे कि 71 साल से उपर के नेताओं की लिस्ट तैयार कर केंद्रीय नेतृत्व को सौंपनी है। उस सूचना के बाद से ही राजस्थान भाजपा के कई नेता खुद को अधिक सक्रिय और चुस्त—दुरुस्त दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। कई नेता जो कार्यकर्ताओं से मिलती ही नहीं थे, वो जनसुनवाई की फोटो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डालने लगे हैं। एक—दो नेता तो ऐसे हैं जो क्षेत्र में जाने और वहां अपने द्वारा जनता के लिये खुले होने की पोस्ट लिखकर भी खुद को फुल सक्रिय दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। बाकि जो नेता 3—4 साल निष्क्रिय रहने के बाद सत्ता की बारी आने की संभावना पर अपने द्वारा लोगों के लिये खोल रहे हैं, लोगों से मिल रहे हैं और उनके साथ फोटो खिंचवाकर मीडिया, सोशल मीडिया पर परोस रहे हैं, ताकि आलाकमान को लगे कि वह हमेशा जनता की सेवा में तैयार रहता है।
सवाल यह उठता है कि क्या सतीश पूनियां ने पीएम मोदी से भी आगे बढ़कर राय दी है? मोदी ने 2014 में 75 पार को स्वत: राजनीति से आउट होने का संदेश दिया था, जबकि सतीश पूनियां ने किसी को राय नहीं दी, बल्कि खुद के लिये रिटायर होने की सीमा तय की है। ऐसे में मोदी और पूनियां के बयान को एक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। हालांकि, अध्यक्ष होने के कारण प्रदेश में पार्टी के मुखिया हैं ओर ऐसे में उनकी खुद पर लागू की जाने वाली राय से कई नेता सबक लेकर सन्यास ले सकते हैं।

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