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खत्म हो जायेगी कांग्रेस पार्टी

Ram Gopal Jat
कांग्रेस में नया अध्यक्ष के चुनाव का ऐलान हो चुका है। इस बड़ी खबर के साथ सियासी हलकों में चर्चा तेज हो गई है कि आखिरकार अब कांग्रेस पार्टी नया अध्यक्ष किसे चुनेगी? कांग्रेस का इतिहास देखें तो ज्यादातर समय गांधी परिवार से ही अध्यक्ष रहा है। कांग्रेस पार्टी के भीतर पिछले काफी समय से गांधी परिवार से अलग अध्यक्ष चुनने को लेकर दबाव बनाया जा रहा था। इसी को लेकर जी-23 गुट भी बना और पार्टी के दिग्गज नेताओं ने बगावती सुर भी छेड़े। अब नये अध्यक्ष के चुनाव के ऐलान के साथ ही कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या पार्टी इस बार नया संदेश देने जा रही है? लंबे समय बाद ऐसा मौका है, जब देश की 137 साल पुरानी राजनीतिक पार्टी चुनाव के जरिए अपना अध्यक्ष चुनने जा रही है। करीब 26 साल बाद यह पहला अवसर है, जब पार्टी के नेता चुनाव के जरिए अपना लीडर चुनेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की तारीख तय करने के लिए कांग्रेस वर्किंग कमिटी की एक दिन पहले बैठक हुई। कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव 17 अक्टूबर को होगा। इसके लिए 22 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी होगा, 24 सितंबर से नामांकन शुरू होगा, 17 अक्टूबर को वोटिंग होगी और 19 अक्टूबर को काउंटिंग के बाद नतीजे सामने आएंगे।
राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना दिसंबर 1885 को हुई थी। आजादी के बाद अब तक पार्टी की कमान 16 लोग संभाल चुके हैं, जिसमें गांधी परिवार के पांच अध्यक्ष रहे हैं। वर्तमान में कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं और वह कांग्रेस के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर रहने वाली महिला हैं। कांग्रेस के इतिहास पर नजर डालें तो गांधी परिवार से अलग जो शख्स पार्टी का अध्यक्ष चुना गया, वो सीताराम केसरी थे, बाकि किसी को चुनाव के जरिये नहीं चुना गया था। सीताराम केसरी ही एकमात्र शख्स थे, जिनको चुनावी प्रक्रिया के जरिए कांग्रेस ने अपना अध्यक्ष चुना था। वह कलकत्ता अधिवेशन में पार्टी के मुखिया चुने गये थे और करीब दो सालों तक उन्होंने पार्टी की कमान संभाली है। हालांकि, उनको अपमानित करके कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और 1998 में पहली बार सोनिया गांधी के हाथ में कमान दे दी गई।
बिहार के वरिष्ठ कांग्रेस नेता सीताराम केसरी को 1996 में कोलकाता अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गये थे। 12वीं लोकसभा चुनाव के बाद देशभर में कांग्रेस को महज 142 लोकसभा सीटें ही आईं थी। इस चुनाव में सोनिया गांधी ने 130 से ज्यादा रैलियों को संबोधित किया था बावजूद वह कांग्रेस में अपनी अमेठी की सीट भी हार गई थी। सीताराम ने पूरे चुनाव में एक भी रैली को संबोधित नहीं किया था। पार्टी के कई नेता उनको अपना नेता नहीं मानते थे और सीताराम केसरी उनको अखर रहे थे। 14 मार्च 1998 को लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई थी। प्रणब मुखर्जी के घर पर कार्य समिति के करीब 13 नेता उनके घर पर इकट्ठा हुए थे, प्रणब मुखर्जी ने सीताराम केसरी को पार्टी के लिए किये गये कामों के लिए धन्यवाद कहते हुए इस्तीफा देने की गुजारिश की।
इस्तीफे की बात पर सीताराम केसरी नाराज हो गये और उस बैठक को छोड़ कर चले गये। जिसके बाद उसी कार्यसमिति में सर्वसम्मति से सोनिया गांधी को कांग्रेस का नेता चुन लिया गया। इस बैठक में जितेंद्र प्रसाद, शरद पवार और गुलाम नबी आजाद जैसे नेता मौजूद थे। यह भी संयोग है कि शरद पवार और गुलाम नबी आजाद दोनों ही कांग्रेस के सदस्य नहीं हैं। शरद पवार ने जहां अपनी अलग पार्टी बना ली है तो गुलाम नबी आजाद ने हाल ही में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, वह भी अपनी अलग पार्टी बनाने की घोषणा कर चुके हैं। साल 1996 में कांग्रेस के अध्यक्ष का मतदान के जरिये चुनाव हुआ था। हालांकि, दुर्भाग्यवश अध्यक्ष सीताराम केसरी को दो साल बाद ही अपमानित कर पद से हटा दिया गया और एक बार फिर से गांधी परिवार का पार्टी पर कब्जा हो गया था। हालांकि, साल 2000 में भी चुनाव हुआ था, जिसमें सोनिया गांधी अध्यक्ष का चुनाव जीतने में सफल रही थीं। सोनिया गांधी के 24 साल के अध्यक्षीय कार्यकाल में केवल पौने दो साल तक राहुल गांधी अध्यक्ष बने थे, बाकी पूरे समय कार्य सोनिया गांधी ने ही संभाला है। जब 2017 में राहुल गांधी अध्यक्ष बने थे, तब यह माना जा रहा था कि अब चुनाव के जरिये ही अध्यक्ष चुना जायेगा, लेकिन उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव की हार से हताश होकर इस्तीफा दे दिया। तब से वह गैर गांधी को अध्यक्ष बनाने पर अड़े हुये हैं। आज भी हालात यही है कि राहुल गांधी की जिद के आगे आखिरकार कांग्रेस पार्टी को अपना चुनाव कार्यक्रम तय करना ही पड़ा है।
किंतु सबकी नजरें इस बात पर है कि क्या राहुल गांधी चुनाव लड़ने को तैयार हो जायेंगे? क्योंकि यदि राहुल गांधी ने अध्यक्ष का चुनाव लड़ा तो यह भी तय है कि कोई दूसरा व्यक्ति नोमिनेशन फाइल करेगा ही नहीं। और यदि राहुल गांधी इस चुनाव से खुद को दूर कर लेते हैं, तो इस बात की पूरी संभावना है कि गांधी परिवार अपने वफादार के तौर पर अशोक गहलोत को आगे कर दे। यदि ऐसी स्थिति आई तो संभावना इस बात की भी है कि जी23 के नेताओं में से कोई एक नेता भी अध्यक्ष का चुनाव लड़ने को तैयार हो जाये। इस चुनाव में करीब 9000 मतदाता वोट करेंगे। पूरे देश की करीब 4100 विधानसभा सीटें हैं, जहां पर प्रत्येक सीट पर करीब दो ब्लॉक हैं। इसके साथ ही एआईसीसी के भी लगभग 1000 सदस्य वोटिंग में हिस्सा ले पायेंगे। साल 2000 में आखिरी बार सोनिया गांधी चुनाव लड़कर अध्यक्ष बनी थीं, तब उनके सामने जितेंद्र प्रसाद ने भी चुनाव लड़ा था, जिनके साथ राजेश पायलट और माधवराव सिंधिया जैसे दिग्गज नेता थे, लेकिन 7542 वोटों में से जितेंद्र प्रसास को केवल 94 वोट मिले थे। उससे पहले साल 1996 में सीताराम केसरी के सामने राजेश पायलट और शरद पवार के बीच अध्यक्ष के लिये मुकाबला हुआ था, जिसमें 7463 में से 6227 वोट लेकर सीताराम केसरी अध्यक्ष बने थे। हालांकि, उनको 1998 में इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया गया था। सीताराम केसरी को जिस अपमानित ढंग से डरा—धमकाकर इस्तीफा दिलाया गया था, वैसा उदाहरण कांग्रेस में कभी नहीं रहा।
सीताराम केसरी के इस्तीफे के बाद से अब तक सोनिया गांधी का युग चल रहा है। हालांकि, 2017 में सर्वसम्मति से राहुल गांधी को अध्यक्ष चुना गया था, तब किसी ने भी अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ा था। किंतु 2019 के लोकसभा चुनाव की हार के बाद राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया। तभी से राहुल गांधी अध्यक्ष के लिये गैर गांधी को बनाने पर जोर दे रहे हैं। अब जिस तरह के बयान सामने आ रहे हैं, उससे अध्यक्ष पद की लड़ाई जोरदार होने की संभावना है। इसी सिलसिले में मनीष तिवारी और पृथ्वीराज चव्हाण का बयान काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। चव्हाण ने साफ कहा है कि यदि गांधी परिवार ने कठपु​तली अध्यक्ष बनाकर बैकसीट से ड्राइविंग करने की कोशिश की तो कांग्रेस बच नहीं पायेगी।
इसी तरह से पार्टी छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद भी आरोप लगाया है कि पार्टी में जो राहुल गांधी की चापलुसी करते हैं, उनको ही पद मिलता है, पार्टी में प्रतिभा की पहचान नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि यदि पार्टी ने बदलाव नहीं किया तो कांग्रेस खत्म हो जायेगी। हालांकि, गांधी परिवार के सबसे वफादार माने जाने वाले अशोक गहलोत ने कहा है कि चापलुसी कोई नहीं करता है, बल्कि जो काम करता है, वही पद पाता है। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि यदि राहुल गांधी चुनाव लड़ने को तैयार नहीं होते हैं, तो अशोक गहलोत ही गांधी परिवार की तरफ से उम्मीदवार होंगे। अशोक गहलोत ने चुनाव लड़ा तो पहली बात तो उनको राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना होगा, दूसरी बात यह है कि कांग्रेस पार्टी एक बार फिर एतिहासिक रूप से टूट सकती है।
इधर, अशोक गहलोत केवल राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने पर अड़ रहे हैं, लेकिन सोनिया गांधी ने कहा तो उनको लड़ना ही होगा। गहलोत किसी भी सूरत में मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ना चाहते हैं, क्योंकि उनको पता है कि यदि वह सीएम पद से हटे तो सचिन पायलट का मुख्यमंत्री बनना तय है, जो वह कतई बर्दास्त नहीं करेंगे। ऐसे में गहलोत भी सोनिया गांधी के सामने यह शर्त रख सकते हैं कि वह भले ही अध्यक्ष बन जायें, लेकिन अगले सवा साल तक सीएम पद पर भी बने रहेंगे। यदि सोनिया गांधी इस बात​ पर मान जाती हैं, तो फिर राजस्थान की राजनीति में भूचाल आना भी पक्का है, क्योंकि ऐसी स्थिति में सचिन पायलट का धैर्य जवाब दे जायेगा, जो कांग्रेस की सरकार गिराने या उनको पार्टी छोड़ने का मजबूर कर सकता है।

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