Ram Gopal Jat
राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री और पूर्व पीसीसी चीफ सचिन पायलट अगस्त के आखिर में या सितंबर के शुरुआत में राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। इसके साथ ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे, जो पद काफी समय से कार्यवाहक अध्यक्ष सोनिया गांधी के भरोसे चल रहा है। पायलट के मुख्यमंत्री बनने का सबसे बड़ा राजनीतिक योग इसी महीने में बन रहा है, तो गहलोत ने भी परोक्ष रुप से इस बात को स्वीकार कर लिया है कि यदि राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बनेंगे तो वह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से इनकार नहीं करेंगे।
इन दोनों ही संभावित घटनाओं की रिपोर्ट में दोनों विषयों पर विश्लेषण करें कि आखिर क्यों सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने और अशोक गहलोत के केंद्र में जाकर अध्यक्ष बनने की पूरी संभावना है। इस बीच आप यह जान लीजिये कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट कैंप एक बार फिर से आमने सामने आ गये हैं। हालांकि, इस बार पार्टी स्तर पर नहीं है, लेकिन राजनीति की पहली सीढ़ी मानी जाने वाले विवि के छात्रसंघ चुनाव में दोनों गुटों ने बाहें चढ़ा ली हैं।
राजस्थान के सबसे पुराने और सबसे बड़े सरकारी विवि, राजस्थान यूनिवर्सिटी में 26 तारीख को चुनाव है, जिसको लेकर एनएसयूआई ने रितु बराला को मैदान में उतारा है, जबकि पायलट कैंप के माने जाने वाले मंत्री मुरारीलाल मीणा की बेटी निहारिका जोरवाल ने टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर एनएसयूआई से बगावत कर दी है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अगले महीने होने वाला है। इसकी तैयारी जोरों पर चल रही है, लेकिन अध्यक्ष के तौर पर उचित उम्मीदवार ही नहीं मिल रहा है। राहुल गांधी पहले अध्यक्ष रह चुके हैं और कांग्रेस के अधिकांश नेता चाहते हैं कि राहुल ही फिर से अध्यक्ष बनें, लेकिन अभी तक वह मान नहीं रहे हैं। दूसरी ओर प्रियंका गांधी वाड्रा के नाम पर विचार करने से खुद सोनिया गांधी इनकार कर चुकी हैं। राहुल गांधी चाहते हैं कि कांग्रेस ने अध्यक्ष का चुनाव हो और वह गांधी परिवार से नहीं होना चाहिये, लेकिन कांग्रेस उनको ही अध्यक्ष बनाना चाहते हैं।
ऐसे में अध्यक्ष पद के लिये राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम चल पड़ा है। कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में अशोक गहलोत काफी सीनियर हैं, जिनपर गांधी परिवार को पूरा भरोसा है। इसलिये अशोक गहलोत भी राजस्थान की तमाम समस्याओं को भुलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हैं। गहलोत को लगता है कि पीएम मोदी पर हमला करने से वह बड़े नेता बन जायेंगे।
कई बार नेताओं को यह गलतफहमी हो जाती है कि अपने से बड़े नेता पर आरोप लगाकर ही बड़ा बना जा सकता है। अशोक गहलोत को जब भी राज्य के बेलगाम अपराध और कानून की उड़ती धज्जियों से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं, तो वह राजस्थान के बजाये केंद्र के खिलाफ बोलने लगते हैं।
एक मीडिया समूह से बात करते हुये भी अशोक गहलोत ने अपने उसी रवैये को जारी रखा। इस इंटरव्यू में सवाल पूछा गया था कि यदि राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं बने, तो क्या वह अध्यक्ष बनने को तैयार होंगे? इसपर भी गहलोत ने बार बार मोदी सरकार पर आरोप लगाने का काम किया और गांधी परिवार के गुणगान करने में ही जवाब समझे। जब उनसे राहुल गांधी के साफ इनकार करने और उनको अध्यक्ष बनाने का सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने बनेंगे, हालांकि, यह नहीं कहा है कि राहुल नहीं बनेंगे तो कोई और अध्यक्ष बन जायेगा। इसका मतलब यह निकलता है कि पहली बात तो राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, ताकि उनकी वफादारी पर सवाल नहीं उठे, दूसरी बात यह कहना चाहते हैं कि यदि राहुल नहीं बनते हैं, तो कांग्रेस उनको बना सकती है, इससे उनको कोई एतराज भी नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि यदि राहुल गांधी ने इनकार कर दिया और अशोक गहलोत को अध्यक्ष बनाना पड़ा, तो उनको प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना होगा और यदि उनको सीएम पद छोड़ना पड़ेगा, तो एकमात्र उम्मीदवार सचिन पायलट ही बचते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष का फैसला सितंबर तक होना ही है, यदि ऐसा नहीं किया गया तो पार्टी की मान्यता खतरे में पड़ सकती है। ऐसे में राहुल ने मना किया तो निर्णय अशोक गहलोत पर अटकेगा, जो उनको सीएम पद से इस्तीफा देने के लिये जरुरी होगा। मतलब यह है कि अगस्त के महीने में ही सचिन पायलट के भाग्य का फैसला होना है।
कुछ लोगों का मानना है कि सचिन पायलट को फिर से अध्यक्ष बनाया जायेगा, लेकिन जो राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं, उसके हिसाब से सचिन पायलट यदि प्रदेश अध्यक्ष बन भी जाते हैं, तो भी कांग्रेस की सत्ता रिपीट होना लगभग नामुनकिन है। इसका यह मतलब हुआ है कि सचिन पायलट को सीएम बनाकर ही सत्ता पाई जा सकती है। अब सवाल यह उठता है कि यदि पायलट को सीएम बना दिया जायेगा, तो बचे हुये एक साल में वह कौनसा चमत्कार कर देंगे, जिससे जनता को कांग्रेस पर भरोसा हो जायेगा? इसका जवाब यह है कि पहली बात तो किसी में यदि काम करने की इच्छाशक्ति हो, तो चार माह में ही चमत्कार करके दिखा सकता है, फिर भी अगर वादे पूरे नहीं होते हैं, तो जो कुछ काम करके दिखायेंगे, उनको आधार बनाकर पायलट फिर से जनता के सामने सरकार बनाने के लिये वोट की अपील कर सकते हैं, वह कह सकते हैं कि समय कम मिला, इसलिये वादे पूरे नहीं हुये हैं और इसलिये उनको एक मौका और दिया जाये।
अब बात अगर सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस की सत्ता रिपीट होने की संभावनाओं की बात करें तो आम तौर पर राजस्थान में यह माना जाता है कि जब भी सत्ता बदलने की संभावना पैदा होती है, तब सरकार के खिलाफ आखिरी दो साल में सबकुछ तय हो जाता है। साल 1993 से लेकर अब तक यही चल रहा है। हालांकि, तब से अब तक पूरे पांच साल एक ही व्यक्ति मुख्यमंत्री रहता आया है। किंतु इस वक्त प्रदेश में सीएम का चेहरा बदलता है, तो ऐसी भी संभावना है कि जनता नये चेहरे के दम पर फिर से सत्ता उसी दल को सौंप दे।
दूसरी बात यह है कि जब प्रदेश की जनता को एक बार कांग्रेस से यदि विश्वास उठ गया है, तब चाहे सचिन पायलट को अंतिम साल में मुख्यमंत्री बना भी दिया जायेगा तो भी दुबारा जीतना आसान नहीं होगा। हालांकि, ऐसी हालत में कांग्रेस पार्टी भाजपा को प्रचंड़ बहुमत से सरकार बनाने से रोक सकती है, जो अगले पांच साल में फिर से जीवित होने की संभावना पैदा करती है। कुल मिलाकर देखा जाये तो अशोक गहलोत का राजस्थान मुख्यमंत्री पद से हटना और सचिन पायलट सीएम बनना कांग्रेस पार्टी के लिये जरुरी भी है और अगले चुनाव के लिये हितकारी भी है।
सचिन पायलट मुख्यमंत्री और अशोक गहलोत पार्टी अध्यक्ष होंगे
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