Ram Gopal Jat
कहा जाता है कि राजनीति कुछ भी करवा सकती है। राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं है, और जो दिखता है, वह होता नहीं है। इस वीडियो में हम ऐसे ही दो मुद्दों को लेकर बात करेंगे, जिनमें हो कुछ और रहा है, जबकि दिखाई कुछ और ही रहा है। पहले इन दो मुद्दों की बात कर लेते हैं, फिर आपको यह समझायेंगे कि सच यह नहीं है, जो दिखाई दे रहा है, बल्कि सच वह है, जो छुपाया जा रहा है। बहराहाल, राजस्थान में अगले साल के दिसंबर में विधानसभा चुनाव होंगे, यानी चुनाव में करीब सवा साल का समय बाकी है, लेकिन जिस तरह से राजनीतिक मुद्दों ने जोर पकड़ा है, उससे साफ है कि आने वाले समय में यदि सियासी दलों ने इनका समाधान नहीं किया तो चुनाव में बहुत बड़ी मुसीबत बन जायेंगे। बहरहाल पूर्वी राजस्थान और पश्चिमी राजस्थान इसके केंद्र बन गये हैं। ओबीसी आरक्षण का मुद्दा पश्चिमी राजस्थान में गरमाया हुआ है, तो पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों की महात्वकांक्षी परियोजना ईआरसीपी ने सरकार की हलक में हाथ डाल दिया है।
राजस्थान में ओबीसी आरक्षण पर पंजाब कांग्रेस प्रभारी एवं पूर्व मंत्री हरीश चौधरी ने गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हरीश चौधरी ने दो दिन पहले बाड़मेर में एक रैली को संबोधित करते हुए आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया। हरीश चौधरी प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि ओबीसी में विसंगतियों के दुरस्त करने का निर्णय होगा... होगा और होकर रहेगा।
कांग्रेस सरकार के बायतू विधायक हरीश चौधरी ने राजस्थान में ओबीसी आरक्षण बहाल करो की मुहिम चला रखी है। हरीश चौधरी कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं। ओबीसी आरक्षण में 2018 में किए गए संशोधन के खिलाफ सोमवार को बाड़मेर जिला मुख्यालय से इस ओबीसी आरक्षण विसंगति को दूर करने को लेकर आंदोलन हुआ। हजारों की संख्या में युवा सड़क पर उतर आए। जहां पर पूर्व मंत्री और बायतु विधायक हरीश चौधरी और पूर्व सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी के नेतृत्व में हजारों की संख्या में युवाओं की भीड़ ने बाड़मेर जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन कर रैली निकाली और और जिला कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपकर जल्द ओबीसी आरक्षण को बहाल करने की मांग की।
हरीश चौधरी ने कहा कि जिस तरीके से युवा अपने हकों के प्रति जागरूक हैं, उससे यह लग रहा है कि हम चुनावों से पहले ही अपने हक और अधिकार की लड़ाई आरक्षण को बहाल करवा रहे हैं। पूर्व सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी ने धरना स्थल पर युवाओं की भीड़ को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार ने समय रहते इस आदेश को वापस नहीं लिया तो युवाओं से जल्द जयपुर कुछ करने का आह्वान किया और सरकार से दो-दो हाथ करने की चेतावनी भी दे डाली, जिसके बाद युवाओं ने कर्नल सोनाराम चौधरी की बात का जबरदस्त समर्थन करते हुए जमकर नारेबाजी की।
दरअसल, राजस्थान में सरकारी भर्तियों में रोस्टर फॉर्मूला 1997 में लागू किया गया था, जिसके पीछे उद्देश्य था कि सरकारी नौकरियों के पदों में हर वर्ग को समान प्रतिनिधित्व दिया जा सके। रोस्टर फॉर्मुले से भर्ती को लेकर आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों का कहना है कि उन्हें नुकसान झेलना पड़ता है। कई अभ्यर्थियों का कहना है कि सामान्य पदों पर चयन होने वाले आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों की गणना सामान्य पदों में होनी चाहिए, लेकिन 2010 के बाद से ऐसा नहीं हो रहा है। जिसके चलते आरक्षित वर्ग के जिन अभ्यर्थियों का चयन सामान्य पदों पर हुआ उनकी गणना आरक्षित वर्ग में होती है, जिससे आरक्षित, यानि ओबीसी पदों की संख्या अगले साल के लिए कम हो जाती है।
उदाहरण से समझें तो आरएएस भर्ती 2021 में सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति में ओबीसी के लिए पदों की जीरो थी, लेकिन राजस्थान में ओबीसी वर्ग को 21 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। हालांकि इस मामले पर विरोध के बाद आरएएस 2021 की भर्ती में ओबीसी वर्ग के लिए पदों की संख्या 15 की गई थी। ऐसे में यह मामला सरकार के लिये जल्द से जल्द फैसला लेने वाला बन गया है।
इधर, पूर्वी राजस्थान में ईआरसीपी को लेकर सरकार बुरी तरह से घिर गई है। भाजपा के सांसद और पूर्वी राजस्थान के बड़े नेता किरोडीलाल मीणा ने विश्व आदिवासी दिवस पर दौसा के मीणा हाईकोर्ट में सभा करने के बाद मंगलवार को मुख्यमंत्री आवास घेरने के लिये निकल पड़े। पुलिस ने उनको रोकने का प्रयास किया, लेकिन नहीं रुके। आखिर सरकार के मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने बीच रास्ते में पहुंचकर इस मामले में उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया जायेगा। सरकार ने विश्वास दिलाया है कि यह काम 48 घंटे में पूरा कर लिया जायेगा।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिस मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को 'निकम्मा' तक डाला था अब उसी पर फिर से सियासत तेज हो गई है। मंगलवार को बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने दौसा जयपुर तक अपने समर्थकों के साथ कूच किया। वाहन रैली में उनके साथ जमकर भीड़ जुटी। यहां के 13 जिलों के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को लेकर सांसद मीणा ने राज्य सरकार से इस परियोजना में ‘तकनीकी खामियों’ को दूर करने की मांग की। दूसरी तरफ, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस परियोजना को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बात की। चौहान ने इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री स्तर की बैठक करने पर सहमति जताई।
राज्यसभा सदस्य मीणा ने अपने समर्थकों के साथ वाहन रैली दौसा के नांगल प्यारीवास से शुरू की, जो जयपुर जिले के झटवाड़ा के पास पहुंची तो पुलिस ने उसे रोक लिया। यहां राज्य सरकार की ओर से पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह और वरिष्ठ अधिकारी बातचीत के लिए पहुंचे। वार्ता के बाद मीणा ने राज्य सरकार को 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया कि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की जाए। कमेटी नहीं बनी तो दौसा में धरना शुरू करेंगे।
राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ और राज्य भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी भी मौजूद थे। रैली शुरू करने से पहले, मीणा ने परियोजना में 'तकनीकी खामियों' की ओर इशारा करते हुए लोगों को बताया कि जिन जिलों के लिए परियोजना प्रस्तावित है उनमें से कुछ बांध छोड़ दिए गए हैं। मुख्यमंत्री गहलोत ने इससे पहले मध्य प्रदेश सरकार को परियोजना के वास्ते अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) के लिए पत्र लिखा था, जो नहीं दिया गया। मीणा ने मंत्री विश्वेंद्र सिंह से बातचीत के बाद कहा कि 48 घंटे में कमेटी नहीं बनी तो वह दौसा में धरना शुरू कर देंगे। राज्य सरकार को मध्य प्रदेश से एनओसी प्राप्त करना चाहिए तथा अन्य तकनीकी समस्याओं का समाधान कर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिलाने के लिए नया प्रस्ताव केंद्र को भेजना चाहिए।
अगर ऐसा नहीं किया गया तो इस साल नवंबर में करोली के श्रीमहावीरजी में व्यापक धरना होगा। राजस्थान सरकार के पर्यटन मंत्री सिंह ने आश्वासन दिया कि मीणा द्वारा उठाई गई मांगों को पूरा किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि खासतौर से आधे राजस्थान में ओबीसी आरक्षण का मामला सरकार के लिये मुसिबत बना हुआ है, तो पूर्वी राजसथान में ईआरसीपी सरकार के गले की हड्डी बनती जा रही है। चुनाव में भले ही अभी सवा साल का समय बाकि हो, लेकिन जिस तरह से इन दोनों मुद्दों ने जोर पकड़ लिया है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में राजस्थान की राजनीति सत्ता के लिये बयानबाजियों का केंद्र बनने वाली है।
अब आप इस बात को समझिये कि इन दोनों मुद्दों का समाधान राज्य सरकार के लिये दो मिनट का काम है। इसके लिये गहलोत सरकार को किसी से पूछने की आवश्वयकता भी नहीं है, लेकिन फिर भी वह इन मुद्दों को लंबा क्यों खींच रहे हैं? दरअसल, पूर्वी राजस्थान में लंबे समय से किरोडीलाल मीणा सबसे बड़े कद के नेता रहे हैं। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव के बाद पूर्वी राजस्थान में मंत्री विश्वेंद्र सिंह और मंत्री रमेश मीणा का कद बढ़ने लगा था, जिसके कारण ना केवल भाजपा को परेशानी थी, बल्कि असली परेशानी खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हो रही थी। क्योंकि विश्वेंद्र सिंह और रमेशा मीणा सचिन पायलट कैंप के हैं।
आलाकमान के निर्देश पर गहलोत ने इनको फिर से मंत्री तो बना दिया है, लेकिन वह ना तो इनको स्वीकार कर पा रहे हैं और ना ही इनके कद को बढ़ता देखना चाहते हैं। अशोक गहलोत 24 घंटे राजनीति करने वाले नेता के तौर पर माने जाते हैं, वह साबित भी कर चुके हैं कि वह जो करते हैं, वह असली नहीं है, बल्कि असली राजनीति वह है, जो वह नहीं दिखाते हैं। गहलोत ना केवल विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा को दबाव में रखना चाहते हैं, बल्कि पायलट की तरह इनकी भी राजनीति खत्म करना चाहते हैं। सीधे तौर पर तो किरोडीलाल मीणा भाजपा के सांसद हैं, और अशोक गहलोत सरकार के धुर विरोधी माने जाते हैं, किंतु यह पूरा सच नहीं है।
राजनीति में ना कोई स्थाई दोस्त होता है और ना ही स्थाई दुश्मन। एक समय वसुंधरा राजे और किरोडीलाल मीणा धुर विरोधी बन गये थे, बाद में वापसी के समय दोनों करीब आये और पिछले कुछ समय से मीणा को बीजेपी का कर्मठ सिपाही माना जाने लगा, लेकिन जैसे ही उनके लोगों को संगठन में जगह नहीं मिलती दिखी, वैसे ही उन्होंने फिर से वसुंधरा राजे के करीब जाना शुरू कर दिया। वसुंधरा और गहलोत 22 साल से करीबी हैं। यह जग जाहिर हो चुका है कि अलग अलग दलों मे रहकर भी इनकी राजनीतिक दोस्ती सार्वजनिक हो चुकी है। पूर्वी राजस्थान से ना केवल गहलोत को रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह की राजनीति खत्म करनी है, बल्कि सत्ता रिपीट कराने के लिये इन जिलों को साथ भी रखना है, क्योंकि ईआरसीपी योजना में 13 जिलों की 86 विधानसभा सीटें आती हैं।
सरकार जिस दिन चाहेगी, उसी दिन इस योजना को वैसे बना देगी, जैसे केंद्र ने चाहा है, लेकिन मुद्दे को ना केवल हाइप देनी है, बल्कि इस दौरान दोनों मंत्रियों की राजनीति भी खत्म करनी है। जैसे ही किरोडीलाल मीणा का कद बढ़ेगा, वैसे ही इन दोनों मंत्रियों का कद घटता चला जायेगा। किरोडीलाल मीणा और रमेश मीणा धुर विरोधी माने जाते हैं। भरतपुर, करोली, दौसा, धोलपुर, अलवर, सवाई माधोपुर जैसे जिलों में किरोडी और रमेश मीणा के बीच संघर्ष जारी है। किरोडीलाल मीणा जैसे जैसे इस योजना के बहाने आंदोलन करेंगे, वैसे वैसे उनका कद बढ़ता जायेगा, जबकि रमेश मीणा का घटता जायेगा।
इसी तरह से ओबीसी आरक्षण मामले को अपने हाथ में रखने के लिये गहलोत ने अपनी पूर्व मंत्री हरीश चौधरी को कमान सौंप दी है। हरीश चौधरी को ना केवल राजस्थान में बड़ा नेता बनाना है, बल्कि इस बहाने ओबीसी आरक्षण का मुद्दा भी गहलोत अपने पास रखना चाहते हैं। इस मामले का भी सरकार चाहे तो दो मिनट में समाधान कर सकती है, लेकिन इसको भी पहले हाइप दी जायेगी और जब चुनाव नजदीक आयेंगे तो इसका समाधान करके वाहवाही लूट ली जायेगी, ताकि ओबीसी वर्ग कांग्रेस के नजदीक आ जाये। इसलिये यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि खुद अशोक गहलोत ही इन दोनों मुद्दों को पर्दे के पीछे से हवा दे रहे हैं, बल्कि सारा किया धरा खुद अशोक गहलोत का ही है।
गहलोत सरकार के गली की हड्डी बने मंत्री—सांसद
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