Ram Gopal Jat
बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने मुख्यमंत्री बनने के लिये मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। कुछ इसी तरह के मीम्स दो दिन से सोशल मीडिया पर चल रहे हैं। नीतिश कुमार ने आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। इसके साथ ही भाजपा से राजद और राजद से भाजपा के बाद अब फिर से राजद के साथ गठबंधन करके नीतिश कुमार ने अनौखा रिकॉर्ड भी बना दिया है। बिहार की 243 सीटों वाली विधानसभा में नीतिश कुमार की जदयू के पास केवल 43 विधायक हैं, जबकि भाजपा 77 विधायकों के सााथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। लालू यादव की राजद के 79 विधायक हैं। बाकी कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई जैसे दलों क पास हैं। इस हिसाब से भाजपा का साथ छोड़कर नीतिश कुमार ने विपक्ष के 164 विधायकों का साथ लेकर शपथ ले ली है।
नीतीश कुमार पहली बार 3 मार्च 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण उनको 7 दिन बाद ही 10 मार्च को इस्तीफा देना पड़ा। दूसरी बार नीतीश कुमार ने साल 2005 में बीजेपी के साथ सरकार बनाई। 24 नवंबर 2005 को उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और अपना कार्यकाल पूरा करते हुए 24 नवंबर 2010 तक मुख्यमंत्री रहे। तीसरी बार नीतीश कुमार ने 26 नवंबर 2010 को मुख्यमंत्री बने। इन चुनावों में एनडीए ने प्रचंड बहुमत हासिल करते हुए 243 में से 206 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
चौथी बार नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने का वाकया बेहद नाटकीय रहा। मोदी को पीएम कैंडीडेट बनाने से नाराज होकर नीतीश कुमार ने साल 2014 में बीजेपी से अलग होकर राजद के साथ उन्होंने सरकार बनाई, लेकिन मई 2014 के लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन करने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और जीतन राम मांझी को सीएम बनाया गया, लेकिन कुछ गलतफहमियों के कारण उन्हें हटा दिया गया। इसके बाद 22 फरवरी 2015 को नीतीश कुमार ने सीएम पद की शपथ ली और 19 नवंबर 2015 तक अपने पद पर बने रहे। पांचवी बार नीतीश कुमार ने राजद के साथ चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। चुनाव में जीत के बाद 20 नवंबर 2015 को उन्होंने पांचवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
छठी बार नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने का घटनाक्रम उनके कार्यकाल में अब तक का सबसे नाटकीय घटनाक्रम था। राजद से मतभेद के बाद 26 जुलाई 2017 को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 27 जुलाई 2017 को उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर छठी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सातवीं बार नीतीश कुमार ने 16 नवंबर 2020 को सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इन चुनावों में जेडीयू पहली बार बीजेपी से कम सीटें जीतीं, लेकिन मुख्यमंत्री पद पर नीतीश कुमार ही काबिज हुए। अब तीन दिन पहले भाजपा का साथ छोड़कर राजद के सहारे आठवीं बार सीएम पद की शपथ ली है।
हिन्दी पट्टी वाले राज्यों में एक तरफ भाजपा विपक्षी खेमे को पटखनी देकर सत्ता पर काबिज हो रही है, दूसरी ओर बिहार में भाजपा सत्ता में रहते हुए बिना चुनाव के बेदखल हो गई। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह नीतीश कुमार हैं। राज्य विधानसभा चुनाव में तीसरी नंबर की पार्टी होने के बावजूद नीतीश कुमार के हाथ सत्ता की चाबी रही। अब नीतीश कु्मार का बयान साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा संकेत दे रहा है। आम चुनाव में विपक्ष के प्रधानमंत्री कैंडिडेट के सवाल का नीतीश ने सीधा जवाब तो नहीं दिया लेकिन, यह जरूर कह डाला कि नरेंद्र मोदी 2024 में पीएम नहीं रहने वाले। उनका बयान राजनीतिक गलियारों में कई सवाल और संभावनाओं को पैदा कर रहा है।
वैसे तो जितनी विपक्षी पार्टियां हैं, उन सभी में एक या दो पीएम उम्मीदवार तैयार हैं, लेकिन फिर भी नीतीश कुमार के अलावा, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, दिल्ली के अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के सीएम केसीआर राव, कांग्रेस के राहुल गांधी समेत एक दर्जन से अधिक पीएम कैंडीटेड तैयार हैं। फिर भी संभवत: नीतीश कुमार को जदयू, राजद और कांग्रेस समेत वाम दलों के सहारे प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने और जीतने की उम्मीद है। आइये इस बात को समझने का प्रयास करते हैं कि नीतीश कुमार क्या प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के लिये ही भाजपा से अलग हुये हैं? और क्या 2024 में उनके दम पर भाजपा को हराया जा सकता है? क्या विपक्ष में पीएम बनने के सपने देखने वाले एक दर्जन नेता उनको स्वीकार करेंगे? इन सभी संभावनाओं पर चर्चा करेंगे, लेकिन पहले बिहार हुई राजनीतिक उठापटक को समझ लेते हैं।
तीन दिन पहले बिहार में बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के तहत नीतीश कुमार ने एनडीए से किनारा करते हुए महागठबंधन के साथ अपने नए रिश्ते को आगे बढ़ाया और एक बार फिर सत्ता की चाबी अपने हाथ पर ली। हालांकि, इस बार उनके साथ डिप्टी सीएम के तौर पर राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव रहेंगे। राजभवन में शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार ने भाजपा पर बड़ा हमला बोला। उन्होंने कहा कि भाजपा के साथ वो अपना अलायंस दो महीने से तोड़ना चाह रहे थे, भाजपा उनकी पार्टी को बदनाम और नीचे दिखाने की कोशिश कर रही थी।
उनसे जब यह पूछा गया कि क्या वे साल 2024 में विपक्ष की ओर से पीएम कैंडिडेट होंगे? इस सवाल का नीतीश ने जवाब तो नहीं दिया लेकिन, इतना जरूर कहा कि साल 2014 की तरह 2024 में वैसा नहीं रहने वाला है। नरेंद्र मोदी 2024 में पीएम नहीं रहने वाले हैं। उनकी बातों को राजनीतिक विशेषज्ञ बड़ा बयान मानकर चल रहे हैं। नीतीश की बातों से इस बात का संकेत मिलता है कि वे साल 2024 में पीएम कैंडिडेट के तौर पर दिल्ली की रेस में जाना चाहते हैं।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि नीतीश कुमार राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बनना चाहते थे, इसलिये दो माह से इंतजार कर रहे थे, लेकिन एनडीए के द्वारा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिये उनके नाम की घोषणा नहीं करने के बाद हताशा में उन्होंने एनडीए के साथ छोड़ दिया है। उन्हें यह भी लगता है कि भाजपा उनके दल से बड़ी पार्टी है और आने वाले चुनाव से पहले उनकी पार्टी को तोड़कर उसे खत्म करना चाहती है, इससे बचने के लिये ही उन्होंने भाजपा से अलग होने का निर्णय लिया है।
इससे पहले साल 2019 में भले ही नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को अपना समर्थन दिया था और महागठबंधन पर निशाना साधते हुए कहा था कि विपक्ष का कोई भविष्य नहीं है, लेकिन नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी को बिलकुल भी पसंद नहीं करते हैं। उन्हें शायद यह लगता है कि वह मोदी से बेहतर और अधिक योग्यता के साथ अनुभवी भी हैं, इसलिये एनडीए को उन्हें पीएम बनाना चाहिये था। इसलिये नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के समर्थन में अपना बयान भी देर में जारी किया था।
नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा वाले कई नेताओं में से एक हैं, जिनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल हैं। जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने एक तरह से नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनने के लिये सभी गुण वाला नेता बताया है। इससे पता चलता है कि इस दल के संसदीय बोर्ड में किस बात पर मंथन करने के बाद नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होने का फैसला किया होगा।
राष्ट्रीय जनता दल के नेता शरद यादव ने भी कहा कि कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। हालांकि, नीतीश कुमार ने अगले लोकसभा चुनावों में उनके प्रधानमंत्री पद का चेहरा होने के बारे में सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्होंने एनडीए के मुख्यमंत्री के रूप में इस्तीफा देने के बाद महागठबंधन के साथ नई सरकार का गठन किया है।
इधर, महाराष्ट्र में शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि जहां तक भ्रष्टाचार के आरोपों का सवाल है, नीतीश कुमार का राजनीतिक करियर बेदाग रहा है, लेकिन एक बात जो उनके खिलाफ जाती है, वह यही है कई बार उन्होंने राजनीतिक सहयोगियों को बदला है। इसका मतलब यह हुआ है कि यदि विपक्ष उनको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाता है, तो केवल बेदाग छवि के कारण बनायेगा, किंतु पलटी मारने में माहिर नीतीश कुमार पर कोई दल भरोसा भी नहीं करना चाहता है।
वैसे साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले आंद्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुये सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर बुला लिया था, जो भी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनना चाहते थे, लेकिन ना तो महागठबंधन बन पाया और नायडू के हाथ से विधानसभा चुनाव के बाद सीएम की कुर्सी भी चली गई। इस तेलंगाना के सीएम केसीआर राव भी उसी तरह से सभी विपक्षी दलों को मोदी के खिलाफ एकजुट करने में लगे हैं। वह पिछले दिनों ही कांग्रेस के साथ ही शरद पवार और केजरीवाल से मिलकर सबको एक करने प्रयास भी किया है।
ऐसे ही पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी कह चुकी हैं कि कांग्रेस को अब उनसे छोटे की भूमिका में आ जाना चाहिये। ममता को भी लगता है कि बंगाल में लगातार तीसरी बार सीएम बनने के कारण वह अब प्रधानमंत्री पद की सबसे तगड़ी उम्मीदवार हैं। हालांकि, ममता पर भी भष्ट्राचार के आरोप नहीं हैं, लेकिन उनकी तुनक मिजाजी के कारण विपक्षी उनपर भी विश्वास नहीं करते हैं। इधर, दिल्ली में तीसरी बार सीएम बने हुये अरविंद केजरीवाल को लगता है कि पंजाब की जीत के बाद वह देश व्यापी नेता बन गये हैं। वह आजकल गुजरात में फ्री घोषणाओं के साथ चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। उनको भी लगता है कि दिल्ली की जनता ने उनको तीन बार चुना है, तो वह मोदी को टक्कर देने वाले सबसे बड़े नेता हो सकते हैं। इसलिये वह भी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनना चाहते हैं। राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार खुद को बरसों से पीएम कैंडीडेट मान रहे हैं, लेकिन विपक्ष उनको बना नहीं रहा है।
इस वक्त लोकसभा चुनाव में करीब पौने दो साल का समय बाकी है, लेकिन तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। विपक्ष में पीएम उम्मीदवारी के लिये ही सबकुछ चल रहा है। कांग्रेस अभी तक अपना अध्यक्ष तय नहीं कर पा रही है, शायद यही कारण है कि ये तमाम क्षेत्रीय दल खुद को कांग्रेस से आगे बढ़कर पीएम पद पर दावेदारी जताने लगे हैं। इस वक्त 543 सीटों वाली लोकसभा में 353 सीटें एनडीए के पास है, जबकि बची हुई सभी 190 सीटें करीब 20 विपक्षी दलों के पास हैं। जो अविश्वास विपक्ष में पनपा हुआ है और जिस तरह से मोदी की विश्व नेता की छवि बन चुकी है, उससे ऐसा लगता है कि 2019 की तरह 2024 में भी विपक्ष का कोई नेता प्रधानमंत्री पद का सर्वमान्य उम्मीदवार नहीं बन पायेगा।
मोदी की जगह प्रधानमंत्री बनने के लिये नीतिश कुमार ने मारी पलटी है
Siyasi Bharat
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