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भारत को तो चीन—अमेरिका युद्ध से फायदा ही होगा

Ram Gopal Jat
बीते पांच माह से यूरोप में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, जिसमें प्रत्यक्ष तो यूक्रेन लड़ रहा है, लेकिन परोक्ष रुप से इस युद्ध में अमेरिका लड़ रहा है। साथ ही यूरोप के कुछ देश भी अमेरिका को इस युद्ध में साथ दे रहे हैं। पूरा विश्व उस दिन का इंतजार कर रहा है, जिस दिन यह युद्ध समाप्त होगा, लेकिन लगता है रूस यूक्रेन युद्ध समाप्त होने से पहले अमेरिका व चीन के बीच युद्ध हो जायेगा। रूस यूक्रेन युद्ध से भारत को कोई नुकसान तो नहीं हुआ है, लेकिन बिलियन्स डॉलर का सस्ता कच्चा तेल खरीदने से फायदा जरुर हुआ है। यह युद्ध भारत से हजारों मील दूर लड़ा जा रहा है और भारत का यूक्रेन से जो व्यापार था, उसके बंद होने से कोई फर्क भी नहीं पड़ा है। इसलिये इस युद्ध के होने या नहीं होने से सीधे तौर पर भारत को कोई नुकसान नहीं हुआ है।
अब अमेरिका व चीन के बीच युद्ध के लिये तैयारी शुरू हो चुकी है और क्योंकि भारत का अमेरिका व चीन के साथ जिस देश ताइवान के कारण युद्ध हो रहा है, उसके साथ भी भारत का बड़ा कारोबारी रिश्ता है। ऐसे में दक्षिण चीन सागर में संभावित इस युद्ध के होने से भारत को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। अमेरिका चीन के बीच इस युद्ध के उपरांत भारत को होने वाले नुकसान और फायदों के बारे में बात करेंगे, लेकिन उससे पहले यह जानना जरुरी है कि आखिर विश्व की दो महाशक्तियों के बीच युद्ध होने की संभावना क्यों पैदा हो गई है?
जब दो बड़ी शक्तियों एक दूसरे को पीछे छोड़ने की प्रतियोगिता शुरू करती है, तो निश्चित रुप से छोटे देशों को हानि उठानी ही पड़ती है। भारत में एक कहावत है, दो हाथी लड़ते हैं तो घास का नाश ही होता है। ठीक ऐसे ही अमेरिका व चीन की इस आगे रहने की प्रतियोगिता के कारण दुनिया के कई देशों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। लिहाजा, ताइवान को लेकर एक नए पैटर्न की राजनीति करवट लेती दिख रही है, क्योंकि इसपर अमेरिका और चीन एक बार फिर आमने-सामने आ गये हैं। अमेरिकी संसद के सदन हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी ताइवान की यात्रा पर जा रही हैं। इस पर चीन भड़का हुआ है। उसने कहा कि अगर वो ताइवान जाती हैं तो चीनी सेना चुप नहीं बैठेगी। चीन ने धमकी के लहजे में अमेरिका को कहा कि फिर मत कहना कि चेतावनी नहीं दी थी। उधर, चीन की धमकी पर अमेरिका का भी बयान सामने आया है।
चीन की धमकियों के बावजूद नैन्सी पेलोसी अधिकारियों के साथ ताइवान यात्रा पर जाएंगी। पेलोसी चार एशियाई देशों की यात्रा कर रही हैं, सबसे पहले वह सिंगापुर पहुंचीं हैं। इसके बाद ताइवान की संभावित यात्रा पर तिलमिलाए चीन ने अमेरिका को चेतावनी दी है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि चीन अमेरिका को फिर से चेतावनी देना चाहता है कि अगर पेलोसी ताइवान गईं तो पीपुल्स लिबरेशन आर्मी खाली नहीं बैठेगी। चीन के आधिकारिक बयान में यह भी कहा गया कि चीन निश्चित रूप से अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए दृढ़ और मजबूत जवाबी कदम उठाएगा। अमेरिका को एक-चीन सिद्धांत और यूएस-सिनो विज्ञप्ति पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के वादे का पालन करना चाहिए। यह भी कहा गया कि अमेरिकी सरकार में तीसरी नंबर की अधिकारी' के रूप में पेलोसी की ताइवान की यात्रा 'गंभीर राजनीतिक प्रभाव का कारण बनेगी। अमेरिका की तरफ से भी चीन के इस बयान पर प्रतिक्रिया व्हाइट हाउस ने स्पीकर नैन्सी पेलोसी की 'ताइवान की यात्रा' पर चीन की बयानबाजी की निंदा करते हुये कहा गया कि अमेरिका को बीजिंग के साथ तनाव बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा समन्वयक जॉन किर्बी ने भी इस बाबत एक बयान दिया है और कहा है कि यह यात्रा अध्यक्ष पर निर्भर है। हम उनकी यात्रा के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, लेकिन अध्यक्ष को ताइवान जाने का अधिकार है।
उन्होंने यह भी कहा कि हमारी 'एक चीन नीति' के बारे में कुछ भी नहीं बदला है, जो ताइवान संबंधी अधिनियम द्वारा निर्देशित है। हम ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में चीन भड़काऊ बयानबाजी और दुष्प्रचार का इस्तेमाल नहीं करेगा। उधर यूएस ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने कहा था कि अगर पेलोसी ताइवान जाती हैं और वहां पर उनको किसी भी प्रकार की सैन्य सहायता की जरूरत पड़ती है, तो हम वो करेंगे। मतलब यह है कि अमेरिका व चीन अब पूरी तरह से आमने सामने आ गये हैं। इसी बीच जापानी मीडिया ने दावा किया है कि अमेरिकी सेना पेलोसी के विमान के लिए एक बफर जोन बना रही है। अमेरिकी नौसेना अपने एयरक्राफ्ट कैरियर और विशाल प्‍लेन को ताइवान की सीमा के पास तैनात कर रही है। पेलोसी की यात्रा की अभी अमेरिका की ओर से आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। ताइवान की मीडिया ने दावा किया है कि नैंसी पेलोसी मंगलवार की शाम को राजधानी ताइपे पहुंच सकती हैं। मालूम हो इस पूरे मामले पर राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ टेलीफोन पर की गई वार्ता में ताइवान के मामले में हस्तक्षेप करने के खिलाफ चेतावनी दी थी। जिनपिंग ने बाइडन से कहा था कि 'आग से खेलने वाला अंतत: खुद उससे जल जाता है।' चीन को लगता है कि ताइवान के साथ आधिकारिक अमेरिकी संपर्क उसकी दशकों पुरानी उस नीति के खिलाफ ताइवान को उकसाता है, जिसके तहत वह उसे वास्तविक, स्वतंत्र और स्थायी क्षेत्र मानता है।
व्‍हाइट प्रवक्‍ता ने कहा है कि नैंसी को पूरा हक है कि वो एक आजाद राष्‍ट्र ताइवान की यात्रा करें। ऐसे में चीन का कोई भी गलत कदम उसको मुश्किल में डाल सकता है। चीन ने अपने सोशल मीडिया प्‍लेटफार्म पर नैंसी और अमेरिका को धमकाने के लिए एक वीडियो पोस्‍ट किया है। इस वीडियो में चीन के युद्धपोत जिनमें गाइडेड मिसाइन डिस्‍ट्रोयर दिखाई दे रहे हैं। इस वीडियो में एक संदेश भी दिया गया है। इसमें लिखा है कि चीन किसी भी घुसपैठिये की दफ्न करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
इसका सीधा मतलब यही है कि अमेरिका ने पेलोसी को ताइवान भेजने का पूरा इंतजाम कर दिया है, तो दूसरी ओर चीन ने भी इसको लेकर आर्मी एक्शन लेने का मन बना लिया है। चीन की सेना यदि पेलोसी के विमान को धवस्त करती है, या फिर उनकी यात्रा में रुकावट के लिये किसी युद्धपोत का तैनात करती है, तो अमेरिका इसका जवाब देगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन पहले ही कह चुके हैं कि यदि चीन ताइवान पर हमला किया तो उसको मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा। दोनों देशों के अधिकारिक बयानों से इस समुद्री क्षेत्र में एक बड़े युद्ध की आहट सुनाई दे रही है। आने वाले दो—तीन दिन में साफ हो जायेगा कि दुनिया एक ओर युद्ध में धकेली जा रही है या नहीं? लेकिन इस युद्ध के प्रभाव बहुत घातक हो सकते हैं, क्योंकि दोनों ही देश ना के परमाणु सम्प्नन हैं, बल्कि सैन्य उपकरणों के मामले में भी बहुत घातक हथियारों से लेस हैं।
यदि युद्ध हुआ तो युक्रेन की तरह इस बार ताइवान युद्ध का मैदान बनेगा और इन दो महाशक्तियों की जोर आजमाइश में इस खूबसूरत समुद्री देश का तहस नहस होना तय है। लेकिन भारत पर भी बहुत गलत प्रभाव पड़ने वाला है। भले ही सैन्य दृष्टि से भारत इस युद्ध से दूर रहे, लेकिन दुनिया में भारत का सबसे अधिक कारोबार चीन व अमेरिका से ही है। ऐसे में युद्ध होता है, तो सप्लाई चेन बाधित होगी, जिससे अर्थव्यस्था पर विपरीत असर पड़ सकता है, कई सामानों की कीमतों में भारी वृद्धि हो सकती है और यह दुष्प्रभाव लंबे समय तक रह सकता है। चीन के साथ इस वक्त भारत का सालाना करोबार करीब 130 बिलियन डॉलर का है, तो अमेरिका के साथ करीब 125 बिलियन डॉलर का व्यापार हो रहा है।
हालांकि, इस युद्ध से भारत को केवल नुकसान ही नहीं होगा, बल्कि कुछ फायदा भी होने वाला है। यदि चीन व अमेरिका युद्ध में भिड़ते हैं, तो भारत के पास भी पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का मजबूत विकल्प खुल जायेगा। जिस तरह से ताइवान को चीन अपना एक प्रांत मानता है, ठीक वैसे ही पीओके पर भारत का पूर्ण हक है, जिसको वापस लेने को मोदी सरकार संकल्पित है। युद्ध के बाद यदि चीन ने ताइवान को हडप् लिया तो भारत पर आसानी से पीओके पर अपना कब्जा कर लेगा, और यदि चीन को ऐसा करने से अमेरिका ने रोक दिया तो युद्ध के कारण दोनों देशों को बड़े पैमाने पर नुकसान होगा। चीन को होने वाला नुकसान हमेशा भारत के पक्ष में ही रहेगा। चीन यदि कमजोर होगा तो भारत के साथ सीमा विवाद भी सुलझने की संभावना बनेगी। हालांकि, कारोबारी तौर पर भारत को नुकसान हो सकता है, लेकिन सैन्य सुरक्षा के लिहाज से यह युद्ध भारत के पक्ष में जायेगा। भारत अपनी गुट निरपेक्ष नीति पर कायम रहने वाला है और इसलिये वह इस युद्ध में किसी को भी पक्ष नहीं लेगा। हालांकि, युद्ध के घातक होने पर परमाणु आक्रमण का भी खतरा बढ़ जाता है।
वैसे भी चीन एक तानाशाही देश है। इसलिये राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ऐसा करने से रोकने वाला कोई है भी नहीं। उसे किसी को जवाब नहीं देना है, कोई देश भी उससे पूछने वाला नहीं है। वैसे तो यह माना जा रहा है कि चीन केवल गीदड़ भभकी देता है, वह युद्ध करने की स्थिति में नहीं है। भले ही उसके पास सैन्य उपकरण हों, लेकिन वह उनको चलाने में उतना पारंगत नहीं है, जितना अमेरिका है। इसलिये वह अमेरिका से सीधा युद्ध करने से भी बचता है। इधर, अमेरिका के लिये चीन के उकसाने के बाद भी युद्ध करना बेहद कठिन काम है। क्योंकि चीन व अमेरिका में भोगोलिक रुप से काफी दूरी है, जिसके कारण अमेरिका इतनी दूर युद्ध करने के लिये तैयार नहीं होगा।
फिर भी अगर चीन—अमेरिका के बीच युद्ध होता है, तो अमेरिका के लिये यह युद्ध एक मील का पत्थर साबित होगा, क्योंकि अमेरिका लंबे समय से कोई युद्ध नहीं हारा है, जबकि चीन भी उसको कड़ी टक्कर देने को तैयार बैठा है। कुल मिलाकर अमेरिका चीन युद्ध दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध में धकेल सकता है। क्योंकि चीन का साथ देने के लिये रूस तैयार है, तो अमेरिका के लिये नाटो देश खड़े हुये हैं।

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