Ram Gopal Jat
विश्व महाशक्ति अमेरिका ने भी मान लिया है कि भारत को विश्वगुरू बनने से कोई नहीं रोक सकता, यदि कोई रोकने का प्रयास करेगा, तो वह खुद ही धवस्त हो जायेगा। इस वीडियो के अगले पांच मिनट आपको बतायेंगे कि कैसे अमेरिका ने भारत के रास्ते में रुकावट बनने के बजाये सहयोगी बनने का फैसला कर लिया है। ऐसा नहीं है कि अमेरिका को भारत अब प्यारा लगने लगा है, बल्कि हकिकत कुछ और ही है, जो उसको चीन से बदला लेने के लिये ये सब करने को मजबूर कर रहा है। विस्तारवादी चीन के रवैये से पूरी दुनिया परेशान है, अमेरिका को भी अब यह लगने लगा है कि चीन आने वाले समय में उससे ज्यादा ताकतवर हो जायेगा। ऐसे में उसने भारत के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने की प्लानिंग बनाई है। छोटे व कमजोर पड़ोसी देशों पर चीन लगातार अपना रौब जमा रहा है। हालांकि, भारत के साथ सीमा विवाद के बावजूद उसकी यह विस्तारवादी नीति लगातार फेल हो रही है। कूटनीति हो या सैन्य कार्रवाई, भारत हर भाषा में चीन को करारा जवाब दे रहा है। ऐसे में अमेरिका को से चीन को काउंटर करने की भारत से ही उम्मीदें हैं।
भारत लगातार रूस से हथियार खरीद रहा है। इसको लेकर अमेरिका काफी दिनों से परेशान था। यहां तक कि 2014 से लेकर अब तक अमेरिका इसी प्रयास में रहता था कि भारत कैसे भी अपनी रक्षा आपूर्ति के लिये अमेरिका पर ध्यान केंद्रित करे, लेकिन भारत ने इसको लगातार नजरअंदाज किया। इसलिये चीन को रोकने के लिए अमेरिका ने भारत के पक्ष में बड़ा फैसला किया है। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम, यानी एनडीएए में संशोधन के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी है। अब अमेरिकी सांसदों को भारत द्वारा रूस से हथियार खरीदने पर कोई आप्पति नहीं है। अमेरिकी सांसद रो खन्ना ने भारत को काट्सा (CAATSA) कानून के तहत पांबदियों से छूट दिए जाने की मांग करते हुये संसद में प्रस्ताव पास किया, जिसको संसद ने पारित कर दिया है।
अपना प्रस्ताव रखते हुये अमेरिकी सांसद रो खन्ना ने कहा कि अमेरिका को चीन के बढ़ते आक्रामक रूख के मद्देनजर भारत के साथ खड़ा रहना चाहिए। यह संशोधन अत्यधिक महत्वपूर्ण है और यह देखकर गर्व हुआ कि इसे दोनों दलों के समर्थन से पारित किया गया है। अमेरिका-भारत भागीदारी से ज्यादा महत्वपूर्ण अमेरिका के रणनीतिक हित में और कुछ भी इतना जरूरी नहीं है।
इस कानून के तहत अमेरिका अपने विरोधी देशों से हथियारों की खरीदी के खिलाफ प्रतिबंधात्मक कदम उठाता है। अमेरिका CAATSA के तहत उन देशों पर प्रतिबंध लगाता है, जिनका ईरान, उत्तर कोरिया या रूस के साथ लेनदेन है। जबकि इस वक्त भी अमेरिका ने रूस के साथ कारोबार करने वालों को भी प्रतिबंधित करने का फैसला कर रखा है, तब भारत के पक्ष में यह कानून पास होना इस बात का प्रमाण है कि अमेरिका ने भारत को ताकतवर बनाने का निर्णय लिया है। अमेरिका ने बहुत ही चालाकी से यह प्रस्ताव भी भारतीय मूल के रॉ खन्ना के द्वारा संसद में पास करवाया है, ताकि उसको यह भी नहीं कहना पड़े कि वह भारत के सामने झुक गया है और प्रस्ताव पास भी हो जाये। हालांकि, प्रतिनिधि सभा के मंजूरी के बाद भी यह प्रस्ताव अभी कानून का हिस्सा नहीं है। इसे कानूनी मान्यता देने के लिए प्रस्ताव को अमेरिकी संसद के दोनों सदनों में पास कराना होगा।
जब अमेरिका ने भारत पर कॉट्सा के तहत कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं, तब भी भारत ने साल 2015 में 5 अरब डॉलर के एस—400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने का सौदा किया। जिसकी आपूर्ति होना शुरू हो चुकी है। इस 4 साल के दौरान भारत ने जहां रूस से करीब 25 अरब डॉलर के रक्षा उपकरण खरीदे हैं, तो अमेरिका से केवल 5 अरब डॉलर की रक्षा खरीद की है। इससे पता चलता है कि भारत ने रूस के साथ संबंध मजबूत रखने के लिये अमेरिका की भी परवाह नहीं की है। इस बीच सामने आया कि भारत द्वारा रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने के कारण अमेरिका कॉट्सा अधिनियम के तहत कार्रवाई पर विचार कर रहा है।
इस मामले में भारत का पक्ष लेते हुए रो खन्ना ने कहा था कि भारत को अपनी रक्षा जरूरतों के लिए भारी रूसी हथियार प्रणालियों की जरूरत है। इसलिए उसे CAATSA के तहत प्रतिबंधों में छूट दी जाए। रूस और चीन की घनिष्ठ साझेदारी को देखते हुए हमलावरों को रोकने के लिए ऐसा करना अमेरिका-भारत रक्षा साझेदारी के सर्वोत्तम हित में होगा। भारत ने अक्टूबर 2018 में एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम के 5 स्क्वाड्रनों के लिए रूस के साथ 5.43 अरब डॉलर का सौदा किया था।
ऐसा नहीं है कि भारत के द्वारा रूस के रक्षा उपकरण खरीदने से अमेरिका खुश है, बल्कि उसको पता है कि इंडो पेसैफिक क्षेत्र में बढ़ने से यदि चीन को रोकना है, तो उसके लिये ऐसा मजबूत साथी चाहिये, तो चीन को टक्कर दे सके। अमेरिका व चीन की दूरी काफी ज्यादा है, जिसके कारण वह कम समय में चीन के खिलाफ सीधी कार्रवाई नहीं कर सकता है। उसको यह भी पता है कि यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया तो उसके पास जापानी सैन्य बैस के अलावा मजबूत ठिकाना नहीं है। इसलिये अमेरिका ने भारत के खिलाफ कॉट्सा के तहत कार्यवाही में छूट देने का विचार किया है।
यह समय की मांग है और अमेरिका की जरुरत भी, अन्यथा अमेरिका वही है, जिसने गुजरात का मुख्यमंत्री होते हुये अमेरिका ने मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया था। यह वही अमेरिका है, जिसने 1998 के समय अटल बिहारी सरकार द्वारा परमाणु परिक्षण के बाद पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन समय बदल गया है। अब अमेरिका चाहता है कि भले ही रूस के साथ उसका विवाद हो, लेकिन चीन से टकराने के लिये भारत के पास अत्याधुनिक रक्षा उपकरण होने आवश्यक हैं। अमेरिका पिछले दिनों ही इस मामले में मुंह की खा चुका है। उसने रूस को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध को मजबूर तो कर दिया, लेकिन यूक्रेन के पास हथियार नहीं होने के कारण उसको तबाही से बचा नहीं पाया। ऐसे में अमेरिका कतई नहीं चाहता है, कि भविष्य में यदि चीन के द्वारा भारत के खिलाफ कोई सैन्य अभिायान किया जाये तो भारत को यूक्रेन की तरह बर्बाद होता देखता रह जाये और चीन दुनिया का नंबर एक देश बन जाये।
अमेरिका को बीते आठ साल में यह अनुभव हो चुका है कि भारत को विश्वगुरू बनने से कोई नहीं रोक सकता। भारत सरकार के मेक इन इंडिया और आत्म निर्भर भारत ने बड़े पैमाने पर बदलाव किया है। भारत की आबादी अगले साल चीन से अधिक हो जायेगी, तब भारत को यूएनएससी में भी स्थाई सीट के लिये चीन तैयार हो सकता है। इस बात से अमेरिका इसलिये चिंतित है, क्योंकि अब तक भारत की यूएन में स्थाई सीट के लिये चीन ही रोडे अटकाता आया है, यदि चीन इसके लिये तैयार हो जाता है, तो भारत और चीन के बीच रिश्ते अच्छे दोने की उम्मीद की जा सकती है। यदि भारत और चीन के बीच इस बहाने मित्रता हो जाती है, तो अमेरिका अकेला पड़ जायेगा, इसलिये उसने भारत की राह में रोडा बनने के बजाये, सहयोगी बनने का रास्ता अपना लिया है। ताकि भारत को चीन के नजदीक जाने से रोका जा सके। अब अमेरिका जैसे जैसे भारत के खिलाफ नियमों में छूट देता जायेगा, वैसे वैसे दोनों देशों के संबंधों में मजबूती आयेगी। इसका बड़ा उदाहरण आप पिछले दिनों जी—7 देशों के सम्मेलन में जो बाइडन की मोदी से मिलने की बेकरारी देख चुके हैं। उससे पहले क्वाड शिखर सम्मेलन में भी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह कहकर दुनिया को चौंका दिया था कि वह पृथ्वी पर भारत के साथ सबसे घनिष्ठ संबंधन बनाने को बेकरार है।
मतलब अटल बिहारी वाजयेपी से लेकर मोदी कहते हैं कि 21वीं सदी भारत की होगी, वह अब साकार होता नजर आ रहा है। भारत को विश्वगुरू बनाने की परिकल्पना को भी इसी तरह से पंख लगते दिख रहे हैं। वैसे भी भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे शक्तिशाली देश बन चुका है। चाहे रक्षा बजट की बात हो, या फिर जीडीपी की, हर क्षेत्र में भारत तीसरी नंबर आ चुका है। आबादी के नजरिये से एक नंबर है, तो वैसे भी भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है, जिसको इस अर्थयुग में कोई भी देश नाराज नहीं करना चाहता।
अमेरिका ने माना भारत बनेगा विश्वगुरू
Siyasi Bharat
0
Post a Comment