Ram Gopal Jat
साल 2018 में चुनाव के बाद मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरोध के बाद भी कांग्रेस ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया। तभी सिंधिया ने शपथ ली थी कि इस सरकार को नहीं चलने दूंगा। सिंधिया ने महज 15 महीनों में ही अपनी शपथ पूरी करते हुये कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफे करवाकर कमलनाथ सरकार को अल्पमत में ला दिया। इसके चलते कमलनाथ ने 20 मार्च 2020 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। केवल 15 महीने सत्ता से दूर रहने के बाद भाजपा के शिवराज सिंह चौथी बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि, सिंधिया तो सीएम नहीं बने, लेकिन उनके इस काम का उनको पूरा इनाम मिला और वह केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री बने। मध्य प्रदेश की तरह से कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे करवाकर कर्नाटक में भी भाजपा ने सरकार बनाई है।
दूसरी घटना महाराष्ट्र की है, जहां पर 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा—शिवसेना का गठनबंधन था। किंतु परिणाम के बाद केवल 56 सीटों पर जीतने वाली शिवसेना ने भाजपा से ढाई साल मुख्यमंत्री का पद मांग लिया। भाजपा ने कहा कि गठबंधन के समय इसकी बात ही नहीं हुई थी। इसपर विवाद के बाद एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनकर करीब ढाई साल सरकार चलाई। कहते हैं कि शिवसेना प्रमुख के इस धोखे के वक्त पूर्व सीएम देवेंद्र फड़नवीश ने सबक सिखाने की सौगंध खाई थी, जिसको उन्होंने शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे से बगावत करवाकर सरकार गिराई। हालांकि, फड़नवीश मुख्यमंत्री नहीं बने, लेकिन शिवसेना आज दो फाड़ हो चुकी है और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री होते हुये शिवसेना के चुनाव चिन्ह पर दावा ठोक चुके हैं।
अब तीसरा मामला पश्चिम बंगाल कहा है, जहां पर ममता बनर्जी लगातार दूसरी बार सीएम हैं। पिछले साल हुये चुनाव के समय कहा जा रहा था कि भाजपा सत्ता में आ सकती है, लेकिन टीएमसी ही जीती, लेकिन भाजपा जरुर 3 सीटों से 71 सीटों पर पहुंच गई। दूसरी बार सत्ता मिलते ही टीएमसी के गुंडों ने पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं करना शुरू कर दिया। कहते हैं इस मामले पर गृहमंत्री अमित शाह से लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ममता से बात कर मामले को शांत करने की अपील की, लेकिन सत्ता के नशे में चूर ममता बनर्जी ने उनकी एक नहीं सुनी। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की मांग ने जोर पकड़ा, लेकिन भाजपा ने अति का अंत होने का इंतजार किया। कहते हैं कि भाजपा ने उसी वक्त इस बात की शपथ ले ली थी कि ममता बनर्जी को कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया जायेगा।
सीटों के अंतर के हिसाब से देखें तो भाजपा और टीएमसी में रातदिन का अंतर है। 294 सीटों पर वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा में सत्तारूढ़ टीएमसी के पास कुल 220 सीट हैं तो भाजपा के पास केवल 71 विधायक हैं, किंतु राजनीति में कुछ भी संभव है। एक दिन पहले ही भाजपा के नेता और एक्टर मिथुन चकरवर्ती ने दावा किया है कि टीएमसी के 38 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। सरकार बनाने के लिये 148 विधायकों की जरुरत है। ऐसे में भाजपा इस संख्याबल के आधार पर सरकार नहीं बना सकती, लेकिन हो सकता है भाजपा किसी बड़े खेल में चल रही हो। इस बात की संभावना क्यों बन रही है, यह जानने से पहले यह जान लेते हैं कि इस वक्त पश्चिम बंगाल में क्या उठापठक चल रही है?
पश्चिम बंगाल में टीचर भर्ती घोटाले की आंच अब ममता बनर्जी की पार्टी के भीतर भी लगने लगी है। एक तरफ ममता बनर्जी ने तमाम आरोपों और गिरफ्तारी के बाद अपने मंत्री पार्थ चटर्जी को बर्खास्त कर दिया गया है।
पार्टी जब दो गुटों में बंटती नजर आई, तो ममता बनर्जी ने कैबिनेट बैठक बुलाई और उद्योग मंत्री को बर्खास्त कर दिया। उससे पहले पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा था कि पार्थ चटर्जी को मंत्रिमंडल तथा पार्टी के सभी पदों से तत्काल हटाया जाना चाहिए। अगर मेरा बयान गलत लगे, तो पार्टी के पास मुझे सभी पदों से हटाने का अधिकार भी है। मैं तृणमूल कांग्रेस के एक सैनिक की तरह काम करता रहूंगा।’’ उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी पर पूरा विश्वास है। घोष का यह बयान ऐसे समय में आया है जब विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी चटर्जी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने को लेकर लगातार राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार को निशाना बना रही हैं।
असल में सरकारी स्कूलों और सहायता प्राप्त स्कूलों में हुए 100 करोड़ से अधिक के शिक्षक भर्ती घोटाले के वक्त पार्थ चटर्जी के पास शिक्षा विभाग का प्रभार था। बाद में उनसे यह विभाग ले लिया गया। प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें मामले में पिछले शनिवार को गिरफ्तार किया था। प्रवर्तन निदेशालय स्कूल सेवा आयोग द्वारा की गई शिक्षकों की भर्ती में अनियमितता के आरोपों की जांच कर रहा है।
पश्चिम बंगाल में टीचर भर्ती घोटाले से जुड़े मामले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय ने पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के उत्तर कोलकाता के बेलघरिया स्थित फ्लैट पर लगभग 18 घंटों से चली रही अपनी रेड में 20-21 करोड़ नहीं बल्कि पूरे 29 करोड़ रुपए के साथ-साथ 5 किलो सोना भी बरामद किया गया है। ED के अधिकारी वहां से लगभग 29 करोड़ रुपये की नकदी को 10 स्टील के बक्सों में भर कर ले गए हैं। यानि अगर अर्पिता मुखर्जी के दो घरों से रेड में मिली रकम को जोड़ दिया जाए तो वह 50 करोड़ हो जाएगी। क्योंकि बीते दिनों उनके दक्षिण कोलकाता स्थित फ्लैट से 21 करोड़ रुपये की नकदी मिलने के एक दिन बाद 23 जुलाई को उन्हें गिरफ्तार किया गया था।
अब सवाल जब अपनी ही पार्टी के नेता उठाने लगे तो फिर पार्टी के टूटने का खतरा उत्पन्न हो ही जाता है। एक दिन पहले ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस के अध्यक्ष सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ के दौरान आरोप लगाया था कि ईडी का इस्तेमाल सरकारें गिराने के लिये हो रहा है। उन्होंने महाराष्ट्र का उदाहरण दिया। साथ ही कहा कि केंद्र सरकार इस ऐजेंसी का गलत इस्तेमाल कर रही है। अब जिस तरह से ईडी के द्वारा पश्चिम बंगाल में घोटाले को लेकर केश मिल रहा है और मंत्री तक पकड़े जा रहे हैं, उससे साफ होता है कि टीएमसी में भी गुटबाजी ने जोर पकड़ लिया है।
आने वाले दिनों में यदि टीएमसी की लड़ाई जोर पकड़ा, तो तय है कि यह पार्टी भी टूट सकती है। यदि पार्टी के करीब 80 विधायकों ने सरकार का साथ छोड़ दिया तो ममता बनर्जी की सरकार भी गिर सकती है। हालांकि, इसकी संभावना बेहद कम है, लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव है। वैसे भी टीएमसी एक राज्य तक ही सीमित है, जिसका टूटना कोई बड़ी बात नहीं है।
पश्चिम बंगाल में भी बनेगी भाजपा की सरकार?
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