Ram Gopal Jat
राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ का ओब्जर्वर लगाया है। साथ ही अशोक गहलोत को भी गुजरात का वरिष्ठ ओब्जर्वर लगाया है। कुछ अन्य नेताओं को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है। किंतु चर्चा यह हो रही है कि जब गुजरात में प्रभारी अशोक गहलोत के खास मंत्री रहे रघु शर्मा हैं, तो फिर वहां पर गहलोत जैसे सीनियर नेता की कहां जरुरत थी। जबकि सचिन पायलट का बेहतर इस्तेमाल नहीं किये जाने पर सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मानना है कि सचिन पायलट को राजस्थान से दूर करने के लिये अशोक गहलोत का दावं सफल हो गया है। वह खुद को ऐसे राज्य में लगवा चुके हैं, जहां कम से कम जाने की जरुरत पड़ती है, जबकि सचिन पायलट को पूरी तरह से व्यस्त कर दिया है।
असल में अशोक गहलोत लंबे समय से सचिन पायलट को राजस्थान से बाहर की जिम्मेदारी दिलाने के लिये प्रयास कर रहे थे, जो आखिरकार सफल हो गये हैं। आखिर कांग्रेस पार्टी सचिन पायलट जैसे उर्जावान और आकर्षक व्यक्तिव के धनी नेता का बेहतर उपयोग क्यों नहीं कर रही है? वास्तविकता यह है कि कांग्रेस हमेशा ऐसे ही करती आई है। यही कारण है कि पार्टी के युवा और बेहतर काम करने की क्षमता वाले नेताओं का या तो कॅरियर खराब हो जाता है, या फिर दूसरे दलों में चले जाते हैं। क्या कारण है कि जो नेता कांग्रेस में जीरो माना जाता है, वह भाजपा में जाकर हीरो बन जाता है? ऐसे ही कुछ नेताओं की कहानी बतायेंगे, जो कांग्रेस में जीरो थे और भाजपा में जाते ही हीरो हो गये हैं।
कहते हैं संगत का असर बहुत जबरदस्त होता है। अच्छी संगत में व्यक्ति सफलता से उंचाईयों को छूता है, तो गलत संगत में पड़कर बर्बाद भी हो जाता है। इसके तमाम उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं, इसलिये संगत सोच समझकर करनी चाहिये। बुरी संगत केवल मानव जीवन में ही असर नहीं छोड़ती है, बल्कि राजनीति में भी इसका बहुत महत्व है। जिस नेता ने सही सलाहकारों के साथ मिलकर मेहनत की है, वो बहुत आगे तक जाते हैं, लेकिन जिनके सलाहकार गलत होते हैं या जिनको काम करने का अवसर सही नहीं मिलता है, उनका करियर खत्म भी हो जाता है। आज कांग्रेस—भाजपा में भी यही चल रहा है। संगत और सलाह के अभाव में कांग्रेस के नेता विफल होते हैं, लेकिन वही नेता जब भाजपा में शामिल होते हैं तो सफल और काम करने योग्य हो जाते हैं।
इनमें सबसे बड़ा नाम है हेमंत बिश्वा शर्मा का, जिनको देश में आज कौन नहीं जानता है? हेमंत बिश्वा कभी कांग्रेस के आसाम में बड़े नेता थे, लेकिन पार्टी ने उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल ही नहीं किया। कहते हैं कि एक बार हेंमत बिश्वा दिल्ली में राहुल गांधी से मिलने गये, तो राहुल ने हेमंत बिश्वा शर्मा को सामने बिठाकर अपने पालतू कुत्ते के साथ खेलते रहे, जबकि दो घंटे बाद भी हेंमत बिश्वा की सुनवाई ही नहीं हुई। इस तरह की हरकत से परेशान होकर अंतत: उन्होंने साल 2016 में पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गये। पांच साल तक उन्होंने कड़ी मेहनत की और अंतत: 2021 के चुनाव में भाजपा ने उनको मुख्यमंत्री बना दिया। आज देश के दो ही मुख्यमंत्री हैं, जिनकी सबसे अधिक चर्चा होती है। पहले उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ और दूसरे आसाम के हेमंत बिश्वा शर्मा, दोनों की कार्यशैली लोगों को बहुत पसंद आती है। शायद यही कारण है कि नरेंद्र मोदी के बाद प्रधानमंत्री बनाने के लिये इन दोनों नेताओं की मांग उठने लगी है।
दूसरे नेता हैं केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया। सिंधिया कांग्रेस की यूपीए सरकार में 2009 से 2014 तक राज्यमंत्री रहे थे और सचिन पायलट के खास मित्र माने जाते हैं। साल 2018 के चुनाव में सिंधिया को भी सचिन पायलट की तरह मध्य प्रदेश में सीएम का दावेदार माना जा रहा था, लेकिन चुनाव के बाद सचिन पायलट की तरह सिंधिया को दरकिनार कर कमलनाथ को सीएम बना दिया गया। इसका बदला लेने के लिये सिंधिया ने अपने गुट के 20 विधायकों के इस्तीफे करवाकर महज 15 महीने बाद ही कमलनाथ की सरकार गिरा दी। उसके उपरांत खुद भी भाजपा में चले गये और बाद में उनको केंद्रीय मंत्री बनाया गया। अब मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ही मुख्यमंत्री बनने के सबसे तगड़े दावेदार हैं।
त्रिपुरा में अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव होना है। इससे पहले भाजपा ने यहां अपने नेतृत्व में बदलाव किया है। पूर्व मुख्यमंत्री बिपल्व देव का इस्तीफा लेने के बाद भाजपा ने यहां माणिक साहा को अपना नेता चुना है। पेशे से डेंटिस्ट डॉ. माणिक साहा ने 2016 में कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थामा था। चार साल बाद वो पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए और अब अपनी साफ-सुथरी छवि के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की।
रिकॉर्ड चौथी बार नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो पहले कांग्रेस में ही थे। 2002 में राज्य की समस्याओं पर तत्कालीन मुख्यमंत्री एससी जमीर के तकरार होने के बाद उन्होंने नागा पीपुल्स पार्टी को ज्वाईन किया। बाद में इस दल ने भाजपा सहित अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन कर डेमोक्रेटिक अलायंस ऑफ नागालैंड नामक एक राजनीतिक संगठन बनाई। फिर नेफियू रियो प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 2018 में एनपीएफ और भाजपा और गठबंधन टूट गया। जिसके बाद नेफियू रियो नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोगेसिव पार्टी में शामिल हुए, जिसका गठबंधन भाजपा से है। चुनाव जीतने के बाद फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने।
एन. बीरेन सिंह मणिपुर में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने 2016 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में राज्य में 15 साल बाद गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। फुटबॉल प्लेयर से अपना कॅरियर शुरू करने वाले एन. बीरेन सिंह बाद में बीएसएफ में शामिल हुए। कुछ दिनों तक पत्रकारिता भी की और अब राज्य के मुख्यमंत्री हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में भाजपा को बड़ी जीत मिली है।
इसी तरह से पिछले साल ही उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह जैसे नेता भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ये दोनों नेता भी सचिन पायलट के खास मित्रों में से हैं। हालांकि, इन दोनों के पास अभी कुछ खास काम नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि 2024 के आम चुनाव में भाजपा से इनको सांसद का टिकट मिलेगा और उसके बाद केंद्र में मंत्री बनाये जा सकते हैं।
राजस्थान में सवा साल बाद चुनाव होने वाले हैं। उससे पहले कांग्रेस में चल रही सत्ता और संगठन की जंग जग जाहिर है। सचिन पायलट को अशोक गहलोत इन दोनों ही जगहों से दूर रखना चाहते हैं, तो पायलट भी इसी सरकार में मुख्यमंत्री बनने के प्रयास में जुटे हुये हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में दोनों नेताओं की खींचतान से यदि पार्टी सत्ता से बाहर होती है, तो मई 2024 के आम चुनाव में सचिन भी भाजपा के पायलट बन सकते हैं।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर कांग्रेस अपने नेताओं का सही इस्तेमाल क्यों नहीं कर पाती है? क्या कारण है कि सबसे पुरानी पार्टी एक परिवार की गुलामी करने वालों की पार्टी बनकर रह गई है? माना जा रहा है कि जिस तरह से कांग्रेस के प्रतिभाशाली और युवा नेताओं की भाजपा में भगदड़ मची हुई है, उसके कारण आने वाले समय में कांग्रेस में उर्जावान नेताओं की कमी नहीं पड़ जाये।
कांग्रेस के जीरो भाजपा में हीरो कैसे बन जाते हैं?
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