Ram Kishan Gurjar
राजस्थान सरकार में नंबर दो माने जाने वाले शांति धारीवाल अपनी ही सरकार के एक मंत्री के टारगेट पर आ गए हैं. दरअसल, बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल होकर अशोक गहलोत सरकार में दूसरी बार मंत्री बने झुंझुनू के उदयपुरवाटी से विधायक राजेंद्र गुढ़ा एक बार फिर चर्चाओं में हैं. मंत्री गुडा ने कांग्रेस कार्यालय पर जन सुनवाई करते हुए कहा कि मंत्री शांति धारीवाल का अलाइमेंट खराब है, इसे ठीक करना पड़ेगा. आगे कहा कि हम दिल्ली तो नहीं जाएंगे, यही रहकर एलाइमेट ठीक कर करेंगे.
अब सवाल यह खड़ा होता है, कि आखिर राजेंद्र गुड्डा एक वरिष्ठ मंत्री शांति धारीवाल पर इतने खफा क्यों है?
इसका पहला कारण तो यह है की शांति धारीवाल अपने आप को सुपर सीएम मानते हैं. सुपर से मानने के पीछे 3 वजह हैं. पहली तो यह कि उनको कांग्रेसी गलियारों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद खासमखास और नंबर एक मंत्री माना जाता है.
दूसरी वजह यह है, कि जब—जब राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनेगी, तब—तब शांति धारीवाल का मंत्री बनना तय है और वह भी यूडीएच मंत्री ही बनेंगे. आपको याद होगा कुछ माह पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कहा था कि अगली बार जब सरकार बनेगी, तब शांति धारीवाल को चौथी बार यूडीएच मंत्री बनाऊंगा.
तीसरी वजह यह है कि जब—जब कांग्रेसी गलियारों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दिल्ली भेजे जाने या फिर राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के इतर किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की बात चलती है, तब सबसे मजबूत विकल्प के तौर पर शांति धारीवाल को माना जा रहा है.
मंत्री शांति धारीवाल की मजबूत पोजीशन, यानी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बेहद करीबी होना और सरकार में नंबर दो होने के चलते. मंत्री धारीवाल से लेकर उनके विभाग के अधिकारी दूसरे मंत्रियों के कामों में मौका मिलने पर अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते हैं. दूसरी तरफ सियासी गलियारों में गलियारों यह भी कहा जाता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जो काम खुद आगे आकर नहीं कर पाते. उसके लिए शांति धारीवाल को आगे कर देते हैं.
मंत्रियों की नाजरागी के बावजूद शांति धारीवाल इसलिये निश्चिंत हैं, क्योंकि जब—जब राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनती है, तो वह जीत जाते हैं और जब सरकार भाजपा की होती है, तो वह विधायक का चुनाव हार जाते हैं। यही कारण है कि उनको संघर्ष नहीं करना पड़ता, नतीजा यह होता है कि शांति धारीवाल पहले के मुकाबले ज्यादा एरोगेंट हो जाते हैं और अपनी ही सरकार के मंत्रियों को भाव नहीं देते.
हालांकि, मंत्री शांति धारीवाल से अकेले राजेंद्र गुढ़ा परेशान नहीं हैं, बल्कि इस सूची में मंत्री बीड़ी कल्ला से लेकर राजस्थान कांग्रेस के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को तो मुख्यमंत्री की उपस्थिति में पार्टी चीफ मानने तक से इनकार कर चुके हैं. इस बात से भी सरकार में शांति धारीवाल की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है.
सियासी जानकारों का मानना है कि राजेंद्र सिंह गुड्डा चाहते हैं कि उनका हर मामले में मुख्यमंत्री से सीधा संवाद हो, वह शांति धारीवाल या किसी और नेता के अंडर में काम नहीं करना चाहते हैं. इस बात की तस्दीक गुड्डा का यह बयान भी करता है कि हम कांग्रेस कल्चर के आदमी नही हैं, तुरंत काम करते हैं, सीएम गहलोत हमारे मूड को अच्छी तरह से जानते हैं।
गौरतलब है कि सचिन पायलट की बगावत के समय बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए मंत्रियों ने गहलोत सरकार को बचाने में अहम रोल अदा किया था। मंत्री राजेंद्र गुढ़ा, लाखन सिंह मीना, संदीप यादव, दीपचंद खैरिया और जोगिंद्र सिंह अवाना बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। राजेंद्र गुढ़ा के मन में दूसरी टीस इस बात की भी है कि उनको कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया गया। बीते दिनों भी राज्यसभा चुनाव के दौरान राजेंद्र गुढ़ा ने खुलकर नाराजगी जताई थी, तब गुढ़ा ने कहा था कि प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने अपना वादा नहीं निभाया है.
मौजूदा दौर में अशोक गहलोत सरकार में एक के बाद एक मंत्रियों की नाराजगी खुलकर सामने आ रही है. राजेंद्र सिंह गुड्डा से पहले खेल मंत्री अशोक चांदना भी कांग्रेस के भीतर की राजनीति और अफसरशाही से परेशान होकर मंत्री पद से इस्तीफे की पेशकश चुके हैं. कुल मिलाकर अशोक गहलोत सरकार के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. नेताओं की आपसी कलह के कारण अफसरशाही हावी है. इससे ना केवल कांग्रेस संगठन, सरकार बल्कि आमजन को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है. 2023 के आखिरी में होने वाले चुनाव से पहले यह सारा घटनाक्रम कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है.
अशोक गहलोत का नंबर एक मंत्री है सुपर सीएम
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