Ram Gopal Jat
भगवान कृष्ण ने श्रीमद्भागवद गीता में कहा है कि 'कर्म कर फल की इच्छा मत कर, तेरे कर्म के हिसाब से फल तो मैं दे ही दूंगा।' यह बात इस सृष्टि की रचना से लेकर आजतक सत्य रही है और हमेशा रहेगी। जो व्यक्ति निष्काम कर्मयोगी होता है, उसको फल अवश्य मिलता है। इसी को भाग्य कहते हैं। जो आपके हाथ में नहीं हो और ईश्वर के द्वारा प्रदत हो, वही भाग्य है। आप यदि ईमानदारी से कर्म करते हैं तो ईश्वर आपके कर्मों के अनुसार फल अवश्य देता है। ईश्वर के यहां पर न्याय का सिद्धांत ही काम करता है, वहां मानव जाति की तरह रिश्वत का कोई कॉन्सेप्ट नहीं है। आपने देखा होगा कई बार आपके आसपास का व्यक्ति अचानक से सेलेब्रेटी हो जाता है और कई करोड़पति एक झटके में रोडपति हो जाते हैं। यही ईश्वर के न्याय का सिद्धांत है। इसलिये सबसे जरुरी चीज यह है कि कर्म किये जाना चाहिये और वह भी पूरी ईमानदारी से, एक दिन आपको उसके अनुरुप फल जरुर मिलता है।
ऐसी ही कर्मयोगी एक महिला हैं द्रोपदी मुर्मू, जिनको एक दिन पहले ही भाजपा ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। एक साधारण घरेलू महिला के जीवन में उतार चढाव आये और वह मजबूरी में शिक्षक बनीं, फिर कलर्क बनीं और इस तरह से धीरे—धीरे कर्म के सिद्धांत पर आगे बढ़ती रहीं, आज उनको देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने का अवसर मिल रहा है।
बीजेपी ने मंगलवार को अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया है। इसके लिए बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू का चुनाव किया है। द्रौपदी मुर्म राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतकर सर्वोच्च पद तक पहुंचने वाली देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। कौन हैं बीजेपी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू...जिनको भाजपा ने संविधान के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाया है।
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में हुआ। उनके पिता का नाम बिरांची नारायण टुडु है। वे आदिवासी जातीय समूह संथाल से संबंध रखती हैं।अद्रौपदी का बचपन गरीबी और अभावों के बीच बीता। ऐसी स्थिति में भी संघर्ष करते हुए उन्होंने ऊंचाइयों को छुआ। उन्होंने बीए तक शिक्षा हासिल की है।
पति और दो बेटों की मौत के बाद द्रौपदी मुर्मू ने जीवन यापन करने के लिये नौकरी करने का फैसला किया। वह सिंचाई और बिजली विभाग में 1979 से 1983 तक जूनियर असिस्टेंट के तौर पर काम कर चुकी हैं। वर्ष 1994 से 1997 तक उन्होंने रायरंगपुर के श्रीअरबिंदो इंटीगरल एजुकेशन सेंटर में ऑनरेरी असिस्टेंट टीचर के तौर पर भी सेवाएं दीं। इसके बाद वह भाजपा के टिकट पर पार्षद बनीं।
वर्ष 2000 और 2004 में द्रौपदी मुर्म बीजेपी के टिकट पर रायरंगपुर सीट से विधायक चुनी गई थीं। इसके साथ ही वह बीजेपी एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी रह चुकी हैं। ओडिशा में बीजू जनता दल और बीजेपी गठबंधन सरकार में द्रौपदी मंत्री रह चुकी हैं। उन्होंने मार्च 2000 से कई 2004 तक राज्य के वाणिज्य व परिवहन तथा मत्स्य और पशु संसाधन विकास विभाग के मंत्री का पद संभाला। वर्ष 2007 में द्रौपदी को ओडिशा विधानसभा के बेस्ट एमएलए ऑफ द ईयर पुरस्कार दिया गया था।
इसके बाद उन्होंने वर्ष 2015 से 2021 तक झारखंड के राज्यपाल का पद संभाला। द्रौपदी मुर्म झारखंड की ऐसी पहली राज्यपाल थीं, जिन्होंने वर्ष 2000 में इस राज्य के गठन के बाद पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया।
यह तो हुई उनके राजनीतिक और निजी जीवन की जानकारी। अब बात करते हैं कि आखिर भाजपा ने एक आदिवासी महिला को ही राष्ट्रपति पद के लिये क्यों चुना? इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन जो चीजें बिलकुल साफ तौर पर समझ में आ रही हैं, उनमें सबसे बड़ा कारण है भाजपा की सोच। अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में मुस्लिम तबके से आने वाले एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाया गया था। इसके बाद भाजपा सत्ता से दूर रही।
जब 2014 में सत्ता में लौटी तो 2017 में राष्ट्रपति बनाने का अवसर आया, तब दलित समाज से आने वाले रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया गया। अब भाजपा आदिवासी समाज को अवसर देकर सबसे बड़े पद पर बिठाना चाहती है। भाजपा दिखाना चाहती है कि जिसको केवल अमीर तबके की पार्टी कहा जाता था, सर्व स्पर्शी है, ना कि केवल कुल धनाड्य लोगों का दल है। इसीलिये भाजपा सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास का नारा देती है।
दूसरा बड़ा कारण यदि वोट बैंक के हिसाब से देखा जाये तो देश के कई राज्यों में आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। सबसे पहले बात यदि आने वाले विधानसभा चुनाव से की जाये तो गुजरात में आदिवासी वोट 15 फीसदी है। यहां की 26 सीटें आदिवासियों के लिये आरक्षित हैं, जबकि 35 सीटों पर आदिवासी समाज निर्णायक भूमिका में होता है। इसी तरह से दूसरा राज्य है कर्नाटक, जहां पर भी इसी साल चुनाव होने की संभावना है। कर्नाटक में भी आदिवासी समुदाय के सवा 6 लाख से ज्यादा परिवार हैं। इस वोट में यदि भाजपा सेंधमारी करती है, तो सत्ता में लौटना आसान हो जायेगा। इसी साल के अंत में गुजरात में चुनाव होने जा रहे हैं, इसलिये आदिवासी समाज की महिला को सर्वोच्च पद पर बिठाकर इस समाज में भाजपा सकारात्मक संदेश देना चाहती है।
इसके बाद अगले साल के अंत में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव हैं, जहां पर भी आदिवासियों का बड़ा प्रभाव है। राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर और प्रतापगढ़ जनजाति बहुल ज़िले हैं जबकि चित्तौड़गढ़, पाली, सिरोही और राजसमंद ज़िलों की कुछ तहसीलें जनजाति क्षेत्र में आती है। 2011 की जनगणना के अनुसार इन 8 जिलों में 5696 गांव हैं। इन गांवों में रहने वाली जनसंख्या की 70.42 प्रतिशत आबादी आदिवासी या जनजाति है। इसपर बीटीपी की नजर है, जबकि अधिकांश जिले गुजरात से लगते हुये या उसी की तरफ पड़त है, जिसके कारण गुजरात की बीटीपी अपना प्रभाव बढ़ाती जा रही है। बीटीपी के इस वक्त दो विधायक हैं और आगे इनकी संख्या बढ़ने की संभावना है। कांग्रेस से छिटककर बीटीपी में जाते आदिवासियों को भाजपा की तरफ मोड़ने में भी द्रोपदी मुर्मू की उम्मीदवारी सहायक हो सकती है।
मध्य प्रदेश की बात की जाये तो यहां पर करीब 21 फीसदी जनसंख्या आदिवासी, यानी अनुसूचित जनजाति की है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मध्य प्रदेश में इनका कितना बड़ा प्रभाव है। छत्तीसगढ़ भी आदिवासी बाहुल्य राज्य है, जहां पर करीब 31 फीसदी जनजाति आबादी है। इसी तरह से दक्षिण के कई राज्यों में जनजाति बाहुल्य लोकसभा और विधानसभा सीटें हैं। पूरे देश की बात की जाये तो करीब 10 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं। इसी से समझ आता है कि इस बड़े वर्ग को लंबे समय तक राजनीति में दरकिनार किया गया है।
देश के उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि में आदिवासी बहुसंख्यक हैं, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक हैं। भारत के पूर्वोत्तर मिजोरम जैसे राज्यों में आदिवासी बहुसंख्यक हैं। भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में " अनुसूचित जनजातियों " के रूप में मान्यता दी है। इतने बड़े वर्ग समूह के नेतृत्व को सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बिठाना देश के कई मायनों में बदलाव का संकेत है। लंबे समय से भाजपा को विरोधी दलों के द्वारा दलित, आदिवासी, मुस्लिम विरोधी होने का ठप्पा लगाया जाता रहा है, लेकिन द्रोपदी मुर्मू जैसे लोगों को आगे लाने के कारण देश में बीजेपी के खिलाफ फैला यह नैरेटिव तोड़ने में मदद मिलेगी।
सबसे अहम बात यह है कि कोई भी दल द्रोपदी मुर्मू के नाम पर विरोध करने की हिम्मत तक नहीं करेगा। जबकि उडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने नाम के ऐलान के साथ ही घोषणा कर दी है कि बीजू जनता दल उनको अपना समर्थन देगी। इसी तरह से आंद्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने भी अपना समर्थन दे दिया है। अब द्रोपदी मुर्मू की जीत तय है, जबकि विपक्ष ने भाजपा के ही पूर्व बागी नेता यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाकर अपने पैरों पर कुल्हाडी मार ली है। भाजपा से नफरत का आलम यह है कि ममता बनर्जी की हालात खिसियानी बिल्ली खंबा नौचे वाली हो गई है। हो सकता है कि भाजपा की आदिवासी महिला उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू के नाम पर ममता के उम्मीदवार सिन्हा की जमानत भी नहीं बचे।
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