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भारत के खिलाफ इस्लाम बचाने एक हुये थे खाड़ी देश?

Ram Gopal Jat
पिछले दिनों एक टीवी डिबेट में भाजपा की प्रवक्ता द्वारा नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर को लेकर कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के बाद छिडा विवाद अब खाड़ी देशों और भारत में विरोध करने वाले मुसलमानों के गले की हड्डी बनता जा रहा है। भारत में जहां जुमे की नमाज के बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज और सहारनपुर में हुई पत्थरबाजी का हिसाब योगी आदित्यनाथ चुन चुनकर ले रहे हैं, तो रांची में चली गोलियों में दो लोगों की मौत के बाद बड़े पैमाने पर पत्थरबाजों पर मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही की जा रही है। इधर, दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शन के साथ हुडदंग करने वाले 2 पत्थरबाजों को गिरफ्तार किया है। देशभर में शुक्रवार को नमाज के नाम पर होने वाली हिंसा के खिलाफ लोग उठ खड़े हुये हैं। मांग की जा रही है कि या तो शुक्रवार को नमाज पर ही रोक लगा दी जाये, या फिर जिस मस्जिद में नमाज होगी, उसकी भीड़ की जिम्मेदारी उसी मस्जिद के इमाम पर तय की जानी चाहिये। लोगों ने सोशल मीडिया पर गुस्सा ​जाहिर करते हुये लिखा है कि अब शायद शुक्रवार की जगह पत्थरवार और शनिवार की जगह लठ्ठवार बोलना पड़ेगा, क्योंकि मुस्लिम समाज के लोग शुक्रवार को नमाज के बाद जगह जगह पत्थर मारने व दंगा करने का काम करते हैं, तो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इनके खिलाफ अगले दिन, यानी शनिवार को एक्शन लेते हुये थानों में जोरदार सुताई करती है।
बात अगर पैगंबर विवाद की करें तो जिस तरह का रियेक्शन कतर, कुवैत और पाकिस्तान जैसे 16 इस्लामिक देशों ने दिया, उससे साफ है कि यह कोई सोची समझी साजिश थी, जिसका पहले से ही प्लान था और मौके का इंतजार किया जा रहा था, ताकि समय आने पर भारत के खिलाफ अभियान चलाया जा सके। इस घटना के बाद ईरान जैसा देश पीछे हट चुका है, तो मालदीव की संसद में बहस के लिये वोटिंग में उन्हीं के सांसदों ने प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग की है। पर समझने वाली बात यह है कि कतर जैसा छोटा सा टुकडानुमा देश क्या इतना बड़ा अभियान चला सकता है? कतर की कैपेसिटी की बात की जाये तो वहां पर सबसे बड़ी चीज कच्चे तेल का भंडार और अल जजीरा जैसा इस्लामिक मीडिया समूह है, जो दुनियाभर में इस्लामिक एजेंडा चलाता है। भारत से भी कुछ लोग हैं, जो अल जजीरा से जुड़े हुये हैं। ऐसा ही एक फेक न्यूज स्प्रेडर है मोहम्मद जुबेर, जो अल्ट न्यूज नाम से पोर्टल चलाता है। कहने को तो फेक्ट चैक करता है, लेकिन हकिकत यह है कि यह केवल अपने इस्लामिक एजेंडे के अनुसार चलता है, उसको फैक्ट्स से कोई मतलब नहीं है। इसलिये जुबेर ने नूपुर का आधा वीडियो काटकर कतर में अपने मित्रों को भेजा और वहीं से सारा अभियान चलाया गया।
इसके साथ ही भारत में बैठे पीएफआई के लोगों द्वारा अपने संपर्कों का इस्तेमाल करते हुये इस्लामिक देशों में भारत के खिलाफ अभियान को हवा दी गई। यह कई बार सिद्ध हो चुका है कि पीएफआई के लोगों का अल कायदा और दूसरे आंतकी संगठनों से सपंर्क है। हालांकि, इससे पहले इसी संगठन के लोग सिमी के सदस्य थे, जब यूपीए सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगाया तो सारे सदस्यों ने मिलकर पीएफआई बना ली और वही काम उसके जरिये शुरू कर दिया। पीएफआई इस्लाम के नाम पर भारत में जिहाद का काम करती है। यह भी तथ्य सामने आ चुके हैं कि पीएफआई को कतर, कुवैत जैसे देशों से बड़े पैमाने पर फंडिंग होती है, जिससे भारत में अपना नेटवर्क चलाते हैं। पीएफआई का संबंध चीन से भी मिला है। भारत की गुप्तचर एजेसिंयों ने सरकार को चेताया है कि चीन से भारत में अस्थिरता के लिये पीएफआई जैसे संगठनों को पैसा और कानूनी सहायता दी जाती है। पीएफआई और अल जजीरा के पहले ही संपर्क साफ हो चुके हैं। अल जजीरा पर भारत में हिंदू विरोधी अभियान को बढ़ावा देने के लिये अल्ट न्यूज जैसे पोर्टल शुरू किये गये हैं, जो मुसलमानों के गलत कामों पर पर्दा डालते हैं और फैक्ट चैक के नाम पर एजेंडा चलाते हैं। कहा जाता है कि अमेरिका के कतर में बेस कैंप है, जहां से भी काफी मदद मिलती है। इस मामले में जहां सार्वजनिक तौर इस्लामिक संगठनों ने अपनी भूमिका निभाई तो अमेरिका व चीन ने पर्दे के पीछे से इस अभियान को हवा दी। नतीजा यह हुआ कि इस्लामिक देशों के समूह ओआईसी ने भी पाकिस्तान जैसों के कहने पर बयान जारी किये और भारत से इस मामले में माफी मांगने की मांग की गई।
यह मामला जितना आसान दिखाई देता है, उतना है नहीं। क्योंकि इसमें इस्लामिक संगठन तो टूल बन रहे हैं, असल में चीन और अमेरिका इस मामले में शामिल हैं। यह बात जग जाहिर है कि चीन, भारत को कमजोर करने में जुटा रहता है, जबकि हालिया रूस यू्क्रेन युद्ध के वक्त से अमेरिका भी भारत को दबाव में लेने के लिये काफी कुछ कर रहा है। अब सवाल यह उठता है कि क्या यह अभियान इस्लाम के लिये था? क्या मुसलमानों के लिये था? तो सबसे पहला सवाल यह उठता है कि जब इस्लाम के नाम पर ही सबकुछ किया जा रहा है तो फिर ये सभी 57 इस्लामिक देश चीन द्वारा उइगर मुसलमानों पर किये जाने वाले अत्याचारों को लेकर आंखें क्यों मूंद लेते हैं? चीन के शिंजियांग प्रांत में करीब सवा करोड़ मुसलमान रहते हैं, जिनपर चीन किस तरह से प्रतिबंध लगाकर उनको चीन की शिक्षा से जोड़ रहा है, किसी से छिपा नहीं है। वहां पर सितंबर 2017 में ही मुसलमानों से कुरान छीन ली गई थी। खुद ओआईसी समेत सभी देश सभी इस्लामिक देशों को पता है कि चीन में उइगर मुसलमानों पर चीनी सरकार कितने अत्याचार करती है, लेकिन ये सभी देश मिलकर उसके खिलाफ चूं तक नहीं कर सकते। चीन में सरकारी मुसलमानों को रोजे रखने पर रोक है, तो पांच बार की नमाज भी नहीं पढ़ सकते। इसी तरह से मस्जिदों के आकार बदल दिये गये हैं। मुस्लिम महिलाओं को बुर्का पहनने पर रोक है और पुरुष लंबी दाढ़ी नहीं रख सकते। इसी तरह से मदरसों पर पूर्ण प्रतिबंध है। यानी कुल मिलाकर चीन में मुसलमानों को भारत की तरह स्वतंत्रता कतई नहीं है, फिर भी कोई इस्लामिक देश चीन के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर सकता, क्योंकि इन सबके हित भारत के खिलाफ आपस में जुड़े हुये हैं, किसी को इस्लाम या मुसलमानों से मतलब नहीं है।
तब सवाल यह उठता है कि फिर मुसलमानों के भारत में ही क्यों सारे नियम कायदे लगाये जाते हैं? पहली बात तो यह है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां पर संविधान में मूल अधिकार दिये गये हैं, इसके अलावा धर्म निरपेक्षता जोड़कर सरकार को किसी भी धर्म का पक्ष लेने या विरोध करने का अधिकार खत्म किया हुआ है, जिसका फायदा पीएफआई जैसे कट्टर इस्लामिक संगठन उठाते हैं। यह साफ है कि भारत में इस्लाम के मानने वाले विदेशी नहीं हैं, ये सभी लोग कन्वर्टेड हैं। इसलिये एक आम धारणा है कि जो लोग खुद धर्म बदल चुके हैं, वहीं लोग सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं। भारत में अधिकांश मुस्लिम धर्म बदलकर बने हैं, इसलिये उनको लगता है​ कि बाकियों को भी उसी रास्ते पर ले जाया जाना ठीक है, जिसपर वो चल रहे हैं। यही कारण है कि आये दिन धर्म के नाम पर दंगे हो जाते हैं। वैसे भारत में भी यदि चीन की तरह शासन हो तो सब दंगाइयों का धार्मिक रोग कुछ ही समय में उतर जायेगा।
राजनीतिक रोटियां सेकने वाली ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल से लेकर हिंदू पार्टी कही जाने वाली शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे जैसा व्यक्ति भी आज दंगा करने वाले मुसलमानों का पैरोकार बना हुआ है, तो असद्दुीन ओवैशी खुलेआम हिंदू मुस्लिम करता रहता है। इसलिये जरुरत इस बात की है कि देश के खिलाफ गतिविधि करने वालों से ठीक वैसे ही निपटा जाना चाहिये, जैसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निपट रहे हैं। यही कारण है, जिसके चलते यूपी में दंगे होने से पहले दंगाई चार बार सोचते हैं और दंगा करने के बाद खुद ही पुलिस को सरेंडर भी कर देते हैं।

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