Ram Gopal Jat
रिक्शा चलाने वाले को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना दिया। इससे कुछ दिन पहले ही आदिवासी विधवा महिला को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बना दिया। उससे पहले 2014 में चाय बेचने वाले को प्रधानमंत्री बना दिया। एक किसान के बेटे को 2019 में पार्टी का अध्यक्ष बना दिया। ऐसे कितने उदाहरण हैं देश में, जब साधारण परिवार और गरीबी से उठकर देश सेवा करने वाले किसी ना किसी कार्यकर्ता को सर्वोच्च पद पर बिठाया गया हो। यह सब केवल लोकतंत्र में ही हो सकता है, संविधान को मानने वाले लोग ही कर सकते हैं। जिनके मन में स्वतंत्र भारत के लिये बनाये गये संविधान के प्रति अघाध प्रेम होता है, वही लोग इसका पालन भी करते हैं। लेकिन जिनको संविधान और लोकतंत्र केवल दिखावे के लिये और फायदा उठाने के लिये ही पसंद हो, वे लोग केवल अपने और अपनों तक ही सीमित रहते हैं, यानी परिवारवाद और उसी परिवारवाद में लोगों को उलझाये रखते हैं, सपने दिखाते रहते हैं और उनको यूज एण्ड थ्रू कर देते हैं।
आपको भले ही सुनने में अटपटा लगे, लेकिन आज की तारीख में देश की सभी राजनीतिक पार्टियों में लोकतंत्र और संविधान केवल भाजपा में ही है। तभी तो भाजपा में चाय बेचने वाला नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के पद पर पहुंच जाता है, भाजपा द्वारा रिक्शा चलाने वाले एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना दिया जाता है, और यह भाजपा में ही संभव है कि योग्य हो तो दूसरे दलों से आये हुये नेता हेमंत बिश्वा शर्मा को भी सीएम बनाकर आसाम जैसा राज्य सौंप दिया जाता है। यह भाजपा ही है, जिसमें जनता की मांग पर मठ के भगवाधारी संत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनााया जाता है, तो कर्नाटक में एक योग्यताधारी और जूनूनी पूर्व आईएएस अधिकारी, जो राजनीति करना चाहता है तो उसको प्रदेश का संगठन प्रमुख बना दिया जाता है और किसान के बेटे डॉ. सतीश पूनियां को भोगौलिक रुप से सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान का पार्टी अध्यक्ष बना दिया जाता है।
यह भाजपा ही है, जिसमें योग्यता के आधार पर महान वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाया जाता है, तो दलित समाज से आने वाले वकील रामनाथ कोविंद को सर्वोच्च पद पर बिठाकर सम्मान दिया जाता है। अलबत्ता आदिवासी समुदाय से आने वाली विधवा महिला को देश का प्रथम नागरिक बनाने का कार्य भी भाजपा द्वारा ही किया जा सकता है। ऐसे हजारों उदाहरण हैं, जिनसे दिखता है कि भाजपा ही वह दल है, जिसमें सही मायने में लोकतंत्र जिंदा है, और संविधान को आत्मसात किया जाता है।
आपको बताउंगा कि कैसे भाजपा देश और समाज के लिये काम करने वालों को लोकतंत्र में सबसे अग्रिम पंक्ति में पहुंचाने का काम करती है, उससे पहले आपको यह पता होना चाहिये कि देश की अन्य पार्टियों में कैसे परिवार ही संविधान और लोकतंत्र होता है, उनमें ना लोकतंत्र है, ना संविधान और ना ही संविधान के लिये कोई सम्मान है। इन दलों में केवल और केवल परिवारवाद ही सबकुछ होता है, उनको भारत के संविधान से और लोकतंत्र से कोई सरोकार नहीं है। आइए जानते हैं कि ये दल कैसे लोकतंत्र का मजाक बनाकर बैठी हैं।
देश की सबसे पुरानी कही जाने वाली पार्टी कांग्रेस की बात करें तो अधिक कुछ बताने की जरुरत नहीं है। दल का गठन भले ही आजादी से पहले एओ ह्यूम द्वारा किया गया है, लेकिन स्वाधीनता के बाद इस पार्टी पर नेहरू और गांधी खानदान का ही कब्जा रहा है। बीते 25 साल से इस पार्टी पर दो मां—बेटे ने राज किया है, बल्कि केवल मां ही कब्जा जमाये हुये हैं। सोनिया गांधी पहली बार अप्रैल 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनी थीं। तब से लेकर अब तक, बीच में दिसंबर 2017 से अगस्त 2019 तक केवल पौने दो साल की अल्प अवधि के लिये राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष रहे। यानी 25 साल से पार्टी का संविधान और लोकतंत्र मां और बेटे के आसपास ही सिमटकर रह गया है।
बीते 75 साल की बात की जाये तो कांग्रेस के में 34 साल गैर गांधी परिवार के लोग अध्यक्ष रहे हैं, जबकि 41 साल गांधी परिवार ने ही इस अहम पद को कब्जे में रखा है। सियासी जानकारों का मानना है कि जिस दिन गांधी परिवार कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया जायेगा, उस दिन यह पार्टी खत्म हो जायेगी। कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं की हालात यह है कि उनके लिये गांधी परिवार ना तो उगलते बन रहा है, ना निगलते बन रहा है। जिस दल की स्थापना कभी आजादी की लड़ाई लड़ने के नाम पर की गई हो, वह दल बीते 25 साल से एक परिवार की बपौती बनी हुआ है। परिवारवाद की वजह से यह दल अब अंतिम सांसें गिन रहा है, लेकिन गांधी परिवार इसको छोड़ना नहीं चाहता है।
दूसरे नंबर पर है तृणमूल कांग्रेस, यानी टीएमसी, जो कभी कांग्रेस का ही हिस्सा हुआ थी। बाद में ममता बनर्जी ने अपना अलग रास्ता चुन लिया, लेकिन अलग कुछ नहीं किया। वही परिवारवाद आज टीएमसी पर हावी है। अभी ममता बनर्जी अध्यक्ष हैं और अपने भतीजे की ताजपोशी के लिये सचिव बनाया हुआ है। टीएमसी में ना संविधान का पता है, ना चुनाव का और ना ही नेताओं का कि कभी बनर्जी परिवार के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति भी पार्टी की कमान संभाल सकता है।
ऐसे ही किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने राष्ट्रीय लोक दल बनाई थी, जिसपर कभी चौधरी चरणसिंह अध्यक्ष थे, फिर उनके बेटे अजीत सिंह अध्यक्ष रहे, अब अजीत सिंह के बाद चौधरी चरण सिंह के पौते जयंत सिंह रालोद के अध्यक्ष हैं। तीन पीढ़ियां ही संविधान और लोकतंत्र है, और भविष्य में भी इस परिवार के बाहर किसी के अध्यक्ष बनने की संभावना नहीं के बराबर है।
उत्तर प्रदेश में ही समाजवादी पार्टी की स्थापना जेपी आंदोलन से निकले मुलायम सिंह ने की थी। जब तक शरीर ने साथ दिया, तब तक हमेशा वही अध्यक्ष रहे, बाद में जब 2017 को चुनाव नजदीक आये तो बाप—बेटे में लड़ाई चली और बेटे अखिलेश यादव ने कुर्सी हथिया ली, तब से वही अध्यक्ष हैं। अब जब तक अखिलेश जीवित हैं, तब तक उनको कोई हिला भी नहीं सकता। सपा की तरह ही बसपा है, जिसकी स्थापना भले ही कांशीराम ने की हो, लेकिन मायावती के अध्यक्ष बनने के बाद कोई दूसरा अध्यक्ष बनने के बारे में सोच भी नहीं पाया है। बीते तीन दशक से इस पद पर मायावती विराजमान हैं। मायावती ने अपने उत्ताधिकारी को भी तैयार कर लिया है। अपने भाई के बेटे आकाश आंनद को महासचिव बनाकर खुद के हटने के बाद पार्टी अध्यक्ष बनाने की तैयारी कर ली है। यानी बसपा भी हमेशा परिवारवादी पार्टी ही बनी रहेगी।
बिहार की बात की जाये तो जेपी आंदोलन से जन्मे नेता लालू यादव ने आरजेडी बनाई, जिसके हमेशा वही अध्यक्ष रहे। चारा घोटाले में लालू के जेल जाने के बाद उनके बेटे तेजस्वी यादव अध्यक्ष हैं। आजतक किसी को अध्यक्ष बनाने या बनने के बारे में विचार भी नहीं किया गया। इस परिवारवादी पार्टी का आलम यह है कि लालू सीएम बने, वो जेल गये तो पत्नी को सीएम बना दिया और जब गठबंधन से सत्ता मिली तो बेटे को डिप्टी सीएम बना दिया। मतलब परिवार ही पार्टी और परिवार ही सत्ता इस दल का संविधान है।
ऐसे ही शरद पवार की एनसीपी है, जो कभी कांग्रेस से ही निकली थी। स्थापना से लेकर इस दल के आज तक शरद पवार ही सर्वेसर्वा हैं। जम्मू कश्मीर की पीडीपी या नेशनल कॉन्फ्रेंस भी परिवार से बाहर नहीं निकलतीं। हरियाणा में चौटालाओं की पार्टियां, पंजाब में अकाली दल, दक्षिण में एआईडीएमके, डीएमके, बीजद, केसीआर, अन्नाद्रमुक और यहां तक कि वामपंथी सीपीआई और सीपीएम में भी बरसों से एक या दो ही लोग बैठे हैं। दिल्ली में अन्ना आंदोलन से पैदा हुआ सबसे बड़ा झूठा आदमी बीते 9 साल से मठाधीश बना हुआ है। क्रांति लाने के नाम पर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी के पहले और आखिरी संयोजक अरविंद केवरीवाल ही बने हैं। जब से संयोजक बने हैं, तब से कुर्सी छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। यह पार्टी भी एक व्यक्ति तक सिमट गई है। कहा जा रहा है कि अब राघव चड्डा को केवरीवाल अपना जवांई बनाकर उनको संयोजक बनायेंगे। मतलब इस दल का केजरीवाल ही संविधान है।
कहने का मतलब यह है कि देश में भाजपा को छोड़कर कोई भी दल ऐसा दिखाई नहीं देता है है, जो वास्तव में लोकतंत्र पर भरोसा करता हो, और संविधान के अनुसार चलता हो। साल 1980 में स्थापना से लेकर बीते 42 साल के दौरान भाजपा के 11 अध्यक्ष बने हैं और सबसे मजेदार बात यह है कि एक परिवार से दूसरा व्यक्ति अध्यक्ष नहीं बना। सभी अध्यक्ष अलग अलग जाति, क्षेत्र और भाषाई विभेद से दल के सर्वोच्च पद तक पहुंचे हैं। भाजपा अपने संविधान का पूरा पालन करती है। पार्टी में एक व्यक्ति लगातार दो ही बार अध्यक्ष रह सकता है, तो यही परंपरा कायम है। 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी से शुरू हुआ सिलसिला आज जेपी नड्डा तक ज्यों का त्यों चल रहा है, लेकिन ना थमा है, ना बदला है। भाजपा में यदि कोई नेता मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन जाता है, तो वह तुरंत प्रभाव से अध्यक्ष पद से इस्तीफा देता है। भाजपा एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत पर चलती है।
यही कारण है कि महज 25 साल पहले पार्टी में शामिल होकर पार्षद का चुनाव लड़ने वाली आदिवासी विधवा महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिये चुना जाता है। जबकि पार्टी में कई दिग्गज नेता राष्ट्रपति बनने को तैयार बैठे हैं। पार्टी ने आजतक ना तो अपने संविधान को तोड़ा और ना ही कभी देश के संविधान का उल्लंघन किया। यही कारण है कि भाजपा आज लगातार दो बार से केंद्र की सत्ता में है और कई राज्यों में अजेय बनी हुई है। गुजरात जैसे राज्य में भाजपा 27 साल से अजेय है और आज भी कोई दल चुनौती देकर जीत दर्ज करता नजर नहीं आ रहा है।
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में योगी के दम पर लगातार दूसरी बार बहुमत से सत्ता में है। इसी तरह से बीच का डेढ साल छोड़ दें तो मध्य प्रदेश में पार्टी दो दशक से सत्ता में है। हरियाणा में दूसरी बार, उत्तराखंड में दूसरी बार, उससे पहले छत्तीसगढ़ में तीन बार, झाडखंड में दो बार सत्ता में रही। जिन राज्यों भाजपा अछूत थी, वहां पर अब दूसरे दलों की जमीन खिसकने लगी है। देश की जनता यह जान चुकी है कि अन्य दल केवल भावनाओं का शोषण करते हैं, जबकि भाजपा में नीचे से नीचे के कार्यकर्ता को भी योग्यता के आधार पर उपरी पद पर बैठने का अवसर मिलता है।
इसलिये यह कहना गलत नहीं होगा कि देश की जनता उसी दल को पसंद करती है, जो संविधान से चलता है, जिसमें निचले कार्यकर्ता को उपर तक पहुंचने का विश्वास होता है और जिसमें सभी जाति, क्षेत्र, धर्म के लोगों को सम्मान दिया जाता है। अब वो दिन लद गये, जब परिवार और व्यक्ति के नाम से वोट मिलते थे, अब काम के दम पर वोट मिलते हैं और नेता की योग्यता के दम पर ही वह आगे बढ़ सकता है।
यही कारण है कि हेमंत बिश्वा शर्मा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद जैसे नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। उनको यह पता है कि कांग्रेस में रहते कभी भी अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के पद तक नहीं पहुंचा जा सकता है। सियासी जानकारों को मानना है कि साल 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद कभी भी राजस्थान से सचिन पायलट भी भाजपा में शामिल हो जायेंगे। कांग्रेस आज केवल दो राज्यों की सत्ता में है, जबकि अन्य कोई भी दल एक राज्य से बाहर निकलने की सोच भी नहीं पाते हैं। भाजपा कोने कोने में स्वीकार्य है और जहां नहीं है, वहां पर भी पैर पसारती जा रही है।
लोकतंत्र और संविधान केवल भाजपा में है
Siyasi Bharat
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