Ram Gopal Jat
सरकार की यदि निर्णय लेने की क्षमता हो, और समय रहते यदि वैश्विक समुदाय को अपनी ताकत का अहसास को कराया जाये तो दुनिया अपने आप सलाम ठोकने लगती है। फिर चाहे सामने शक्ति हो या महाशक्ति। भारत ने भी बीते एक तिमाही में जिस तरह से विश्व की सबसे बड़ी ताकत कहे जाने वाले अमेरिका को अपनी शक्ति से परिचय करवाया है, उसी का परिणाम है कि भारत को हर महीने अरबों डॉलर का फायदा हो रहा है। मोदी सरकार की चतुराई और दबंगता ने साबित कर दिया है कि दुनिया की कोई भी ताकत भारत को अपने हिसाब से नहीं चला सकती।
जब मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे, तब उन्होंने एक टीवी चैनल के साथ बातचीत करते हुये कहा था कि हमें अमेरिका के सामने गिडगिडाने की जरुरत नहीं है, आंख से आंख मिलाकर बात करनी चाहिये। इसका सबसे बड़ा सबूत भारत ने 24 फरवरी से शुरू हुए रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान दिया है। नाटो संगठन की सरपरस्ती में चल रहे इस युद्ध के दौरान अमेरिका ने रूस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया, यहां तक कि उसके बैंकिंग सिस्टम को भी कोलेप्स करने का पूरा प्रयास किया। यूरोप व अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने भी अमेरिकी दबाव में रूस के खिलाफ कड़े कदम उठाये हैं।
अमेरिका, चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी बड़ी ताकत है, जिसकी गतिविधि दुनिया के लिये काफी अहम है। अमेरिका यूक्रेन के पीछे खड़ा होकर रूस से युद्ध कर रहा है। इसलिये अमेरिका ने भारत व चीन से भी रूस के खिलाफ होने को कहा, लेकिन चीन जहां खुलेआम रूस के साथ खड़ा है, तो भारत ने निरपेक्ष नीति को अंजाम दिया और ना रूस से दोस्ती तोड़ी और ना ही अमेरिका से दुश्मनी की। भारत ने साफ किया है कि वह युद्ध के पक्ष मे नहीं है, लेकिन किसी के दबाव में आकर रूस के संबंध खराब नहीं करेगा। भारत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जिनके साथ उनके हित होंगे, उन्हीं देशों के साथ कारोबार जारी रखेगा।
भारत ने रूस के साथ ना केवल दोस्ती बढ़ाई, बल्कि कारोबार को भी नई उंचाइयां दीं। नतीजा यह हुआ कि भारत ने कारोबार के जिहाज से रूस के साथ नये आयाम स्थापित कर दिये। आज युद्ध को सवा सौ दिन से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन इसी दौरान भारत ने अरबों डॉलर का फायदा उठाया है। भारत दुनिया से सर्वाधिक तेल आयात करता है, जिससे भारत को प्रतिवर्ष अरबों डॉलर देने पड़ते हैं, लेकिन इस युद्ध में भारत की चतुराई और दबंगता ने भारत के करोड़ों डॉलर बचा लिये, बल्कि विश्व के कई देशों को तेल बेचकर अबरों डॉलर कमा भी लिये हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय रिफाइनरी तेल कंपनियों का भारी मुनाफा हुआ है। रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बीच भारत ने रूस से कच्चा तेल आयात काफी बढ़ा दिया है। इंडियन ओयल और रिलायंस जैसी तेल कंपनियां भारी मात्रा में रूस का कच्चा तेल खरीदकर उसे रिफाइंड कर रही हैं और इसके बाद इस तेल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक कीमतों पर बेचकर मोटा मुनाफा कमा रही हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जहां दुनिया कच्चेत तेल की बढ़ती कीमतों से परेशान है, वहीं भारत की बड़ी तेल कंपनियों का जैकपॉट लग गया है। भारत की तेल कंपनियां विश्व बाजार में सर्वोत्तम क्वालिटी का माने जाने वाले रूसी यूराल ईंधन तेल को भारी मात्रा में खरीद रही हैं और इसे रिफाइंड करके एशिया और अफ्रीका के बाजारों में उच्च अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर बेच रही हैं। रूस के साथ चल रहे इस व्यापार में भारतीय तेल कंपनियों को भारी मुनाफा हो रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध उम्मीद से काफी लंबे समय से चल रहा है और ये जल्दी खत्म होता नहीं दिख रहा। जिसके कारण भारतीय तेल कंपनियों को इससे काफी लाभ हो रहा है। इससे पहले भारत कभी रूसी तेल का इतना बड़ा खरीददार नहीं रहा है। रूस से भारत में तेल आने में 45 दिनों से अधिक का समय लग जाता है। तेल का ये परिवहन भारत के लिए काफी महंगा पड़ता है। इसके उलट मध्य-पूर्व के देशों से तेल खरीद कर उसके परिवहन में भारत को काफी कम समय लगता है। इराक से भारत के गुजरात के बंदरगाह तक तेल पहुंचने में केवल 6 दिन लगते हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले भारत रूस से अपनी जरूरत का केवल 2% ईंधन तेल खरीदता था। फरवरी में युद्ध शुरू होने के कारण एक बार रूस से भारत का तेल खरीद शून्य हो गया, लेकिन अब स्थिति बिल्कुल उलट हो गई है। एनालिटिक्स फर्म केप्लर के आंकड़ों के अनुसार भारत ने मई में 840,645 बैरल प्रतिदिन रूसी कच्चे तेल का आयात किया है। अनुमान है कि जून में भारत के द्वारा 10.50 लाख बैरल प्रतिदिन आयात किया जायेगा।
केप्लर में क्रूड एनालिसिस के सह-प्रमुख विक्टर कैटोना ने कहा है कि रूस से भारत को कच्चा तेल आयात केवल 100 दिन में शून्य से 10 लाख बैरल तक पहुंच गया है। इसका मतलब ये है कि 2 प्रतिशत से रूसी यूराल क्रूड भारत की कुल खरीद का लगभग 20 प्रतिशत हो गया। युद्ध को देखते हुए पश्चिमी देशों और अमेरिका ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे रूस का ईंधन तेल वैश्विक बाजार में औंधे मुंह गिरा है। इस कारण रूस मजबूरन भारत जैसे देशों को सस्ता तेल बेच रहा है। रूस के तेल खरीद पर भारतीय कंपनियों को 30-40 डॉलर के बीच छूट मिल रही है। इसका मतलब है कि जब ब्रेंट तेल की कीमतें 125 डॉलर प्रति बैरल थीं, तब भारत की रिफाइनरी कंपनियां यूराल क्रूड को 90-95 डॉलर पर उसे खरीद रही थीं।
कुछ समय के लिए भारत दुनिया के सबसे बड़े तेल उपभोक्ता हो गया है। भारत इस वक्त चीन से आगे निकलकर रूसी तेल का दुनिया में सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। भारत की रिफाइनरी कंपनियां रूस से जिस कीमत पर तेल खरीद रही हैं, वो अब तक सबसे सस्ता है, जिसके कारण भारतीय कंपनियों को बहुत भारी मुनाफा हुआ है। ऐसे में तेल की शिपिंग पर एक या दो डॉलर एक्सट्रा लगना कोई मायने नहीं रखता है। रिलायंस और नायरा एनर्जी जैसी निजी क्षेत्र की रिफाइनरी कंपनियां पिछले महीने अनुमानित 250,000 बैरल प्रतिदिन की खरीद कर रही हैं। हालांकि, बड़ी सरकारी तेल कंपनियां भी रूसी तेल खरीद में पीछे नहीं हैं, उनकी तेल खरीद 450,000 बैरल प्रतिदिन बताई जा रही है। नायरा एनर्जी का 49 प्रतिशत स्वामित्व रूस की सबसे बड़ी सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट के पास है।
ऐसे वक्त में जब यूरोप और अमेरिका मिलकर रूसी तेल पर कड़े प्रतिबंध लगा रहे हैं, भारतीय कंपनियां भारी मात्रा में तेल खरीद रही हैं। तो सवाल यह उठता है कि क्या यूरोप और अमेरिका इसे लेकर भारतीय कंपनियों से नाराज हो सकते हैं? इस सवाल के जवाब में तेल व्यापारियों का कहना है कि उन्हें ऐसा नहीं लगता है कि यूरोपीय देश या अमेरिका ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जिससे भारतीय कंपनियों को रूस से तेल न खरीदने के लिए बाध्य होना पड़े, क्योंकि अगर भारत के माध्यम से वैश्विक बाजार में ये तेल नहीं पहुंचा तो तेल की कीमतें और बढ़ेंगी।
आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि भारत की तेल रिफाइनरी कंपनियां रूस से तेल खरीद को और अधिक बढ़ाने वाली हैं। फिलहाल के लिए युद्ध के बीच भी भारत की तेल रिफाइनरी कंपनियां बेहद अच्छी स्थिति में हैं और उनके इस मोटे मुनाफे के लिए एकमात्र खतरा रूस-यूक्रेन युद्ध का समाप्त होना है, जिसकी अभी उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है।
आपको याद होगा करीब दो माह पहले एक समय ऐसा भी आया था, जब अमेरिका ने भारत द्वारा रूस से तेल और हथियार खरीद करने से रोकने का पूरा प्रयास किया था। तब भारत के विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने वैश्विक मंचों पर साफ कहा था कि भारत अपने हित के लिये जो उचित होगा, वही करेगा, इसके लिये उसको किसी के दबाव में आने की जरुरत नहीं है। अमेरिका ने एक दर्जन बार प्रयास किये थे कि कैसे भी भारत रूस के साथ अपने संबंध तोड़कर अमेरिका के हिसाब से चलने लगे, लेकिन ये भारत की नरेंद्र मोदी सरकार की दबंगता ही थी, कि अमेरिका के लाख चाहने के बाद भी भारत ने अपना कारोबार खत्म नहीं किया, बल्कि सस्ता तेल मिलता देख खरीद और बढ़ा दी।
असल में अमेरिका चाहता था कि अमेरिका व यूरोप रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगा ही चुके हैं, तो उनके मित्र राष्ट्र भी मजबूरी में उनके साथ खड़े हैं, लेकिन भारत व चीन अभी भी रूस के साथ कारोबार कर रहे हैं। अमेरिका को यह पता है कि चीन उसके कहने में नहीं आयेगा, इसलिये उसके उपर दबाव नहीं बनाया गया, जबकि हमेशा अमेरिका के कहने में आकर ईरान जैसे देशों से तेल खरीब बंद करने वाले भारत से उसको ऐसी उम्मीद नहीं थी। यही कारण था कि वह साम, दाम, दण्ड, भेद से भारत को दबाव में लेकर रूस के संबंध खत्म करने के प्रयास करता रहा है। अभी भी अमेरिका परोक्ष रुप से भारत को दबाव में लेने के तमाम प्रयास कर रहा है।
मोदी की चतुराई से भारत को अरबों डॉलर का फायदा
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