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अमेरिका को चीन की ताइवान पर अभियान की खुली चेतावनी

Ram Gopal Jat
ऐसे लगता है कि दुनिया में अमेरिका के डर का अंत हो गया है। अमेरिका ने पहले रूस को खूब धमकाया, लेकिन उसे धत्ता बताकर रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया, आज युद्ध को करीब सवा सौ दिन होने को हैं, लेकिन युद्ध का अंत नहीं हो रहा है। रूस पर अमेरिका सभी तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाये, यहां तक कि पूरे यूरोप समेत कई देशों ने भी रूस पर प्रतिबंध लगाये हैं, लेकिन फिर भी वह पीछे नहीं हट रहा है। एक तरह से रूस ने अमेरिका की ताकत को पूरी तरह से धत्ता बता दिया है। अब अमेरिका के सामने दोहरी समस्या है, वह ना तो यूक्रेन को हार के लिये कह सकता और ना ही रूस को पीछे धकेल पा रहा है। जिसके कारण उसकी महाशक्ति वाली पदवी खतरे में पड़ती जा रही है। एक ओर जहां रूस को अमेरिका का डर खत्म हो गया है, तो साथ ही रूस के खिलाफ खड़ा करने के लिये वह भारत पर कई तरह के हथकंड़े अपनाकर थक चुका है, बावजूद इसके वह सफल नहीं हो पाया है, ऐसे में भारत के साथ सहयोग का बर्ताव शुरू कर दिया है। लेकिन अमेरिका के लिये चीन सबसे भारी समस्या के रुप में सामने आ रहा है, जो अमेरिका की चेतावनी के बाद भी उसका आंख दिखा रहा है।
एक ओर जहां यूरोप में रूस और यूक्रेन का युद्ध चल रहा है, दूसरी ओर ची की ताइवान पर हमला करने की खबर ने अमेरिका को अंदर तक हिलाकर रख दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप के बाद एशिया में भी युद्ध छिड़ सकता है। एक लीक रिकॉर्डिंग में चीन भी ताइवान को कब्जाने की कोशिश कर रहा है। रिकॉर्डिंग में चीन के सैन्य अधिकारी बात कर रहे हैं कि ताइवान के लिए युद्ध शुरू करने से पीछे नहीं हटेंगे। चीन अपने 140,000 सैनिकों के साथ ताइवान पर हमला करने की प्लानिंग कर रहा है। द सन की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में स्थित एक चीनी निर्वासित ने ऑडियो और गुप्त रूप से ली गई तस्वीर को प्रकाशित किया है। उसकी ओर से कहा गया कि सेना के वरिष्ठ सदस्यों ने यह रिकॉर्डिंग लीक की है, क्योंकि वह इस बात को लेकर चिंतित हैं कि चीन की ताइवान के खिलाफ आक्रामकता एशिया की शांति के लिए खतरा है। जिन सैन्य अधिकारियों ने ये रिकॉर्डिंग सार्वजनिक की है, उनकी जान अब खतरे में है।
रिकॉर्डिंग के अनुसार सिविलियन और मिलिट्री कमांड की संयुक्त बैठक थी, जो चीन के दक्षिणी शहर ग्वांगझू में हुई थी। इस बैठक में ताइवान पर कब्जा करने की योजना बनाई गई थी। मीटिंग में इस बात पर चर्चा हुई है कि चीन युद्ध शुरू करने, ताइवान की स्वतंत्रता और दुश्मनों की साजिश को कुचलने से पीछे नहीं हटेगा। यह रिकॉर्डिंग लुड मीडिया की ओर से जारी की गई है। इस ऑडियो को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि ये चीन के नेताओं के सार्वजनिक बयानों से मेल खाते हैं। चीन पहले ही ताइवान को कुचलने की कसम खा चुका है। चीन के रक्षामंत्री ने हाल ही में अमेरिका के रक्षामंत्री से मुलाकात के दौरान कहा था कि वह ताइवान के लिए युद्ध शुरू करने से पीछे नहीं हटेंगे। रिकॉर्डिंग में कहा गया है कि सेना के अधिकारी ग्वांगझू से 140,000 सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार रखने की बात कर रहे हैं। इससे पहले वह ताइवान को डरान के लिये उसके आसपास सैन्य अभियान कर चुका है।
ताइवान पर हमला करने के लिए 953 जहाज और 1653 अलग-अलग ड्रोन शामिल करने की बात हुई है। इसके अलावा 20 हवाई अड्डे और बंदरगाह, जहाजों के शिप बिल्डिंग यार्ड, 14 इमरजेंसी ट्रांसफर सेंटर, अनाज डिपो, हॉस्पिटल, ब्लड बैंक, तेल डिपो और पेट्रोल पंपों को भी युद्ध के लिए तैयार रखने की बात कहा गया है। चीन की यह तमाम तैयारी अमेरिका के लिये चिंता का विषय है। अमेरिका इस समय यूक्रेन को सैन्य उपकरण उपलब्ध करवा रहा है, जबकि वह ताइवान पर हमले के बाद चीन के खिलाफ सैन्य एक्शन लेने की कसम खा चुका है। चीन और अमेरिका में तनातनी तक खुलकर सामने आई थी, जब पिछले दिनों जापान में क्वाड शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह कहा था कि यदि ताइवान पर चीन हमला करता है तो अमेरिका चीन पर आर्मी एक्शन लेगा। इसके साथ ही जापान ने भी अमेरिका का साथ देने का वचन दिया था। इस पर चीन ने कडी आपत्ति जताते हुए कहा था कि वह अपनी संप्रभुता और अखण्डता के लिये किसी से भी युद्ध कर सकता है। असल में चीन के द्वारा ताइवान को अलग देश के बजाये अपना ही एक प्रांत मानता आया है। दुनिया के 13 देश ऐसे हैं, जो ताइवान को अलग देश के रूप में मान्यता देते हैं, जबकि अमेरिका इस सूची में नहीं है, फिर भी वह ताइवान को स्वतंत्र रखने के लिये प्रयास कर रहा है।
यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया और अमेरिका समेत मित्र राष्ट्रों ने चीन के खिलाफ आर्मी एक्शन लिया तो यह तय है कि रूस भी चीन की ओर से युद्ध में उतरेगा, जिसके परिणामस्वरूप तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है। भारत जैसे कुछ गुट निरपेक्ष देश ही इस युद्ध में खुद को नहीं झोकेंगें। रूस के द्वारा यूक्रेन पर हमला करते वक्त जो गलतियां की गई हैं, उनको भी चीन नहीं दोहराना चाहेगा। चीन को इस बात का पक्का पता है कि इस युद्ध के परिणाम बहुत ही भयानक होंगे, लेकिन फिर भी वह इसको लेकर जिद पर अड़ा हुआ है। असल बात तो यह है कि चीन की विस्तारवादी नीति के कारण कई देशों पर वह अधिपत्य जमा चुका है, जबकि कई पडोसी देशों की जमीन दबाकर बैठा है। भारत की भी 38000 वर्गकिलोमीटर जमीन को चीन 1965 से हडपकर बैठा है। हालांकि, भारत व चीन के बीच सीमा विवाद चलता रहता है, लेकिन फिर भी भारत अभी चीन के साथ युद्ध में उलझने के बजाये विकास पर ध्यान दे रहा है। जिस तरह की रिपोट्स लगातार सामने आ रही हैं, उससे ऐसा लगता है कि चीन का ताइवान पर हमला होना लगभग तय है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या दुनिया के दो—तीन बड़े देशों की जिद के कारण दुनिया एक बार फिर से विश्वयुद्ध की त्रासदी की ओर बढ़ रही है?

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