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अशोक गहलोत की सीएम पद से छुट्टी होनी तय है

Ram Gopal Jat
राजस्थान में चार राज्यसभा सीटों के लिये चुनाव 10 जून को होने जा रहा है। उससे पहले कांग्रेस ने जहां अपने विधायकों को उदयपुर की दो होटलों की बाड़ेबंदी में बंद कर दिया है, तो भाजपा भी 5 तारीख को जयपुर में ऐसा ही करने जा रही है। हालांकि, जयपुर की एक पांच सितारा होटल में दो दिन प्रशिक्षण के नाम पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच खूब शब्दबाण चले हैं, तो कुछ निर्दलीय विधायकों के पीछे पुलिस का पहरा बिठाकर हर बात पर भाजपा पर लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाने वाले गहलोत खुद चुने हुये जनप्रतिनिधियों को डराने का काम कर रहे हैं। सबसे मजेदार बात तो यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तक पर भी गहलोत सरकार ने पुलिस का पहरा बिठा दिया है। एक दिन पहले प्रशिक्षण शिविर में बोलते हुये गहलोत ने कहा था कि वसुंधरा राजे ने ही सुरक्षा के लिये पुलिस की मांग की थी, जबकि वसुंधरा ने एक वीडियो बयान जारी कर कहा है कि सरकार इतनी डरी हुई है कि उनकी निगरानी के लिये भी पुलिस जाप्ता लगा दिया है। इधर, निर्दलीय विधायकों के उदयपुर बाड़े में नहीं पहुंचने पर उनके ​घरों पर भी पुलिस का पहरा लगा दिया है। जबकि बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुये विधायकों ने कांग्रेस के बाड़े में जाने से मना ​कर दिया है।
बसपा से कांग्रेस में शामिल हुये सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने सीधा मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया है कि गहलोत बोलते बहुत ज्यादा हैं। साथ ही कांग्रेस प्रभारी अजय माकन पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया है। गुढ़ा ने बिलकुल स्पष्ट कर दिया है कि उन्होंने सरकार बचाने के लिये कांग्रेस का साथ दिया था, ना कि राज्यसभा चुनाव के लिये गारंटी दी थी। उन्होंने कांग्रेस के बाड़े में जाने से साफ मना कर दिया है। चर्चा यह है कि बसपा के विधायकों को उनकी सदस्यता को लेकर हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में राहत की उम्मीद नहीं है, ऐसे में वे लोग अभी से पाला बदलकर खुद को बसपा के सिपाई साबित करने में जुटने लगे हैं। बसपा अध्यक्ष भगवान बाबा ने भी दो दिन पहले राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर बसपा के सभी 6 विधायकों का किसी भी उम्मीदवार को समर्थन नहीं देने की बात कही है। असल में राजस्थान से चार राज्यसभा सीटों के लिये चुनाव होने जा रहा है। राजस्थान विधानसभा के 200 सदस्यों की संख्या के आधार पर हर एक उम्मीदवार को जीतने के लिये कम से कम 41 वोट की जरुरत है। इस वक्त कांग्रेस के पास 102 विधायक हैं, जबकि 6 निर्दलीय साथ हो चुके हैं, तो संख्या बढ़कर 108 होती है। कांग्रेस ने तीन उम्मीदवार उतारे हैं, ऐसे में उनको कम से कम 123 वोट की दरकार है। इसके साथ ही अभी कांग्रेस को 2 सीपीएम, दो बीटीपी के विधायकों के शामिल होने की संभावना है।
रोचक खेल इसलिये चल रहा है, क्योंकि कांग्रेस के तीनों प्रत्याशियों को जीतने के लिये अभी भी 15 वोट की जरुरत है। यदि सभी निर्दलीय भी कांग्रेस को वोट करते हैं, तो भी तीसरे प्रत्याशी को जीत के लिये 9 वोट कम पड़ते हैं। ऐसे ही यदि सीपीएम के 2 और बीटीपी के दो विधायकों ने भी कांग्रेस के पक्ष में वोट किया, तो भी 7 वोट की दरकार होगी। इसलिये सारा दारोमदार बसपा के 6 विधायकों के उपर आ गया है। इधर, भाजपा के पास खुद के 70 विधायक हैं, जबकि भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी घनश्याम तिवाडी को जीत के लिये जरुरी 41 वोट देने के बाद भाजपा के पास 31 विधायक अतिरिक्त बचते हैं। निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा के सर्मथन में आरएलपी के 3 विधायकों ने वोट करने का ऐलान किया है। फिर भी उनको जीत के लिये 8 वोट की आवश्यकता है। इसलिये सबका ध्यान बसपा के 6 विधायकों और कांग्रेस कैंप में नहीं पहुंचे बाकी 7 निर्दलीय विधायकों के उपर है। गहलोत ने दावा किया है कि उनके सभी तीनों उम्मीदवार जीत जायेंगे, जबकि यही बात सुभाष चंद्रा ने कही है। गहलोत ने पहले ही दिन होर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया है, इसका मतलब यह है कि उनके विधायकों को भाजपा समर्थित सुभाष चंद्रा खरीद सकते हैं।
गहलोत ने वैसे तो कहा है कि जब सरकार संकट में थी, तभी 35 करोड़ के ओफर में हमारे विधायक नहीं गये तो इससे अधिक भाजपा क्या ओफर करेगी? हालांकिं, उन्होंने यह बयान देकर भी दो तरफा खेल किया है, एक तरफ तो विधायकों की रेट तय कर दी है, दूसरी तरफ परोक्ष रुप से यह भी कह दिया है कि यदि बिकना ही है, तो कम से कम 35 करोड में तो बिकना। यह तो हुई वर्तमान चुनाव की बात, अब बात करते हैं कि कैसे गहलोत ने पिछले साढ़े तीन साल में राजस्थान को चारागाह भूमि बना दिया है, जहां लोग बाहर से चरने आते हैं, यहीं चुने जाते हैं और जरुरत पड़ने पर उनको सुरक्षित रखने के लिये बाड़ा भी यहीं बना दिया जाता है। इस सरकार में अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार एक राज्यसभा सीट के लिये चुनाव हुआ, जिसको संख्या के आधार पर कांग्रेस ने जीत लिया। इसके बाद मार्च 2020 में मध्य प्रदेश में सियासी संकट आया तो कांग्रेस के 91 विधायकों को जयपुर में दिल्ली रोड स्थिति आलीशान ब्यूना विस्टा होटल में रखा गया, जिसके एक कमरे का ​किराया एक लाख रुपये प्रतिदिन है। उसके बाद अगस्त 2021 में कर्नाटक में कांग्रेस सरकार पर संकट आया तो कर्नाटक के कांग्रेसी विधायकों को गहलोत ने सुरक्षा दी और जयपुर की उसी होटल में रखा। उससे पहले 2020 में महाराष्ट्र में भी सरकार बदलने का नाटकीय घटनाक्रम चला, तो वहां के कांग्रेसी विधायकों को जयपुर की ब्यूना विस्टा होटल में रखा गया था।
11 जुलाई 2020 को पायलट कैंप ने गहलोत सरकार ने बगावत की तो पूरी सरकार 34 दिन तक जयपुर और जैसलमेर के दो होटलों में कैद रही। इस दौरान पायलट कैंप हरियाणा के मानेसर में रहा। कुल मिलाकर उस एक माह में जहां राज्य की जनता कोरोना की वैश्विक महामारी से जूझ रही थी, तो कांग्रेस के विधायक सरकार गिराने और बचाने को लेकर आपस में लड़ रहे थे। मार्च 2020 में ही राज्य की तीन राज्यसभा सीटों पर हुये चुनाव के दौरान भी कांग्रेस के विधायकों को होटलों में कैद रखा गया था। इस वक्त उदयपुर को चुना गया है, जहां पिछले दिनों ही कांग्रेस को राष्ट्रीय चिंतन शिविर आयोजित किया गया है। अब चार सीटों पर चुनाव है, जो अशोक गहलोत सरकार की आखिरी अग्निपरीक्षा हो सकते हैं। इस चुनाव में यदि कांग्रेस के तीनों उम्मीदवार जीत जाते हैं तो माना जायेगा कि वास्तव में अशोक गहलोत राजनीति के जादूगर हैं, जिससे उनका कांग्रेस में कद और बढ़ जायेगा, और यदि एक सीट भी कांग्रेस हार जाती है, तो निश्चित तौर पर गहलोत की सीट पर सकंट आयेगा। और ऐसे में राज्य में 2023 के दौरान सत्ता रिपीट कराने के नाम पर कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री की कुर्सी पर सचिन पायलट को बिठाने पर विचार कर सकता है। कांग्रेस के लोगों का भी मानना है कि यह चुनाव गहलोत के लिये सबसे बड़ी परीक्षा साबित होगा। इसमें एक हार का मतलब यही है कि विधायकों की सख्त नाराजगी है, जो कांग्रेस को फिर से सत्ता दिलाने में नाकाम रहने वाली है।
पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के पदाधिकारी भी जुलाई में राज्य का मुख्यमंत्री बदलने की बातों कह रहे हैं। सचिन पायलट पहले ही कई बार कह चुके हैं कि यदि सत्ता ने जनता से किये वादे पूरे नहीं किये तो दुबारा सत्ता में लौट पाना कठिन हो जायेगा। सचिन पायलट यही बात बीते दो साल में कई बार कह चुके हैं। सचिन पायलट अपनी इस बात को कांग्रेस आलाकमान के समक्ष भी दोहरा चुके हैं। इसलिये यह माना जा रहा है कि यह राज्यसभा चुनाव गहलोत के ​जीवन की सबसे बड़ी परीक्षाओं में से एक हो सकता है, क्योंकि एक सीट हार का मतलब उनका हटना तय है और हटने का मतलब यह है कि गहलोत सरकार सुशासन देने में पूरी तरह से नाकाम रही है। यदि गहलोत को हटाया गया तो भी भाजपा मुद्दा बनायेगी कि कांग्रेस ने जनता से किये वादे पूरे नहीं किये, इसलिये मुख्यमंत्री बदला गया है, और यदि नहीं बदला गया तो यह भी तय है कि जनता ने जो बहुमत सचिन पायलट के नाम पर 2018 में कांग्रेस को दिया था, वह इस बार कतई नहीं मिलने वाला है।

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