Ram Gopal Jat
अमेरिका, चीन, रूस, कनाडा, कुवैत, कतर, यूएई, ओस्ट्रेलिया जैसे विकसित कहे जाने वाले देशों से भारत 7 लाख करोड़ रुपये की वसूली करेगा। इन देशों ने भारत के हक पर डाका डाला है, जिसकी वजह से हर साल भारत के करीब 90 हजार लोगों की असामयिक मौत हो जाती है। भारत सरकार ने इन देशों को साफ कह दिया है कि हर्जाना तो देना होगा, चाहे आप कुछ भी करो। पूरा मामला क्या है और ये देश भारत को इतना मोटा हर्जाना देंगे? तमाम सवाल हैं, जिनके उत्तर जानने का प्रयास करेंगे, लेकिन उससे पहले कुछ तथ्य हैं, जिनको जानना बेहद जरुरी है।
इन विकसित देशों की वजह से भारत में हर साल भीषण गर्मी पड़ती है और इस वजह से 83 हजार लोगों की मौत हो जाती है।
दूसरा यह है कि इन देशों के द्वारा किये जाने वाले अप्राकृतिक कार्यों की वजह से भारत में विकराल ठंड से हर साल 6.50 लाख लोगों की मौत होती है।
तीसरा नुकसान आपदा और क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रहा है, जिसके कारण भारत में हर साल 50 लाख लोगों को पलायन करना पड़ता है।
हद से अधिक गर्मी, जरुरत से ज्यादा ठंड़ और आवश्यकता से अधिक बरसात की मार झेल रहे भारत के लोगों का इसमें कोई दोष नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण हैं विकसित देश, जो हर साल जरुरत से लाखों गुणा अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं। इसके कारण अधिक गर्मी पड़ती है, अधिक सर्दी होती और कई जगह अतिवृष्टि होती है, जिससे बाढ़ आता है और खेती का भी नाश हो जाता है। जर्मनी के बोन शहर में हुई क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में भारत ने इन सबके लिए अमीर देशों को जिम्मेदार ठहराया है और इसके लिए होने वाले खर्च की भरपाई करने को कहा है।
अमेरिका जैसे सभी विकसित और अमीर माने जाने वाले देशों को भारत साफ कहा है कि आपकी वजह से दुनिया में गर्मी बढ़ी है। बाढ़ और सूखे के लिए भी आप जिम्मेदार हैं, इसलिए अब आपको इसकी भरपाई भी करनी होगी।
दुनिया के ताकतवर देश क्लाइमेट चेंज का हवाला देकर भारत पर कम कोयला इस्तेमाल के लिए दबाव बनाते रहे हैं, लेकिन 6 जून से 16 जून तक जर्मनी के बोन शहर में आयोजित क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस में भारत ने अमीर देशों को आइना दिखाया और आंकड़ों के साथ कहा है कि आपके कारण पृथ्वी विनाश की तरफ जा रही है। भारत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दुनिया की 10% आबादी 52% कार्बन छोड़ने के लिए जिम्मेदार है। द लैंसेंट की रिपोर्ट के मुताबिक अकेले अमेरिका 40% कार्बन छोड़ता है।
इन्हीं कारणों से दुनिया भर के लोगों को क्लाइमेट चेंज, लू चलने, बाढ़ और सूखे का सामना करना पड़ रहा है। इन इन अति मौसमी समस्याओं से निपटने के लिए भारत में हर साल करीब 7 लाख करोड़ रुपए खर्च होते हैं, इसलिये भारत ने इसके लिये अमेरिका जैसे देशों को जिम्मेदार ठहराते हुये अमीर देशों से इस खर्च की भरपाई की मांग की है।
भारत ने कहा कि कार्बन की समस्या को खत्म करने के और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए विकसित देशों का यह पैसा विकासशील देशों के लिए मददगार साबित होगा।
इससे पहले विकसित देशों ने साल 2009 की कोपनहेगन की बैठक में भारत जैसे विकासशील देशों को जुर्माना के तौर पर 2020 तक सालाना 7.80 लाख करोड़ रुपए देने का वादा किया था। इस फंड का इस्तेमाल विकासशील देशों के कार्बन उत्सर्जन को कम करने में किया जाना था, लेकिन विकसित देश अपने वादे से मुकर गए, इसलिए ऐसा नहीं हो सका।
क्लाइमेट फाइनेंस से मशहूर इस फंड से 2022 तक 7 हजार करोड़ डॉलर से अधिक खर्च होने थे, लेकिन 4 हजार करोड़ डॉलर ही खर्च हो पाया, वो भी उस तरह से नहीं, जैसा किया जाना था। इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि भारत को अबतक इसमें पैसा नहीं के बराबर मिला है।
दुनिया में कोयले पर निर्भरता को खत्म करने के लिए बड़े बदलाव और नई तकनीक की जरूरत है। इसमें सबसे बड़ी रुकावट 90% से ज्यादा कार्बन छोड़ने के लिए जिम्मेदार अमेरिका, कनाडा जैसे विकसित देशों से जुर्माने के तौर पर फंडिंग न मिलना भी है। यही वजह है कि भारत अब भी बिजली बनाने में कोयले का इस्तेमाल कर रहा है।
भारत और चीन को कोयला इस्तेमाल करने से रोकने वाले अमेरिका, ब्रिटेन, ओस्ट्रेलिया, रूस जैसे विकसित देश यहां तैयार होने वाले ज्यादातर प्रोडक्ट का इस्तेमाल खुद ही करते हैं। इन समानों के बनाने में विकासशील और गरीब देश कोयले का उपयोग करते हैं।
इसलिये भारत ने साफ किया है कि ग्लोबल नॉर्थ के विकसित देशों को भारत पर दबाव नहीं बनाने के साथ ही अपना कंजम्पशन कम करना चाहिए। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि विकसित देशों में पूरी दुनिया की केवल 24% आबादी रहती है, जबकि इन देशों में दुनिया 50% से 90% चीजों का खपत होता है।
इसलिये भारत ने जोर देकर कहा है कि यदि आप लोग अपना उपभोग कम नहीं करेंगे और कार्बन उत्सर्जन बढ़ाते रहेंगे तो आने वाले समय में आपके कारण दुनिया के विकासशील और गरीब देशों की जनता बैमौत मरती रहेगी, जिसके लिये जिम्मेदार आप होंगे। भारत ने अपनी ताकत का अहसास कराते हुये कहा है कि अब एक दशक पुराना समय बीत चुका है, जब दुनिया हमारी बात को गंभीरता से नहीं सुनती थी, अब अमेरिका जैसे देशों को भी भारत की बात को पूरी गंभीरता से सुनना होता है। दुनिया में हो रहे बदलावों के बीच भारत को विकासशील देशों को साफ संदेश है कि या तो चीजों का इस्तेमाल कम करके कार्बन उत्सर्जन कम करना शुरू कर दें, अन्यथा जुर्माना तो देना ही होगा।
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