Ram Gopal Jat
राज्यसभा चुनावों में BJP समर्थक राज्यसभा उम्मीदवार सुभाष चंद्रा ने राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सचिन पालयट को नसीहत दी है। उन्होंने कहा है कि सचिन पायलट यदि यह मौका चूक गये तो 2028 तक मुख्यमंत्री नहीं बन पायेंगे। सचिन पायलट को ऐसी सलाह क्यों दी है और इसका क्या असर हो सकता है? इस बारे में विस्तार से बात करेंगे, लेकिन उससे पहले यह जानना जरुरी है कि आज की परिस्थति में राजस्थान की चार राज्यसभा सीटों में से कांग्रेस को कितनी मिल सकती है, भाजपा को क्या मिलेगा और निर्दलीय सुभाष चंद्रा की जीत की संभावना कितनी है?
किंतु उससे पहले जान लीजिये कि भाजपा कांग्रेस मिलकर बाड़ेबंदी पर कितना माल लुटा रही है। कांग्रेस में जादू सिर चढ़कर बोल रहा है, तो भाजपा में योग का प्रशिक्षण किया जा रहा है। लेकिन इसी जादू और योग पर करोड़ों रुपये स्वाहा किये जा रहे हैं। भाजपा तो मान लेते हैं कि वह सत्ता में नहीं है, इसलिये खर्चा या तो पार्टी फंड में से किया जा रहा होगा, या फिर किसी उद्योगपति द्वारा व्यवस्थायें की जा रही होंगी, लेकिन सवाल यह उठता है कि पिछले दिनों कांग्रेस के मंथन शिविर की तरह इस बाड़ेबंदी का पैसा पार्टी फंड से दिया जा रहा है या जिस तरह से मैनेजमेंट का काम गहलोत कर रही हैं, वैसे ही खर्चा भी सरकार, यानी जनता के पेसों से ही किया जा रहा है? दोनों दलों के खर्चे का हिसाब आपके होस उड़ा सकता है। पहले बात भाजपा की करें तो इस योग शिविर के नाम पर 50 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। भाजपा ने 4 दिन के लिये होटल के 65 कमरें बुक करवाये हैं, जिनमें से 15 कमरे वरिष्ठ विधायकों को दिये गये हैं, इसके अलावा बाकी में दो दो विधायक एक साथ रह रहे हैं। एक कमरे का किराया और खाना मिलाकर प्रतिदिन 15 हजार रुपये है। इसलिये किराया और खाना मिलाकर 37 लाख 20 हजार रुपये होता है। इसी तरह से 9 लाख 30 हजार रुपये बाड़ेबंदी पर अन्य खर्च होगा।
इधर, कांग्रेस की बात की जाये तो 150 कमरे बुक हैं, जिनमें विधायक 7 दिन तक रहने वाले हैं। हर एक विधायक को अलग कमरे मिले है, जबकि उनके साथी भी रहेंगे। एक विधायक का रहने व खाने का खर्च 20 हजार रुपये आ रहे हैं, मतलब यह है कि हर दिन 30 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। इस हिसाब से 7 दिन में कुल खर्च 2 करोड़ 10 लाख रुपये आयेगा।
जी मीडिया समूह के मालिक चंद्रा ने जयपुर में पत्रकारों से बातचीत में दावा कि भाजपा के 30 विधायकों के अलावा 12 और विधायकों का समर्थन उनके साथ है, क्योंकि कांग्रेस के 8 विधायक क्रॉस वोटिंग करेंगे, तो दूसरी पार्टियों के चार और विधायक भी उनको वोट करेंगे।
कांग्रेस के विधायक इसलिए क्रॉस वोटिंग करेंगे, क्योंकि वे विधायक इस राज से परेशान रहे हैं। एक तरह से जलालत महसूस कर रहे हैं। इसलिए उनको समर्थन का भरोसा है। कांग्रेस की बाड़ेबंदी में शामिल विधायकों में से आठ ने उनको वोट देने का वादा किया है। विधानसभा के 200 सदस्यों में से 102 विधायक कांग्रेस के हैं, 12 निर्दलीय विधायक हैं, 6 बसपा से कांग्रेस में शामिल हुये हैं, 3 रालोपा, 2 बीटीपी, 2 सीपीएम, 1 आरएलडी और 71 विधायक भाजपा के हैं। इनमें से कांग्रेस, बसपा, निर्दलीय, बीटीपी, सीपीएम और आरएलडी वालों का समर्थनक कांग्रेस को बताया जाता है, जबकि भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार घनश्याम तिवाड़ी को 41 वोट के बाद भाजपा के पास 30 विधायक अतिरिक्त बचते हैं। साथ ही 3 विधायक रालोपा के हैं, जो भी सुभाष चंद्रा को समर्थन का ऐलान कर चुके हैं।
जबकि सुभाष चंद्रा दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस के 8 और दूसरे दलों के 4 विधायक भी उनको ही वोट करेंगे। इस तरह से भाजपा के अलावा उनको 15 वोट और मिलेंगे। यही कारण है कि राजस्थान की पूरी सरकार उदयपुर में कैद हो गयी है। हालांकि, भाजपा ने भी दिल्ली रोड पर एक होटल में प्रशिक्षण शिविर के नाम पर अपने विधायकों को बाड़े में कैद कर दिया है। सरकार की ओर से जलदाय मंत्री महेश जोशी ने एसीबी को ज्ञापन देकर जांच करने की मांग की गई है। साथ ही ईडी को भी शिकायत की गई है कि सुभाष चंद्रा उनके विधायक खरीदने का काम कर रहे हैं। अशोक गहलोत पहले ही आशंका जता चुके हैं कि भाजपा होर्स ट्रेडिंग करने वाली है।
आखिर राजनीतिक दलों को अपने ही विधायकों पर भरोसा क्यों नहीं है? असल में बाड़ेबंदी शुरू होने के बाद भी कई निर्दलीय और बसपा के 6 विधायकों ने गहलोत कैंप में उदयपुर जाने से इनकार कर दिया था। उन्होंने दावा किया था कि गहलोत बोलते बहुत ज्यादा हैं, पर उनको हमारे साथ बैठक मंथन करना चाहिये था। बाद में ये सभी 6 विधायक गहलोत के साथ उदयपुर चले गये। इसी तरह से 7 निर्दलीय विधायक भी नहीं जा रहे थे, जिनको भी गहलोत ने चुन चुनकर उदयपुर पहुंचाया है। किंतु फिर भी कांग्रेस को ऐसा लग रहा है कि उनके विधायक, निर्दलीय और बसपा वाले क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं। इसलिये सभी को उदयपुर ले जाकर होटल में एक तरह से बंद कर दिया गया है।
राजस्थान में इस सरकार के दौरान यह एक परंपरा ही बन गई है कि, जब भी सरकार राज्यसभा चुनाव या फिर बगावत का अहसास होता है, तो बाड़ेबंदी में चली जाती है, जिस राज्य की जनता ने उनको चुना है, उसको अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। इससे पहले मार्च 2020 में तीन सीटों के चुनाव के समय और जुलाई में गहलोत पायलट कैंप में अदावत के दौरान भी सरकार 34 दिन तक बाड़े में कैद रही थी। बाद में सुलह हुई तो सारे विधायक और मंत्री बाहर आये थे। अब एक बार फिर वही हाल हो रहा है।
किंतु सवाल यह उठता है कि आखिर किस दम पर सुभाष चंद्रा यह कह रहे हैं कि 12 विधायक उनको वोट करेंगे? असल में सुभाष चंद्रा को लगता है कि निर्दलीय विधायक भले ही गहलोत के बाड़े में हो, लेकिन वोट उनको ही करेंगे, क्योंकि निर्दलीय विधायकों पर व्हिप का असर नहीं होता है, इसलिये ये लोग बिना दिखाई वोटिंग करते हैं। यही कारण है कि गहलोत को डर है कि कहीं 13 निर्दलीय, 6 बसपा वालों में से कोई सुभाष चंद्रा को वोट नहीं कर दें। और इसी दम पर सुभाष चंद्रा ने सचिन पायलट को सलाह देते हुये कहा है कि उनके पास यह आखिरी मौका है, आज यह मौका चूक गए तो 2028 तक सीएम नहीं बनेंगे, सचिन पायलट कांग्रेस के जुझारू नेता हैं। उनके पिता से उनके बहुत अच्छे संबंध थे। अशोक गहलोत भी हाईकमान को आंख दिखाते हैं, उसी तरह सचिन पायलट को भी अब अपना स्टैंड लेना चाहिए। राज्यसभा चुनावों में उनके पास मौका है, अगर वे समर्थन करते हैं तो 2023 में उनके सीएम बनने के चांस बनते हैं। नहीं तो 2028 तक कोई चांस नहीं है।
सीएम अशोक गहलोत से उनके व्यक्तिगत संबंध हैं, वे मित्र हैं। राज्यसभा चुनाव में नामांकन से पहले उनके प्रतिनिधि को भेजकर गहलोत से बात की। तब गहलोत ने कहा था कि पहले बात होती तो वे कुछ मदद करते, लेकिन अभी कोई मदद नहीं कर पायेंगे, यह अच्छी बात है कि उन्होंने अंधेरे में नहीं रखा। बसपा से कांग्रेस में शामिल हुये छह विधायकों को लेकर सुभाष चंद्रा ने कहा कि उन्होंने चुनाव आयोग को शिकायत भेजी है। बसपा से कांग्रेस में जाने वाले विधायक हो सकता है, वोटिंग प्रोसेस में ही शामिल नहीं हो पाएं, क्योंकि जिस प्रक्रिया से उनका मर्जर हुआ है वह गलत है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिरी पायलट क्या अपनी पार्टी के खिलाफ वोटिंग कर सकते हैं? तो इसकी संभावना नहीं के बराबर है, क्योंकि पायलट को अब भी लगता है कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन होगा और उनको मुख्यमंत्री बनाया जायेगा। यही कारण है कि सुभाष चंद्रा को जवाब देते हुये उन्होंने यह राज्यसभा चुनाव है, कोई टीवी सीरियल नहीं है, जहां पिक एण्ड चूज का सिस्टम हो। इसका मतलब साफ है पायलट को अभी भी कांग्रेस आलाकमान से उनके साथ न्याय किये जाने को भरोसा है। वैसे भी चुनाव में अभी करीब 18 महीने का समय बाकी है, इसलिये लोगों का मानना है कि कांग्रेस की सत्ता रिपीट के नाम पर पंजाब की तर्ज पर राजस्थान में आने वाले समय में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
अब सवाल यह उठता है कि जिस तरह की खबरें सामने आ रही हैं कि राज्यसभा चुनाव के बाद एक बार फिर से मंत्रीमंडल फेरबदल होगा, तो क्या केवल मंत्रीमंडल फेरबदल ही होगा या फिर सचिन पायलट का राजतिलक भी होगा? क्योंकि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों में तो अशोक गहलोत के बलबूत सत्ता रिपीट नहीं हो सकती, इसलिये लोग मान रहे हैं कि इस चुनाव के बाद कभी भी राज्य में मंत्रीमंडल फेरबदल के अलावा सचिन पायलट के मुख्मयंत्री बनने की भी संभावना बनती है।
मौका चूक गये तो पायलट 2028 तक मुख्यमंत्री नहीं बन पायेंगे
Siyasi Bharat
0
Post a Comment