दुनिया के सबसे बड़े उद्योगपति को भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने तगड़ा झटका दिया है। मोदी सरकार ने अमेरिका में रहने वाले विश्व के एक नंबर कारोबारी एलन मस्क की भारत में इलेक्ट्रिक कारें बेचने की उम्मीदों को धराशाही करते हुए बता दिया है कि भारत में कारोबार करना है तो सरकार की शर्तों व नियमों को अक्सरश: मानना होगा। इसको लेकर दोनों पक्षों में सहमति नहीं बनी और आखिरकार एलन मस्क ने भारत में अपनी सबसे बड़ी और महंगी सेगमेंट की कार टेस्ला को बेचने और यहीं पर शॉरुम समेत सर्विस सेवाओं को शुरू करने से पीछे हटने का फैसला किया है।
असल कहानी क्या है? इसको समझने से पहले भारत के मैक इन इंडिया अभियान और आत्मनिर्भर भारत मिशन को समझना होगा। 'मेक इन इंडिया' भारत सरकार का एक क्रांतिकारी विचार है, जिसने निवेश एवं नवाचार को बढ़ावा देने, बौद्धिक संपदा की रक्षा करने और देश में विश्व स्तरीय विनिर्माण बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के लिए शुरूआत करना है। मोदी सरकार की ओर से 25 सितंबर 2014 को शुरू हुई इस पहल ने भारत में कारोबार करने की पूरी प्रक्रिया को आसान बना दिया है।
सरकार के 13 फरवरी 2016 को मुंबई में बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में एमएमआरडीए ग्राउंड में आयोजित "मेक इन इंडिया वीक" के पहले औद्योगिक आयोजन में 68 देशों के 2500 अंतरराष्ट्रीय और 8000 घरेलू प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें सरकार को 15.2 लाख करोड़ रुपये की निवेश प्रतिबद्धताओं, इनवेस्टमेंट कमिटमेंट और 1.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश पूछताछ, इनवेंस्टमेंट इन्क्वायरी मिली, भारत के लिए यह काफी उत्साहवर्धक थी। इस दौरान अकेले महाराष्ट्र को 8 लाख करोड़ रुपये, यानी 120 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश मिला। भारत में रक्षा निवेश को बढ़ावा देने के लिए 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के तहत अगस्त 2015 में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) सुखोई Su-30MKI लड़ाकू विमान के 332 पार्ट्स की तकनीक को भारत को स्थानांतरित करने के लिए रूस के इरकुट कॉर्प कम्पनी तैयार हुई।
मेक इन इंडिया की शुरुआत होने के बाद निवेश के लिए भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों की पहली पसंद बन गया। इसके चलते भारत ने वर्ष 2015 में अमेरिका और चीन को पछाड़कर 63 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पाया। इसके बाद साल 2016 में पूरे विश्व में आर्थिक मंदी के बावजूद भारत ने करीबन 60 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ, जो विश्व के कई बड़े विकसित देशों से कहीं अधिक था।
2020 तक $400 अरब डॉलर के साथ भारत संभावित एक इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण हब बनने की क्षमता की ओर जा रहा था। सरकार ने इसके साथ ही चीन जैसे देश को झटका देने के लिए अनुकूल माहौल बनाकर साल 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में शून्य आयात करने का लक्ष्य रखा था। हालांकि, बाद में कोरोना के कारण भारत सरकार की यह मंशा पूरी नहीं हो सकी, किंतु फिर भी विश्व की अधिकांश कंपनियों ने भारत में आकर कारोबार करना शुरू कर दिया या करने के लिए ढांचा तैयार कर रही हैं। इसी के तहत एप्पल जैसी विश्व की नंबर एक ब्रांड कंपनी ने भी 2017 में भारत सरकार की शर्तों को मानते हुए यहीं पर निर्माण कार्य शुरू करने को तैयार की। नतीजा यह हुआ कि दो साल तक कोरोना की वैश्विक महामारी के बावजूद पिछले साल निर्माण शुरू कर पहले ही वर्ष कंपनी ने 10 हजार करोड़ रुपये के आईफोन निर्यात किये हैं।
इसी तरह से दुनियाभर में डीजल पेट्रोल की कमी के कारण वाहन निर्माता कंपनियां पिछले पांच—छह साल से इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के उपर ध्यान दे रही हैं। भारत की टाटा मोटर्स इस मामले में बाजी मार चुकी है। आज भारत में जितने भी इलेक्ट्रोनिक व्हीकल बेचे जा रहे हैं, उनमें से 70 फीसदी टाटा मोटर्स के हैं। इसके साथ ही दूसरे नंबर पर जीएम मोटर्स है, जो भी लग्जरी सेगमेंट में इलेक्ट्रिक व्हीकल बनाकर बेच रही है। इसी तरह से दुनिया के नंबर एक कारोबारी एलन मस्क ने भी अमेरिका व चीन की तरह भारत में अपने महंगे इलेक्ट्रिक वाहनों का कारोबार शुरू करने पर विचार किया।
अब बात करते हैं आत्मनिर्भर भारत की। मेक इन इंडिया अभियान चल ही रहा था कि दुनिया को नवंबर 2019 में कोरोना की वैविश्वक महामारी ने अपनी चपेट में ले लिया। चीन से शुरू हुआ कोरोना अप्रैल 2020 आते—आते भारत में भी तेजी से फैलने लगा और ऐसे में अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए भारत सरकार ने भी कड़े कदम उठाए। सरकार ने लॉकडाउन लगाया तो जनता ठहर गई, सारे कामधंधे ठप हो गये, जनजीवन जगह का जगह रुक गया, किंतु यही बात देश के करोड़ों लोगों के लिए भूखे मरने की नौबत आने का कारण बन गई। करीब चार महीने के लॉकडाउन ने भारत के छोटे—बड़े सभी उद्योगों पर ताले लगा दिए। इसके कारण कारोबार बंद हो गया और देश की अर्थव्यस्था थम गई। अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि बंद हो चुके उद्योगों को कैसे शुरू किया जाए? क्योंकि चार महीने की जीरो जीडीपी ने उद्योगों की कमर तोड़ दी थी।
ऐसे में सरकार ने 21 लाख करोड़ रुपये के पैकेज के साथ आत्मनिर्भर भारत का आव्हान किया। इस महामारी ने यह साबित कर दिया कि अपनी 140 करोड़ जनसंख्या को विदेशी आयात के भरोसे नहीं छोडा जा सकता, इसलिए मोदी सरकार ने तय किया भारतीय नागरिकों की आवश्यकता का सामान भारत में ही बनना चाहिए। इसी के तहत कई वैश्विक कंपनियों को बड़े पैमाने पर रियायतें देकर भारत में आकर उद्योग स्थापित करने का प्रस्ताव दिया गया। इस प्रस्ताव को बहुत सारी कंपनियों ने लपक लिया और यहीं पर अपने उद्योग लगा लिए। सरकार के पैकेज और सुविधाओं के कारण विश्व की कई शक्तिशाली कंपनियों ने चीन को छोड़कर भारत में अपना कारोबार शुरू कर दिए। यह चीन के लिए दोहरा झटका था। इसके कारण एक तो भारत का चीन से आयात कम हो रहा था, दूसरा उसके यहां पर व्यापार करने वाली कंपनियों ने अपना कारोबार समेटकर भारत में काम करना शुरू कर दिया।
इन्हीं में से एक कंपनी है दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी एलन मस्क की टेस्ला इंक। जिसका इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण में एक तरह से दुनिया में एकाधिकार है। यह कंपनी लग्जरी सेगमेंट में दुनिया में सबसे अधिक इलेक्ट्रिक वाहन बनाती है और बेचती है। इसके अमेरिका व चीन में बड़े प्लांट लगे हुए हैं। जब भारत सरकार के प्रस्ताव पर बात हुई तो टेस्ला ने कहा कि वह भारत में अपनी गाड़ियां बेचना चाहती है, इसके लिए वह भारत के दिल्ली, मुंबई, चैन्नई जैसे बड़े शहरों में शॉरुम बनाएगी, साथ ही यहीं पर अपने सर्विस सेंटर भी स्थापित करेगी। इसके लिए कंपनी ने भारत सरकार को प्रस्ताव दिया कि आयात शुल्क कम किया जाए, क्योंकि इस वक्त इलेक्ट्रिक वाहनों पर भारत में आयात शुल्क करीब 100 फीसदी है। टेस्ला चाहती है कि सरकार उसको विशेष कंपनी का दर्जा देकर आयात शुल्क में छूट दे। कंपनी अमेरिका व चीन से वाहन निर्माण कर भारत में बेचना चाहती है।
भारत सरकार ने साफ किया कि विदेशी आयात शुल्क तो इतना ही रहेगा, यदि कंपनी भारत में निर्माण करना चाहती है तो उसको अन्य कंपनियों की तरह जरुरी रियायतें दी जा सकती हैं। टेस्ला व भारत सरकार के बीच इसी मुद्दे पर बात नहीं बनी। भारत सरकार ने कहा कि जब सभी कंपनियों पर समान इंपोर्ट ड्यूटी लगती है, तो केवल टेस्ला पर कम क्यों करे? जबकि टेस्ला को लगता है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी है, इसलिए भारत सरकार उसको छूट दे। सरकार ने कहा कि यदि कंपनी भारत में निर्माण करना चाहती है तो स्वागत है, अन्यथा उसको विशेष आयात शुल्क छूट नहीं दी जाएगी। इसी के कारण टेस्ला के भारत में कारोबार करने की बात अधर में रह गई। कंपनी एक फरवरी 2023 से भारत में अपने शॉरुम व सर्विस सेंटर शुरू करना चाहती थी, लेकिन सरकार के साथ बात नहीं बनने के कारण टेस्ल ने अपनी योजना को लंबित, यानी होल्ड पर कर दिया है।
वैसे एलन मस्क भले ही दुनिया के सबसे बड़े उद्योगपति हो, किंतु उनके काम अधूरे ही दिखाई देते हैं। टेस्ला का भारत में कारोबार शुरू नहीं करना एलन मस्क की पहली गलती नहीं है, कुछ दिनों पहले ही ट्वीटर को 44 अरब डॉलर में खरीदने का प्रस्ताव देकर मस्क काफी चर्चित हो चुके हैं। लेकिन अब सामने आया है कि ट्वीटर के शेयर हॉल्डर्स को चुकाने के लिए उनके पास नगद की कमी है, इसलिए यह सौदा भी अधर में लटक गया है। एक सप्ताह के दौरान एलन मस्क के दो बड़े सौदे अधर में लटके हैं। इससे पता चलता है कि भले ही एलन मस्क दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी हों और विश्व के कई देशों की सरकारें उनके कहने से चलती हों, किंतु भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने दिखा दिया है कि अपने देश के फायदे के लिए दुनिया की किसी भी ताकत को आइना दिखाने से पीछे नहीं हटेगी।
मोदी सरकार ने दुनिया के सबसे अमीर आदमी को दिखाया आइना
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