रूस व यूक्रेन युद्ध को ढाई महीने हो चुके हैं। सोमवार को रूस विजय दिवस मनाने जा रहा है, उसके यूक्रेन पर हमले तेज होने की संभावना है। अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को लगता है कि रूस ने यदि हमले तेज किए तो उसको समाप्त होने से कोई नहीं बचा पाएगा। अब तक लोगों को यह लग रहा है कि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिशाली सेना के सामने यूक्रेन जैसे मामूली से देश की आर्मी कैसे मुकाबला कर रही है? लोगों को अब साफ नजर आने लगा है कि कैसे यूक्रेन ने अमेरिकी भरोसे में आकर अपनी ‘अकड़’ छोड़ सबकुछ गंवा दिया है।
किस प्रकार राष्ट्राध्यक्ष जानबूझकर अपने देश को जलती आग में झोंक कर उसका अहित कर बैठते हैं, इसका सटीक उदाहरण रूस-यूक्रेन युद्ध को ध्यान में रखकर सोचा जा सकता है। दोनों देशों के बीच किस कारण से युद्ध की शुरुआत हुई और आज ढाई महीने बाद क्या स्थिति बन गई है, यह पूरी दुनिया के सामने है। नाटो देशों को रूस के विरुद्ध और यूक्रेन का साथ देने के लिए जिस प्रकार का अभियान अमेरिका ने चलाया, वह अब परवान चढ़ने लगा है।
इसी अमेरिकी बहकावे में आकर पोलैंड और बुल्गारिया ने रूस के विरुद्ध अभियान छेड़कर यूक्रेन को युद्ध के लिए हथियारों की सप्लाई करने लगा था। परिणाम स्वरूप रूस ने प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बंद कर दी है। चूंकि, इन दोनों देशों का तापमान सामान्यत: शून्य से नीचे रहता है, इसलिए इस गैस का उपयोग घर और फैक्ट्रियों के तापमान को नियंत्रित और सामान्य बनाए रखने के लिए किया जाता है। इसलिए प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बंद होने के कारण अब ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि इन दोनों देशों की फैक्ट्रियों का कामकाज ठप होने के कगार पर है और ठंड से लोगों का जीना दुश्वार हो रहा है।
पता नहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने किस सोच के तहत, किस वजह से तथा किसके बहकावे में आकर रूस की सामरिक शक्ति को चुनौती दे दी, यह समझ से परे है। रही बात अमेरिका की, तो अपनी राजनीति करने और विश्व में अपनी शक्ति को साबित करने के लिए वह कुछ बरसों के अंतराज में इसका एहसास सार्वजनिक रूप से कराता रहता है।
उसकी शुरू से ही यही नीति रही है। लेकिन, छोटी सी बात पर रूस के विरुद्ध युद्ध में लोहा लेने वाला यूक्रेन भी शायद भूल गया कि ढाई महीने के युद्ध के बावजूद रूस की सामरिक शक्ति में अब भी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आई है, जबकि वह अब संयुक्त सोवियत संघ नहीं रहा है।
अब तक सामान्य नागरिक और सैनिक कितने काल के गाल में समा गए हैं, इस पर दोनों देशों की गणना अलग—अलग है। किस देश को जान—माल का कितना नुकसान हुआ है, यह सच भी युद्धोपरांत ही विश्व को पता चल पाएगा। रूस–यूक्रेन के युद्ध दौरान अपनी तीन दिवसीय यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बर्लिन में प्रेस कॉन्फ्रेंस में जोर देकर कहा कि भारत शांतिं के पक्ष में है। यूक्रेन संकट के शुरुआत से भारत ने शत्रुता को तत्काल समाप्त करने का आह्वान किया था।
असल में इन दोनों देशों के बीच इस भयंकर युद्ध का कारण क्या रहा है, इसे जानने की कोशिश करते हैं। फरवरी 2014 में शुरू हुआ यह एक निरंतर और लंबा संघर्ष है, जिसमें मुख्य रूप से एक तरफ रूस और उसकी समर्थक सेनाएं और दूसरी ओर यूक्रेन शामिल हैं। युद्ध क्रीमिया की स्थिति और डोनबास के कुछ हिस्सों पर केंद्रित है, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूक्रेन के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है। रूस और यूक्रेन के बीच तनाव विशेष रूप से वर्ष 2021 से 2022 तक भड़क उठा, जब यह स्पष्ट हो गया कि रूस, यूक्रेन पर सैन्य आक्रमण शुरू करना चाह रहा है।
फरवरी 2022 में संकट गहरा गया और रूस को वश में करने के लिए राजनयिक वार्ता विफल हो गई। इसकी परिणति रूस में 22 फरवरी को अलगाववादी नियंत्रित क्षेत्रों में सेना के स्थानांतरण के रूप में हुई। रूस और यूक्रेन की सेना के बीच राजधानी कीव ही नहीं, बल्कि और भी कई बड़े शहरों में कब्जे को लेकर जंग जारी है। यूक्रेन के बड़े शहरों में रूस की सेना लगातार मिसाइल हमले कर रही है।
इसी बीच कीव पर कब्जे के लिए रूस ने अतिरिक्त सेना भी भेज दी है। यूक्रेन की राजधानी कीव सहित कई प्रमुख शहरों— कीव, खारकीव, लीव, चेरनीहिव, ओडेसा और मारियुपोल को तबाह कर दिए गए हैं। इन शहरों पर हमलों का क्या असर हुआ है, इसे देखने के बाद ही महसूस किया जा सकता है। इन शहरों की बड़ी—बड़ी इमारतों, सरकारी दफ्तरों को इस तरह तहस—नहस का दिया गया है कि फिर से उसे बसने और बनाने में वर्षों लग जाएंगे।
ताजा घटनाक्रम में बताया गया है कि यूक्रेन के बंदरगाह वाले शहर ओडेसा में अमेरिका और यूरोपीय देशों से आए हथियारों की खेप को रूसी मिसाइलों ने अपना निशाना बनाया, साथ ही शहर की हवाई अड्डे को भी नष्ट कर दिया है। आगे युद्ध की विभीषिका कैसी होगी, इसका अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि पोलैंड में नाटो के 18 हजार सैनिकों ने युद्धाभ्यास शुरू कर दिया है। अभ्यास कर रहे सैनिक पूर्वी यूरोप के कई देशों से यहां आए हुए हैं। यूक्रेन युद्ध के चलते इस युद्धाभ्यास को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
अमेरिका, भारत तथा नाटो सहित विश्व के कई देशों को इस बात के लिए धमका चुका है कि वह रूस को किसी भी तरह की सहायता देने से बाज आएं। भारत से भी अमेरिका यही चाहता है, लेकिन भारत अपनी रूसी दोस्ती के प्रति प्रतिबद्ध है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट रूप से इसका जिक्र अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से करके बता भी दिया है।
इसका उल्लेख अमरीकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत-रूस संबंध के लिए पिछले दिनों संसद में भी किया और कहा कि भारत-रूस का संबंध दशकों पुराना है, जबकि अमेरिका का भी संबंध अब भारत से धीरे-धीरे बढ़ रहा है और निकटता बढ़ती जा रही है, रिश्ते मजबूत हो रहे हैं। अमरीकी विदेश मंत्री ने लगभग उसी बात को दुहराया, जो भारत-रूस के बीच 1971 में समझौते में हुआ था।
उन्होंने कहा कि भारत के लिए रूस जरूरत के हिसाब से उस समय पसंदीदा साझीदार बना, जब अमेरिका पसंदीदा बनने की स्थिति में नहीं था, अब कोशिश कर रहा है। विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बातचीत के आधार पर कहा कि हम सीधे जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
एंटनी ब्लिंकन का यह भी कहना था कि हमने भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने के लिए क्वाड के साथ रहना पसंद किया है। असल में क्वाड भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान और अमेरिका को आपस में जोड़ता है। इसी महीने के 20 से 24 तारीख के बीच दक्षिण कोरिया के होने जा रहे क्वाड सम्मेलन में राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात भी होने वाली है।
रूस और यूक्रेन के बीच जंग को आज लगभग ढाई महीने हो गए हैं। यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जे को लेकर जंग जारी है। यूक्रेन के शहरों पर रूसी सेना के मिसाइल हमले जारी हैं। इतना ही नहीं, यूक्रेन की सड़कों पर रूस के टैंक और बख्तरबंद वाहन दौड़ रहे हैं। हालांकि, इतने दिन बाद भी युद्ध किसी अंजाम पर नहीं पहुंचा है। पिछले दिनों ऐसी अटकलें आई थीं कि रूस की वेबसाइट पर यूक्रेन समर्थित कर्मचारी ने सैनिकों की मौत से जुड़े आंकड़े जारी किए थे।
हालांकि, इन्हें तुरंत ही हटा भी लिया गया था। बताया गया था कि यूक्रेन में अब तक 9 हजार 861 सैनिकों की मौत हो चुकी है और 16 हजार 153 घायल हैं। रूस और यूक्रेन के बीच 24 फरवरी से जंग शुरू हो गई थी। अब तक दोनों ओर से कई दावे किए गए हैं। फिर भी इतने दिन बाद भी यूक्रेन के कई बड़े शहरों में दोनों देशों की सेनाओं में संघर्ष जारी है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि युद्ध में किसी दूसरे देश की दखल बर्दाश्त नहीं करेंगे।
पुतिन ने बुधवार को कहा कि उनके पास उन देशों पर तत्काल हमले के लिए सभी साधन हैं, जो यूक्रेन जंग में हस्तक्षेप करने की कोशिश करेंगे। पुतिन ने पिछले सप्ताह सांसदों को संबोधित करते हुए यूक्रेन के सैन्य ऑपरेशन पर विस्तार से बात की। इसी दौरान पुतिन ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान अगर कोई दूसरा देश दखल देगा तो रूस का हमला बिजली से तेज और घातक होगा।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने पूरे आत्मविश्वास से लबरेज होकर इसलिए युद्ध लड़ रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपने परमाणु हथियार चालकों को युद्ध के शुरुआत में ही उन्हें हाई अलर्ट पर रहने का आदेश जारी कर दिया था। उनके सैनिक पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ युद्ध में हिस्सा ले रहे हैं, वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति ब्लादिमीर जेलेंस्की अमेरिका और नाटो देशों के आश्वासन पर युद्ध को खत्म भी नहीं कर पा रहे हैं। सच तो यह है कि आज कोई भी देश रूस की सामरिक शक्ति को जानते हुए अमेरिका के बहकावे में नहीं आना चाहता, इसलिए गंभीर नुकसान को झेलने के बावजूद जेलेंस्की अपनी अकड़ को कमतर नहीं आंक रहे हैं और अपने देश को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं।
रही अमेरिका की बात, तो अमेरिका भी सीधे तौर पर रूस से युद्ध नहीं चाहता है। यदि अमेरिका ऐसा चाहता होता तो कोई शक नहीं कि आज यूक्रेन के हालत कुछ और होते और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को बार-बार अमेरिका या नाटो देशों के समक्ष मदद मांगने के लिए गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं होती। सच में अब होना तो यह चाहिए कि विश्व को संगठित होकर इस युद्ध को समाप्त कराने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए, अन्यथा युद्ध यदि परमाणु युद्ध की तरफ बढ़ा तो विश्व का क्या हाल होगा, इसके लिए विश्व के सभी राष्ट्राध्यक्ष को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी की तरफ रुख करना पड़ेगा।
दुनिया जानती है कि भारत ने कभी किसी पर अपनी तरफ से हमला नहीं किया, इसलिए वह सदैव दोनों देशों को युद्ध समाप्त कराने के लिए भागीरथ प्रयास करेगा। अब देखना यह है कि इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किस प्रकार की भूमिका निभाकर युद्ध की मध्यस्थता करके उसे खत्म करने का प्रयास करेंगे। यह रूस-यूक्रेन के लिए ही नहीं, विश्व के लिए और विश्व शांति के लिए भारत की सबसे बड़ी भागीदारी होगी।
मोदी को झुकाना चाहता था अमेरिका, खुद ही टूट गया
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