Ram Gopal Jat
याद कीजिए 1971 का दौर, जब अमेरिका ने पाकिस्तान जैसे छोटे से देश को भारत पर आक्रमण करने के लिए ना केवल उकसाया, बल्कि उसकी मदद करने ब्रिटेन के जहाजी बेडे के साथ खुद बंगाल की खाडी में आकर खड़ा हो गया था। तब भारत की मदद करने के लिए रूस ने अपना जंगी बेडा समुद्र में उतारा और फिर डर के मारे ना केवल ब्रिटेन का जहाज भाग गया, बल्कि खुद अमेरिका को भी पीछे हटना पड़ा था। उस समय भारत के पास अपने जंगी जहाज नहीं थे, हालांकि पाकिस्तान के पास भी नहीं थे, लेकिन उसको अमेरिका, ब्रिटेन व चीन का साथ मिल रहा था, इसलिए छोटा होने पर भी होसले बुलंद थे। कहा जाता है कि उसी दौर से भारत व रूस घनिष्ठ मित्र हैं।
इसके बाद भारत ने 1974 और 1998 के समय जब अपनी रक्षा के लिए परमाणु परीक्षण किए, तब वह अमेरिका ही था, जिसने ना केवल खुद सबसे पहले प्रतिबंध लगाए, बल्कि यूरोप समेत दुनिया के सभी विकसित देशों से भी भारत के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाकर अर्थव्यवस्था को तहस नहस करने का खूब प्रयास किया। इसके करीब एक दशक तक भारत व अमेरिका के बीच घनिष्ठता नहीं बन पाई। हालांकि, यूपीए के उत्तरीकाल में अमेरिका व भारत करीब आने लगे थे, जिसको मजबूती प्रदान की साल 2014 के बाद वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। मोदी ने ना केवल अमेरिका जाकर वहां के प्रशासन को भारत के करीब लाने का काम किया, बल्कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो बकायदा मोदी से चुनाव प्रचार करवाया। हालांकि, ट्रंप चुनाव हार गये, लेकिन इसके कारण वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन ने काफी समय तक भारत के साथ संबंध बनाने में रुचि नहीं दिखाई, लेकिन जब 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया, तब जो बाइडन ने अपनी अकड़ छोड़कर मोदी से गले लगने की कोशिश तेज की।
भारत आज दुनिया से जितने भी हथियार आयात करता है, उसमें 46 फीसदी हिस्सा अकेले रूस का होता है, और अमेरिका लगातार चाह रहा है कि वह रूस को छोड़कर उसके साथ घनिष्ठ मित्र बन जाए। वी भारत को जरुरत जितने हथियार देने को भी तैयार हो गया है और बीते दिनों उसने भारत को 500 मिलियन डॉलर की सहायता की घोषणा हथियार खरीदने के लिए कर भी दी है। बीते तीन माह से इसको लेकर अमेरिका कई बार जबरदस्त प्रयास कर चुका है। रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका खूब कोशिश कर चुका है कि भारत को कैसे भी इस बात के लिए मना लिया जाए कि वह रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास कर दे, किंतु भारत अपनी पुरानी मित्रता पर अडिग है। ऐसा नहीं है कि भारत अब भी अमेरिका से कोई संबंध नहीं बना रहा है, भारत ने पिछले करीब एक दशक से जितने संबंध वैश्विक स्तर पर बनाए हैं, उनमें अमेरिका के साथ सबसे अधिक तेजी से बने हैं, किंतु फिर भी बरसों से बनी दूरियों की खाई पाटना कहां इतना आसान है?
हम इन पुरानी बातों को जिक्र इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि क्वाड शिखर सम्मेलन के बहाने मिले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मंगलवार को कहा कि वह अमेरिका-भारत साझेदारी को ‘पृथ्वी पर हमारे सबसे करीब’ बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी ओर से इसे ‘विश्वास की साझेदारी’ बताया है, जबकि दोनों नेताओं ने सोमवार को हस्ताक्षरित अमेरिकी निवेश प्रोत्साहन समझौते पर विश्वास व्यक्त किया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारे दोनों देश मिलकर बहुत कुछ कर सकते हैं और मुझे यकीन है कि ऐसा करेंगे भी। मैं अमेरिका-भारत साझेदारी को पृथ्वी पर हमारे सबसे करीब बनाने के लिए प्रतिबद्ध हूं। मुझे खुशी है कि हम यूएस डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन के लिए भारत में महत्वपूर्ण काम जारी रखने, वैक्सीन उत्पादन और स्वच्छ ऊर्जा पहल का समर्थन करने के लिए एक समझौते पर पहुंचे हैं। हम इंडो-यूएस वैक्सीन एक्शन प्रोग्राम का नवीनीकरण कर रहे हैं।
इसी अवसर पर पीएम मोदी ने अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को ‘सच्चे अर्थों’ में विश्वास के रूप में सराहना की। उन्होंने कहा कि “हमारे सामान्य हितों और मूल्यों ने हमारे दोनों देशों के बीच विश्वास के इस बंधन को मजबूत किया है। हमारे लोगों से लोगों के बीच संबंध और मजबूत आर्थिक सहयोग भारत-अमेरिका साझेदारी को अद्वितीय बनाते हैं। हमारे व्यापार और निवेश के संबंध भी लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन वे अभी भी हमारी क्षमताओं से कम हैं।”
इस मुलाकात के पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पीएम मोदी की जमकर तारीफ की। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि “कोरोना की वैश्विक महामारी में प्रधानमंत्री ने शानदार काम किया है। चीन पर परोक्ष रुप से हमला करते हुए बाइडन ने कहा कि विस्तारवाद पर लोकतंत्र भारी है और ये मोदी ने साबित किया है। उन्होंने बीते 8 साल में दिखाया की लोकतंत्र में काम कैसे होता है। बाइडन का यह बयान चीन की उस नीति पर करारा तमाचा है, जिसमें वह डोकलाम और लद्दाख में भारत की जमीन हड़पने की कोशिश करता रहता है, साथ ही भारत की घरेलू समस्याओं पर जिस तरह से मोदी सरकार ने लोकतांत्रिक तरीके से विजय पाई है, उससे भी अमेरिका खासा प्रभावित है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि अमेरिका और भारत “भारत-प्रशांत क्षेत्र पर समान विचार साझा करते हैं व द्विपक्षीय स्तर पर और साथ ही समान विचारधारा वाले देशों के साथ हमारी साझा चिंताओं की रक्षा के लिए काम करते हैं। क्वाड मीटिंग के दौरान हुई चर्चा “इस सकारात्मक गति” को गति देगी। दोनों देशों में तकनीकी सहयोग बढ़ा है और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मिलना हमेशा सुखद रहता है।
भारत के साथ अमेरिका दुनिया का सबसे अधिक कारोबार व संबंध बनाने पर फोकस कर रहा है। दरअसल, अमेरिका को इस बात का पता है कि भारत तेजी से उभरता हुआ लोकतांत्रिक देश है, जिसमें ना केवल उनकी कंपनियों के लिए बड़ा मार्केट है, बल्कि रूस व चीन जैसे देशों से मुकाबला करने के लिए भारत जैसा विशाल देश का होना बेहद जरुरी है। यही कारण है कि अमेरिका लगातार भारत के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने पर बल दे रहा है।
अमेरिका और भारत को द्विपक्षीय कारोबार को नए स्तर पर ले जाने और इसमें 500 अरब डॉलर का महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल के लिए बड़े लक्ष्य तय करने की तरफ कदम बढ़ाए हैं। भारत के वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत और अमेरिका के बीच 2020-21 में कुल द्विपक्षीय कारेाबार 80.5 अरब डॉलर था। भारत ने वित्त वर्ष 2021—2022 में 417 बिलियन डालर के लक्ष्य को छू लिया है। इस तरह से देखा जाए तो भारत व अमेरिका के बीच अभी भी चीन के मुकाबले काफी कम कारोबार हो रहा है। बीते वर्ष भारत व चीन के मध्य करीब 128 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था, जिसमें चीन का निर्यात करीब 98 अरब डॉलर रहा।
संख्या के हिसाब से भारत के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी फौज है, जो एक बार में चीन को आसान से चुनौती दे सकती है। भारत के कुल सक्रिय सैन्यकर्मियों की संख्या 14.45 लाख है। इसके अलावा भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी पैरामिलिट्री फोर्स है। इसमें भारतीय थल सेना, भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के कर्मी शामिल हैं। साल 2021 में चीनी सेना में सूचीबद्ध कर्मचारियों की कुल संख्या 21.85 लाख है। चीन खुद भी दुनिया में सबसे अधिक सक्रिय सैन्यकर्मियों का दावा करता है। चीनी सैन्यकर्मियों को पांच सैन्य शाखाओं में विभाजित किया गया है, जिनमें ग्राउंड फोर्स, नेवी, एयर फोर्स, रॉकेट फोर्स और स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स शामिल हैं। हालांकि, रक्षा उपकरणों के मामले में चीन ज्यादा ताकतवर है, लेकिन यह बात अमेरिका भी जानता है कि भविष्य में यदि उसे रक्षा उपकरण भारत को मुहइया करवा दिए जाएं तो चीन को हराया भी जा सकता है। इसलिए अमेरिका किसी भी तरह से भारत के करीब आकर चीन पर दबाव बनाए रखना चाहता है।
अमेरिका यह भी चाहता है कि भारत आज जो कारोबार चीन व रूस जैसे देशों के साथ कर रहा है, वह धीरे धीरे अमेरिका व यूरोपीयन देशों की तरफ मुड जाए, ताकि भविष्य में चीन या रूस के संकट से निपटने में मदद मिल सके। यही कारण है कि अमेरिका ना केवल खुद आगे बढ़कर भारत के साथ व्यापार के माध्यम से संबंध बढ़ाने का काम कर रहा है, बल्कि अपने यूरोपीयन मित्रों को भी भारत के साथ व्यापारिक संबंध बनाने की राय दे रहा है। ऐसा नहीं है कि अमेरिका भारत का अचानक हितैषी हो गया है, लेकिन उसको इस बात का पता है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में समुद्री कारोबार हो या फिर दैत्य की तरह मुंह खोलकर बैठे रूस व चीन हो, इनसे मुकाबला करने के लिए इस क्षेत्र में उसको एक मजबूत पार्टनर की जरुरत है, जिसमें भारत सर्वाधिक फिट बैठता है। इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति कहते हैं कि अमेरिका भारत के साथ अपनी साझेदारी को ‘पृथ्वी पर सबसे करीब’ बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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