Ram Gopal Jat
भारत की बढ़ती ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज विश्व के जितने भी बड़े काम हो रहे हैं, उनमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से भारत का हाथ होता ही है। एक दिन पहले सम्पन्न हुई क्वाड शिखर सम्मेलन की समिट के दौरान दुनिया के सामने एक ऐसा नया आर्थिक मंच आया है, जिसके बाद चीन व रूस की चिंता हजार गुणा बढ़ गई है। चीन ने तो बकायदा इसके सक्सेज होने पर ही सवाल उठाए हैं, तो चिंता के चलते रूस ने चीन के साथ मिलकर भारत, अमेरिका, जापान व ओस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी करने वाले अन्य 9 देशों को भी डराने का प्रयास शुरू कर दिया है। भारत की ताकत का अंदाजा इससे भी लगता है कि एक कदम उठाने से आईएमएफ, दूसरे कदम से चीन—रूस और तीसरे कदम ने अमेरिका को भी चिंता में डाल दिया है। ऐसा क्या कर रहा है भारत और वो कौन से तीन कदम हैं, जिनके कारण दुनिया में इतनी हलचल पैदा हो गई है?
लेकिन उससे पहले जान लीजिए की क्वाड शिखर सम्मेल के दौरान ही चीन व रूस की संयुक्त सेनाओं ने युद्धाभ्यास करके अमेरिका, जापान व भारत को एक तरह से चेतावनी दे दी है। हालांकि, रूस कि इस वक्त इतनी हिम्मत नहीं कि वह भारत के खिलाफ गतिविधि कर सके, लेकिन क्योंकि चीन इस समय रूस का सबसे बड़ा मददगार देश है, ऐसे में उसके आव्हान पर रूस इनकार नहीं कर सकता। यही कारण है कि क्वाड में भारत होने के बाद भी एक तरह से सभी चारों देशों को डराने या कहें कि चेतावनी देने के लिए रूस ने भी चीन के साथ मिलकर युद्धाभ्यास किया है। इसका मतलब यह है कि भले ही अमेरिका कहे कि यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका आर्मी एक्शन लेगा, किंतु फिर भी चीन अपने इरादों से पीछे हटने वाला नहीं है। जिस तरह की रिपोर्ट सामने आ रही हैं, उससे साफ है कि अमेरिका की परवाह किए बगैर चीन आने वाले समय में बातचीत के जरिये, डराकर, या फिर सैन्य अभियान के जरिये ताइवान को अपने में मिलाने का दुस्साहस जरुर करेगा। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि अमेरिका व जापान का क्या एक्शन रहेगा? अब आइए तीन बिंदुओं के आधार पर जानने की कोशिश करते हैं।
सबसे पहला कदम तो भारत ने क्वाड में अपनी सक्रियता है, जिसके कारण भारत का सबसे बड़ा दुश्मन चीन, और बरसों से सबसे पुराना मित्र रूस भी चिंतित हैं। क्वाड से पहले भारत व अमेरिका के बीच इस तरह का इतना बड़ा कोई मंच नहीं था, जिससे किसी बड़े देश को चिंता करने की जरुरत पड़ती, साथ ही समुद्र में भारत के साथ साझेदारी से किसी को परेशान होने की आवश्यकता होती, लेकिन क्वाड में भारत व अमेरिका ही ऐसे देश हैं, जिन्होंने साझेदारी कर चीन की चिंता में इतना इजाफा किया है, कि वह उल्टे सीधे बयान देने को मजबूर हो गया है। इंडो पैसेफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क मंच ने भारत, अमेरिका, जापान व ओस्ट्रेलिया को नजदीक लाने का काम किया है, तो साथ ही दारुशलम, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलिपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम के साथ मिलकर दुनिया की 40 फीसदी जीडीपी वाले देशों का समुह बन रहा है। इसके सुचारू होने के बाद इंडो पैसेफिक रीजन तके चीन का दबदबा खत्म होने की संभावना है। चीन व रूस को अमेरिका से कुछ भी करने की उम्मीद थी, लेकिन भारत ने जिस उत्साह से अमेरिका, जापान व ओस्ट्रेलिया के साथ मिलकर इस मंच को सफल बनाने का काम किया है, उसके बाद दुनिया इन दो बड़े देशों की चिंता बढ़ गई है।
इस मंच के माध्यम से अमेरिका ना केवल एशिया में अपनी कारोबारी पकड़ को मजबूत करेगा, बल्कि 60 प्रतिशत समुद्री कारोबार पर अपनी पकड़ रखने वाले इंडो पैसेफिक क्षेत्र में उसकी सीधी अप्रोच होगी, जिसके कारण वह चीन को घेरने का काम करेगा। अमेरिका ने इसी मंच पर भारत की मजबूत साझेदारी के दम पर साफ कर दिया है कि यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया, तो उसके खिलाफ आर्मी एक्शन लिया जाएगा। इसके साथ ही जापान ने भी अमेरिका की हां में हां मिलाते हुए आर्मी एक्शन के वादे को दोहराया है। हालांकि, भारत ने इसको लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, किंतु फिर भी चीन को यह पता है कि यदि अमेरिका व जापान ने उसके खिलाफ आर्मी एक्शन लिया, तो भारत भले ही सीधे हमला नहीं करे, लेकिन परोक्ष रुप से इन दोनों परमाणु सम्पन्न देशों को मदद जरुर करेगा। इधर, रूस की चिंता इसलिए है, क्योंकि भारत अब तक उसको यूएन में साथ दे रहा था, जबकि अमेरिका लगातार भारत को रूस के खिलाफ बोलने के लिए अपील कर रहा था, अब यदि चीन के द्वारा ताइवान के खिलाफ गुस्ताखी की गई, तो भारत खुलकर चीन की निंदा करेगा, जिसके कारण रूस के लिए धर्म संकट खड़ा हो जाएगा, क्योंकि जिस तरह से भारत व रूस घनिष्ठ मित्र हैं, वैसे ही रूस व चीन भी परम मित्र हैं।
दूसरा भारत ने पिछले दिनों दुनिया को गेहूं का निर्यात बंद करके नया संकट खड़ा कर दिया है। पहले भारत ने कहा था कि वह इस वर्ष एक करोड मेट्रिक टन गेहूं का निर्यात करेगा, लेकिन ताजा बयान में भारत ने कहा कि वह बीती 13 तारीख से गेहूं का निर्यात बंद कर रहा है, केवल उन्हीं देशों को दिया जाएगा, जिनके साथ पहले से वर्क आर्डर है, या श्रीलंका जैसे देशों को निर्यात करेगा, जो आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। भारत के इस कदम के पीछे इस साल उम्मीद से करीब सवा करोड मेट्रिक टन गेहूं उत्पादन कम होना बताया गया है। भारत सरकार को उम्मीद थी कि इस साल 14.6 करोड मेट्रिक टन गेहूं का प्रोडेक्शन होगा, लेकिन ताजा जानकारी में करीब 13.5 करोड मेट्रिक टन का ही उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया है। इसके कारण भारत ने निर्बाध निर्यात को बंद कर दिया है। इसी तरह से भारत ने एक दिन पहले ही चीनी के निर्यात को भी बंद करने का निर्णय लिया है। भारत ने कहा है कि इस सीजन में वह चीनी का निर्यात एक करोड मेट्रिक टन ही करेगा। असल में भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक और ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
गौरतलब यह है, कि भारत के द्वारा गेहूं निर्यात बंद करने के कारण दुनिया में गेहूं के भाव तेजी से बढ़ रहे हैं। असल बात यह है कि विश्व का 25 फीसदी गेहूं अकेले रूस व यूक्रेन ही उगाते हैं। दोनों देशों के बीच जारी युद्ध के कारण बीते तीन माह से गेहूं निर्यात नहीं हुआ है। भारत के द्वारा गेहूं व चीनी निर्यात बंद करने के कारण आईएमएफ, यानी इंटरनेशनल मॉनिटरिंग फंड की ओर से हाथ जोड़कर भारत से अपील की गई है कि दुनिया में रूस यूक्रेन युद्ध के कारण गहरा संकट है, इसलिए वह गेहूं और चीनी का निर्यात बंद नहीं करे। भारत की बात की जाए तो यहां पर चीनी का 80 फीसदी प्रोडेक्शन उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक ही करते हैं। इसके अलावा आंद्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, हरियाणा और पंजाब में भी कुछ मात्रा में गन्ना उगाया जाता है।
तीसरा कदम उठाते हुए भारत ने खाद्य तेल आयात को अगले दो साल तक ड्यूटी फ्री कर दिया है। केंद्र सरकार ने कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल को लेकर यह फैसला किया है। सरकार ने इन तेलों के आयात पर कस्टम ड्यूटी और एग्रिकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट सेस से छूट दे दी है। सरकार के फैसले के तहत 2 साल तक दोनों तेलों के 20-20 लाख टन के आयात की इजाजत दे दी है। अभी देश में खाने के तेल की बढ़ी कीमतों से लोग काफी परेशान हैं, ऐसे में सरकार का ये फैसला लोगों को महंगाई से लड़ने में काफी राहत देने वाला साबित होगा। असल में ये दोनों ही तेल इसलिए आयात कस्टम ड्यूटी से मुक्त किए गये हैं, क्योंकि पिछले दो साल से लगातार खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही थी, जबकि रूस व यूक्रेन युद्ध के कारण वहां से पॉम आयल नहीं आने के कारण कीमतों ने आसमान छू लिया है। आम लोगों को राहत देने के लिए सरकार का यह कदम काफी महत्वपूर्ण है।
भारत सरकार के द्वारा एक सप्ताह में लिए गये इन तीन कदमों से ना केवल भारत में हलचल मची हुई है, बल्कि विश्व के बड़े बड़े देश भी सकते में हैं, कि भारत इतने बड़े फेसले लेकर अचानक से क्या करना चाह रहा है? इस सप्ताह भारत सरकार ने डीजल व पेट्रोल पर भी एक्ससाइज ड्यूटी घटाकर पेट्रोल 9 रुपये व डीजल 6 रुपये प्रति लीटर सस्ता किया है। इसके साथ ही उज्ज्वला योजना के तहत दिऐ गये गैस सिलेंडर पर भी 200 रुपये का अनुदान शुरू किया है। जिस तरह से भारत सरकार ने ताबड़तोड़ निर्णय लिए हैं, उसके बाद पाकिस्तान में भी पेट्रोल, डीजल, खाद्य तेल के भाव कम करने का दबाव बढ़ गया है, इसलिए अमेरिका में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ ने एक तरह से विद्रोह कर दिया है। शाहबाज शरीफ जहां भारत के अपराधी यासीन मलिक के बचाव में यूएन जाने के बयान दे रहे हैं, वहीं उनकी 45 दिन पुरानी सरकार पर संकट गहरा गया है।
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