भारत ने घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के उपायों के तहत गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है। भारत सरकार की ओर से आधिकारिक अधिसूचना के तहत नोटिफिकेशन जारी किया गया है। हालांकि, विदेश व्यापार महानिदेशालय, यानी डीजीएफटी ने 13 मई को जारी अधिसूचना में कहा है कि इस अधिसूचना की तारीख या उससे पहले जिस खेप के लिए अपरिवर्तनीय ऋण पत्र, मतलब एलओसी जारी किए गए हैं, उसके निर्यात की अनुमति होगी।
डीजीएफटी ने कहा है कि गेहूं की निर्यात नीति पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाता है। उसने यह भी स्पष्ट किया कि भारत सरकार द्वारा अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए और उनकी सरकारों के अनुरोध के आधार पर दी गई अनुमति के आधार पर गेहूं के निर्यात की अनुमति दी जाएगी। मतलब यह है कि जैसे श्रीलंका जैसे देश, जो आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं, उनको गेहूं निर्यात करेगी।
इसी तरह से एक अलग अधिसूचना में डीजीएफटी ने प्याज के बीज के लिए निर्यात शर्तों को आसान बनाने की घोषणा की। डीजीएफटी ने कहा है कि प्याज के बीज की निर्यात नीति को तत्काल प्रभाव से सीमित श्रेणी के तहत रखा जाता है। पहले प्याज के बीज का निर्यात प्रतिबंधित था। इसका मतलब यह है कि सरकार प्याज के बीज को सीमित मात्रा में और निर्धारित देशों को निर्यात करेगी।
केंद्र सरकार ने कहा कि कई गेहूं की वैश्विक कीमतों में अचानक वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप भारत के पड़ोसी और दुनिया के अन्य कमजोर देशों की खाद्य सुरक्षा खतरे में है। रूस और यूक्रेन की बीच जारी जंग की वजह से गेहूं की अंतरराष्ट्रीय कीमत में करीब 40 फीसदी तेजी आई है। इससे भारत से इसका निर्यात बढ़ गया है। भारत सरकार ने हाल ही में 2700 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से गेहूं निर्यात किया है। यही वजह है कि मांग बढ़ने से स्थानीय स्तर पर गेहूं और आटे की कीमत में भारी तेजी आई है।
वर्तमान में गेहूं की खरीद के लिए भारत सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,015 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि गेहूं बाजार में 2500 से लेकर 2700 रुपये प्रति सैंकड़ा तक बिक रहा है। देश में गेहूं और आटे की खुदरा महंगाई अप्रैल में बढ़कर 9.59% पहुंच गई, जो इसी साल मार्च में 7.77% थी। इस साल गेहूं की सरकारी खरीद में करीब 55% गिरावट आई है, क्योंकि खुले बाजार में गेहूं की कीमत एमएसपी से कहीं ज्यादा मिल रही है।
भारत सरकार का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब गेहूं की कीमतें एमएसपी, यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य से बहुत अधिक हैं और किसान सरकार को गेहूं बेचने की बजाय व्यापारियों को बेच रहे हैं। जबकि इस वर्ष पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में मौसम की वजह से गेहूं की उपज को काफी नुकसान पहुंचा है।
भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 2 मई तक 16 मिलियन टन गेहूं की खरीद की थी। यह पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत कम है। पिछले साल 27 अप्रैल 2021 तक 23 मिलियन टन की खरीद की गई थी। सरकार 2022-23 में 44.4 मीट्रिक टन गेहूं खरीदना चाहती है, लेकिन जिस तरह से किसानों ने खुले बाजार में कारोबारियों को गेहूं बेचा है, उससे साफ है कि सरकार का लक्ष्य शायद इस बार पूरा नहीं हो पाए।
असल में भारत सरकार ने पिछले साल के 70 लाख टन गेहूं निर्यात के बजाए इस वर्ष एक करोड़ टन निर्यात का लक्ष्य रखा था, जिसमें से करीब 30 लाख टन गेहूं अकेले मिश्र को निर्यात किया जा रहा था। रूस व यूक्रेन युद्ध के कारण इस देश को इस बार गेहूं नहीं मिल पा रहा है, जिसके चलते उसने भारत से आयात करने को कहा था।
बताया जा रहा है कि भारत सरकार जिस तरह से बीते दो साल से देश के 80 करोड़ लोगों को प्रति व्यक्ति प्रतिमाह 5 किलो अनाज या चावल मुफ्त दे रही है। इसी साल के अंत तक गुजरात, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है, जिसके कारण इस योजना को आगे बढ़ाया जा सकता है। इसको देखते हुए केंद्र सरकार अपने पास पर्याप्त मात्रा में गेहूं का स्टॉक रखना चाहती है, ताकि भविष्य में किसी तरह की दिक्कत नहीं आए। इससे पहले भारत सरकार ने दुनिया के गरीब देशों के नागरिकों को मुफ्त अनाज देने का प्रस्ताव भी विश्व व्यापार संगठन को दिया था, जिसपर अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। भारत सरकार ने कहा है कि जिस तरह से वह अपने 80 करोड़ नागरिकों को बीते दो साल से मुफ्त अनाज दे रही है, ठीक वैसे ही गरीबों को फ्री खाना खिलाने के लिए प्रतिबद्ध है।
इस बीच यह भी सामने आया है कि जिस तरह से पड़ोसी देश श्रीलंका में आर्थिक आपातकाल लगा हुआ है, और वहां पर खाने—पीने की चीजों को बड़ा संकट चल रहा है, उसको लेकर भी सरकार के गेहूं निर्यात बंद करने के निर्णय को प्रभावित माना जा है। इधर, नेपाल व पाकिस्तान भी आर्थिक संकट में फंसते नजर आ रहे हैं, जिसने भी भारत सरकार की चिंता बढ़ा दी है। यदि इनको भी भविष्य में खाने के लिए अनाज देना पड़े तो उस हालात को सरकार ने ध्यान में रखा है।
पाकिस्तान के साथ भले ही भारत के कारोबारी रिश्ते नहीं के बराबर हो, लेकिन संकट में फंसने पर पड़ोसी का धर्म निभाते हुए भारत सरकार पाकिस्तान को भी खाने पीने की चीजें देने से पीछे नहीं हटेगी। पिछले दिनों ही पाकिस्तान की नई सरकार ने भारत के साथ करीब पौने तीन साल बाद कारोबारी रिश्ते फिर से आरम्भ करने की पहल की है। आने वाले दिनों में इस पहल का नतीजा देखने को मिलेगा, जब भारत सरकार द्वारा इसका जवाब दिया जाएगा।
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