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क्या अंतर है राजद्रोह और देशद्रोह में?

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के कानून पर रोक लगा दी है। इससे पहले कोर्ट ने केंद्र सरकार से इसपर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था। तीन दिन से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही थी। बुधवार को कोर्ट ने आखिर सरकार को फैसला नहीं आने तक राजद्रोह के सभी मामलों पर फिलहाल रोक लगा दी है। सरकार की ओर से इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा है कि किसी को भी लक्ष्मण रेख नहीं लांघनी चाहिए। एक तरह से मंत्री ने कोर्ट को कहा है​ सरकार न्यायालय के फैसले का सम्मान करती है, लेकिन लोकतंत्र में सभी अंगों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए। मंत्री के इस बयान को कोर्ट के निर्णय से नाराजगी के तौर देखा जा रहा है। इससे पहले सोमवार को सरकार ने कोर्ट में कहा था कि न्यायालय की मंशा के अनुसार सरकार इस कानून पर ​विचार करने को तैयार है, किंतु मंगलवार को कोर्ट ने सरकार से फिर पूछा कि जब तक सरकार इसपर विचार करेगी, तब तक मामले दर्ज होने चाहिए या नहीं? क्या इस कानून के त​हत आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए या नहीं? बुधवार को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार का पक्ष सुनकर कहा कि जब तक सरकार इसपर विचार कर अपना मत नहीं रखेगी, तब तक इसके तहत कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा। सरकार की ओर से वि​धिक राय ली जा रही है। कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच इस कानून को लेकर खींचतान जारी है और इस बीच लोगों में चर्चा इस बात की है कि यह कानून अचानक से चर्चा में क्यों आया है? क्या मोदी सरकार ने इसमें कोई सख्ती बरती है? क्या इस कानून को और कठोर किया गया है? क्या किसी आरोपी को सजा हुई है,​ जिसके कारण कोर्ट ने केंद्र सरकार को इसपर पुनर्विचार करन को कहा है? इस कानून के तहत अबतक कितने लोगों को सजा हुई है और कानून कब बना था? इसके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, उससे पहले सवाल यह उठता है कि क्या राजद्रोह और देशद्रोह कानून एक ही है? क्या इन दोनों कानूनों में समान धाराएं लगती हैं? क्या इनमें सजा का प्रावधान भी एक ही है? तमाम सवाल आपके दिमाग में चल रहे होंगे। राजद्रोह और देशद्रोह को लेकर अक्सर ही देश की राजनीति गरमाई रहती है। हम राजद्रोह कानून और देशद्रोह कानून को लेकर भी कई बार अख़बारों में पढ़ते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजद्रोह और देशद्रोह में क्या अंतर है? असल में दोनों कानून अलग—अलग हैं और धाराओं समेत सजा का प्रावधान भी अलग अलग है, लेकिन सामान्यत: लोग इन कानूनों को एक ही समझ लेते हैं। हम पहले बात करते हैं राजद्रोह कानून क्या है, किसको आरोपी बनाया जाता है, सजा का क्या प्रावधान है? यदि कोई व्यक्ति सरकार विरोधी बातें लिखता है या बोलता है, या फिर ऐसी ही बातों का समर्थन करना है, या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करता है या फिर संविधान को नीचा दिखाता है तो उस व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code, IPC) की धारा 124—ए के तहत राजद्रोह का केस दर्ज किया जा सकता है। इन सब बातों के साथ ही यह किसी व्यक्ति के द्वारा देश विरोधी संगठन के साथ में किसी तरह का संबंध रखा जाता है या वह ऐसे किसी संगठन का किसी भी तरह से सहयोग करता है तो भी वह राजद्रोह के अंतर्गत आता है। राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है। यदि किसी व्यक्ति को राजद्रोह कानून के अंतर्गत दोषी पाया जाता है तो उसे 3 साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है। सजा के साथ ही ऐसे व्यक्ति को जुर्माना भी देना होता है। इसके साथ ही जब कोई व्यक्ति राजद्रोह में दोषी पाया जाता है तो वह कभी किसी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता है। इसके अलावा उसका पासपोर्ट भी रद्द कर दिया जाता है और उसे जब जरुरत हो तब कोर्ट में हाजिर होना पड़ता है। कई बार लोगों का एक सवाल सामने आता है कि क्या राजद्रोह कानून को खत्म किया जा सकता है? तो इसे लेकर जुलाई 2019 के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि राजद्रोह कानून, यानि आईपीसी की धारा-124 (ए) को खत्म नहीं किया जा सकता है। सरकार ने कहा था कि देश के विरोधी लोगों, आतंकी तत्वों और पृथकतावादी तत्वों से निपटने के लिए राजद्रोह कानून की बहुत जरुरत है। राजद्रोह के कानून को साल 1870 में अंग्रेजों ने आजादी के ​दीवानों को नियंत्रित करने के लिए बनाया और लागू किया गया था। राजद्रोह कानून को जेम्स स्टीफन के द्वारा ही लिखा गया था। उनका यह कहना था कि किसी भी सूरत में ब्रिटिश सरकार की आलोचना को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अब बात करते हैं देशद्रोह के कानून की। आईपीसी की धारा 121 के तहत देश में सरकार को क़ानूनी रूप से चुनौती देना देशद्रोह की श्रेणी में आता है। वैसे सरकार का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध किया जाना या इसके अलावा उसमें बदलाव के लिए मांग किया जाना देश के हर नागरिक का अधिकार होता है, लेकिन गैरकानूनी तरीके से सरकार का विरोध देशद्रोह कहा जाता है। यहाँ तक कि ऐसे संगठन जिनके द्वारा देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है, उन्हें भी बैन कर दिया जाता है। इसके अंतर्गत ही माओवादी या अलगाववादी संगठनों को भी प्रतिबंधित किया जाता है। ऐसे संगठनों से किसी भी तरह का संबंध रखने वाले व्यक्ति के खिलाफ भी देशद्रोह के मामले में या इससे जुड़ी धाराओं में केस दर्ज होता है। IPC की धारा-121 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति देश के खिलाफ होने वाली आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है तो देशद्रोह के अंतर्गत उसे सजा का प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति देश के खिलाफ युद्ध जैसे हालात पैदा करता है या युद्ध करता है या फिर लोगों को देश के खिलाफ युद्ध के लिए प्रेरित करता है, तो उसे उम्रकैद से लेकर फांसी तक की सजा दी जा सकती है। ऐसे किसी भी क्राइम के लिए ऐसे व्यक्ति को IPC की धारा-121 A के अंतर्गत सजा होती है। सजा की अवधि 10 साल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है। देशद्रोह के लिए किसी भी ऐसे व्यक्ति को जिम्मेदार माना जाता है तो देश के खिलाफ किसी भी गतिविध में शामिल होता है या ऐसे किसी संगठन से सम्पर्क रखता है। आतंकी विचारधारा के साथ जाने वाले व्यक्ति को भी इसके लिए दोषी माना जाता है। IPC की धारा-122 के अंतर्गत यह कहा गया है कि यदि कोई देश के खिलाफ युद्ध की नियत रखता है और इसके लिए हथियार जमा करता है या हथियार बनाता है या फिर हथियार छुपाने का काम करता है तो उस व्यक्ति को 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा सुनाई जा सकती है। और जो लोग ऐसे लोगों का साथ देते हैं, उन्हें भी आईपीसी की धारा-123 के अंतर्गत 10 साल की सजा का प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति या राज्यपाल पर हमला करता है तो उसे आईपीसी की धारा-124 के अंतर्गत सजा होती है। जब किसी व्यक्ति के द्वारा सरकार को असंवैधानिक तरीके से पलटने का कार्य किया जाता है तो उसे राजद्रोह करार दिया जाता है। जब किसी व्यक्ति के द्वारा देश के नुकसान के कार्य को अंजाम दिया जाता है या ऐसी कोई योजना बनाई जाती है तो उसे देशद्रोह कहा जाता है। 162 साल पुराने इस कानून के दुरुपयोग का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते 10 साल में 13306 आरोपियों पर 867 केस दर्ज किए गये हैं, जिनमें से केवल 13 लोगों को सजा हुई है, यानी एक प्रतिशत से भी कम। हाल ही में राजस्थान के डूंगरपुर, अलवर और भीलवाड़ा में एक टीवी एंकर अमन चौपड़ा पर राजद्रोह का केस ​दर्ज किया गया था, जिसपर राजस्थान हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। यह माना जाता है कि अक्सर सरकारें अपने खिलाफ बोलने वाले लोगों के खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज कर प्रत्याड़ित करने का काम करती है। इस कानून के दुरुपयोग और सजा पाने वालों की संख्या में भारी अंतर होने के कारण ही सुप्रीम कोर्ट ने इसके पुनर्विचार के लिए केंद्र सरकार से कहा है। हालांकि, कोर्ट ने राजद्रोह के कानून के बारे में ही पुनर्विचार के लिए कहा है, ना के देशद्रोह के कानून पर सवाल उठाया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मोदी सरकार ने बीते सात साल के दौरान समय के साथ बैकार हो चुके करीब 13000 हजार कानूनों को खत्म करने का काम किया है।

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