ठीक दो साल पहले, जब राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव होना था, उसी दौरान मध्य प्रदेश में सबसे बड़ज्ञ सियासी उलटफेर हुआ था। कांग्रेस की तत्कालीन कमलनाथ सरकार के 22 विधायकों ने इस्तीफा देकर सरकार को गिरा दिया। मध्य प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गये। कांग्रेस के कई मौजूदा विधायक भी भाजपा में चले गये। 20 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री कमलनाथ के इस्तीफे के साथ ही एमपी की 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौथी बार मुख्यमंत्री बन गये। कमलनाथ सरकार केवल 15 महीने चली, जो कांग्रेस मध्य प्रदेश में 15 साल के इंतजार के बाद सत्ता में आई थी, वह अपने ही नेताओं की दगेबाजी के कारण फिर से वनवास में चली गई। इसके बाद सिंधिया भाजपा की ओर से राज्यसभा भेजे गये और आज वह मोदी कैबिनेट में नागरिक उड्डयन मंत्री हैं।
सिंधिया कू बगावत करने के साथ ही राजस्थान में भी कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट पर काली श्याही के छींटे लगाने के प्रयास हुए। क्योंकि सिंधिया और पायलट मित्र हैं। लेकिन अशोक गहलोत की वजह से साल 2013 में 21 सीटों पर चली गई कांग्रेस को 2018 में 99 सीटों पर लाने वाले सचिन पायलट पर इस तरह के आरोप लगाना कहां तक न्यायसम्मत था। सिंधिया के साथ ही पायलट के भी कांग्रेस छोड़ने के आरोप लगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि राज्यसभा सीटों के चुनाव में सचिन पायलट और उनके सभी साथियों ने कांग्रेस को एकजुट होकर जिताने का काम किया। किंतु किसी की प्रतिभा को अधिक समय तक दबाया नहीं जा सकता, यही हुआ 11 जुलाई 2020 को, जब सचिन पायलट ने अपने साथियों के साथ गहलोत सरकार से बगावत कर दी। इसके बाद अगले 34 दिन जो हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामा चला, वैसा राजस्थान के इतिहास में कभी नहीं हुआ। होटलों से लेकर मानेसर तक और राजभवन से विधानसभा तक कांग्रेस में जबरदस्त सियासी संग्राम चला।
अब एक बार फिर से राज्य में 4 सीटों के लिऐ जुलाई में चुनाव होना है। उससे पहले कांग्रेस में उसी तरह की बातें सामने आ रही हैं। यहां तक आरोप लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस के नेताओं द्वारा अपने सियासी दुश्मनों को निपटाने के लिए खबरें प्लांड की जा रही हैं और दुष्प्रचार किया जा रहा हैं। अशोक गहलोत को मंजे हुए राजनेता के तौर पर जाना जाता है, उनके समर्थक उन्हें जादूगर भी कहते हैं, वह हमेशा मैसेज की राजनीति करने के माहिर खिलाड़ी माने गये हैं। यह बात और है कि राजनीति में उनसे काफी जूनियर रहे आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने वह हमेशा पस्त हुए हैं, फिर भी फोलोवर्स की भावनाएं इन प्रमाणों से कभी आहत नहीं होती हैं। गहलोत मैसेज देकर चले जाते हैं और पर्दे के पीछे से बड़ा गैम करते हैं। वह कहते भी हैं कि राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं है और जो दिखता है, वह होता नहीं है।
गहलोत के इसी ट्रेप में फंसकर सचिन पायलट ने ना केवल उप मुख्यमंत्री का पद गंवाया, बल्कि उनको अध्यक्ष की कुर्सी भी छोड़नी पड़ी। लेकिन कहते हैं कि गुरु गुड़ रह जाता है और चेला चीनी बन जाता है। जो संदेश की राजनीति और पर्दे के पीछे से गैम अशोक गहलोत करते आए हैं, सचिन पायलट आज उसी गैम के माहिर खिलाड़ी बन चुके हैं। पायलट अब गहलोत को उन्हीं के हथियारों से सियासी मार मार रहे हैं। अशोक गहलोत का सबसे मजबूत पक्ष मीडिया के चुनिंदा पत्रकार रहे हैं, जो कांग्रेस में जयपुर से लेकर दिल्ली दरबार तक बेहद खास हैं। ऐसे पत्रकारों को गहलोत ने खूब यूज लिया है, उनको ओब्लाइज भी किया है, तो खबरें प्लांड करने के काम भी खूब किए हैं।
इसी क्रम में तीन दिन पहले एनडीटीवी ने खबर चलाई कि सचिन पायलट ने सोनिया गांधी को दो टूक शब्दों में कह दिया कि राज्य में तुरंत मुख्यमंत्री बदला जाए, वरना राजस्थान में भी पंजाब जैसा हाल होगा। इसको दूसरे मीडिया संस्थानों ने भी प्रमुखता दी। लोगों को लगा कि इस बार सचिन पायलट ने दबंगाई से अपना पक्ष रखा है, लेकिन असलियत यह है कि इस तरह की बात कहीं हुई ही नहीं। पायलट ने ऐसा बोला ही नहीं, फिर भी इतनी बड़ी खबर फ्लेस की गई, कारण यह है कि राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं है और जो दिखता है, वह होता नहीं है। इस खबर को लेकर समझा गया कि सचिन पायलट ने ही प्रकाशित करवाई है, लेकिन हुआ उसके बिलकुल उलट, खबर अशोक गहलोत कैम्प की ओर से छपवाई गई।
इसको लेकर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट कर खंडन् किया और सचिन पायलट ने भी उसको रिट्वीट कर अपनी सहमति दी, तब पता चला कि यह खेल तो कहीं ओर से खेला गया था। जब सभी चीजें आपस में जुड़ती चली गईं, तब साफ हुआ कि सचिन पायलट को दरबारियों ने बदनाम करने के लिए इस तरह की झूठी खबरें मीडिया को दीं। इधर, चार राज्यसभा सीटों के लिए एक बार फिर चुनाव आ रहे हैं और उससे पहले इस तरह की खबरों का मतलब यह है कि अशोक गहलोत गुट द्वारा सचिन पायलट कैम्प को बदनाम करने की साजिश शुरू की जा चुकी है।
सरकार का डेढ साल का समय बचा है और ऐसे में राज्य की राजनीति में उलट फैर हो सकता है, लेकिन इस बार परिस्थितियां काफी अलग हैं। पिछली बार पायलट को 40—45 विधायकों पर अटूट भरोसा था, जिनमें से आधे दोखा दे गये। इस बार उनको दूसरों पर कोई भरोसा नहीं है। अब पायलट ने भी यह जान लिया है कि गांधी परिवार के पास ही असली जादूगरी हो सकती है। कांग्रेस में एक बार चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक विधायकों व जनता का कोई रोल नहीं रह जाता है।
कहते हैं कि राजनीति में ना तो कोई स्थाई दुश्मन होता है और ना ही स्थाई दोस्त। समय, काल और परिस्थितियों के अनुसार सब बदलते रहते हैं। साल 2008 में अशोक गहलोत और सीपी जोशी सबसे बड़े सियासी दुश्मन थे, लेकिन आज वे ही गहरे दोस्त हैं। कभी अशोक गहलोत प्रताप सिंह खाचरियावास को फूटी आंख नहीं सुहाते थे, लेकिन अब वही खासमखास हैं। भाजपा में कभी वसुंधरा राजे और ओम माथुर बहुत बड़े दुश्मन थे, जो आज पार्टी अध्यक्ष सतीश पूनिया के खिलाफ एक जाजम पर आ गये हैं। कभी सतीश पूनिया को हराने के लिऐ किरोडीलाल मीणा ने अपना उम्मीदवार उतार दिया था, वही किरोडीलाल आज सतीश पूनिया के खास बनने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए सियासी जानकारों का मानना है कि कभी अशोक गहलोत और सचिन पायलट भी खास दोस्त हो सकते हैं। इसको समझने के लिए एक छोटा सा उदाहरण समझना होगा।
अशोक गहलोत को पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहना है, ये उनकी जिद है, तो सचिन पायलट को भी इसी कार्यकाल में मुख्यमंत्री बनना है, यह उनका सपना है। किंतु अशोक गहलोत को अपने बेटे वैभव गहलोत को भी राजनीति में स्थापित करना है। ऐसे में समीकरण यह बन रहा है कि अशोक गहलोत सीएम पद सचिन पायलट के लिए छोड़ देंगे तो पायलट भी वैभव को अपनी कैबिनेट में जगह दे दें। होगा ऐसे, अशोक गहलोत राज्यसभा का चुनाव लड़ेंगे और वह दिल्ली चले जाएंगे, जहां पर गैर गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष की जरुरत है। उनकी सरदारपुरा सीट से वैभव गहलोत को उपचुनाव लड़ाया जाएगा, उससे पहले सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाने के दौरान ही संवैधानिक तौर पर वैभव गहलोत को भी मंत्री पद की शपथ दिलाई जाएगी। इस तरह से सचिन पायलट भी इसी कार्यकाल में मुख्यमंत्री बन जाएंगे और अशोक गहलोत अपना संगठनात्मक प्रमोशन लेकर बेटे को राजस्थान की राजनीति में स्थापित करने में कामयाब भी हो जाएंगे।
अधिकांश लोगों को यह बात बैमानी लगती है, किंतु राजनीति में कब, कौन, क्या कर जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। कभी दिसंबर 2018 में सचिन पायलट और अशोक गहलोत एक ही मंच से वसुंधरा राजे सरकार को ललकारते हुए कांग्रेस के लिए वोट मांग रहे थे, लेकिन डेढ साल बाद ही ऐसा समय भी आया, जब अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को नाकारा, निकम्मा और लोगों को आपस में लड़ाने वाला करार दे दिया। याद कीजिए जिन सीपी जोशी को अशोक गहलोत ही राजनीति में लाए थे, उन्हीं सीपी जोशी ने 2008 में अशोक गहलोत, लेकिन चुनाव में वह एक वोट से हार गए और इस बार वह अशोक गहलोत की वजह से विधानसभाध्यक्ष हैं। यानी दो व्यक्ति दोस्त, दुश्मन और फिर दोस्त बन गये। ऐसे में कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आने वाले दिनों में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच फिर से दोस्ती हो जाए और 2023 के विधानसभा चुनाव प्रचार में दोनों फिर से मंच शेयर करते नजर आएं।
गहलोत—पायलट में फिर हो सकती है दोस्ती!
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