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भारत को अमेरिका देगा 500 मिलियन डॉलर के हथियार

करीब तीन माह से रूस व यूक्रेन युद्ध के मध्यननजर अमेरिका कई बार भारत को अपने पक्ष में करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रयास कर चुका है। रूस की तरह प्रतिबंधों से लेकर चीन का डर और इसी तरह से 3 लाख करोड़ रुपये के मोटे निवेश के लालच से लेकर हर तरह की मदद करने का वादा करके भी अमेरिका जब भारत को अपने पक्ष में नहीं कर पाया, तब आखिर में अमेरिका ने 50 मिलियन डॉलर की नई चाल चली है। अमेरिका ने भारत को रूस से दूर करने के लिए यह नई चाल चली है। अमेरिका की यह चाल कितनी कारगर साबित होगी और इसमें ऐसा क्या है, जो अमेरिका को लगता है कि भारत रूस का साथ छोड़कर उसके साथ खड़ा हो जाएगा। साथ ही यह भी जानेंगे कि 50 मिलियन डॉलर की इस सहायता के पीछे अमेरिकी मकसद क्या क्या हो सकते हैं? सबसे पहले बात करते हैं कि भारत वर्तमान में कितने रुपये के विदेशी ​हथियार आयात करता है? भारत जिन देशों से सुरक्षा उपकरण आयात करता है, उनमें रूस, इस्राइल, अमेरिका और फ्रांस प्रमुख हैं। भारत में हथियारों के आयात में रूस की हिस्सेदारी 2012-17 के 69 प्रतिशत से घटकर 2017-21 में 46 प्रतिशत रह गई। 2012-16 और 2017-21 के बीच भारत में हथियारों के आयात में 21 प्रतिशत की कमी आई। इसके बावजूद भारत 2017-21 में प्रमुख हथियारों का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक रहा और इस अवधि में विश्व में हथियारों के कुल आयात में भारत की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत रही। रूस के विपरीत फ्रांस से भारत के हथियारों का आयात 10 गुना से अधिक बढ़ गया, जिससे वह 2017–21 में भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बन गया। हथियारों के आयात के मामले में भारत ने अमेरिका को भी बड़ा झटका दिया है। भारत ने 2016 में शुरू किए गये आत्मनिर्भर भारत अभियान के कारण हथियार आयात में 33 फीसदी की कमी लाई है। उससे पहले दुनिया में सउदी अरब के बाद दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश था। साल 2011-2015 के बीच में अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश था, लेकिन साल 2016-2020 के बीच में अमेरिका चौथे पायदान पर चला गया है। अमेरिका से हथियारों के आयात में भारत ने 46 फीसदी की कमी की है। साल 2016 से 2020 के बीच में इजरायल और फ्रांस क्रमश: दूसरे और तीसरे सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ता देश रहे, जबकि 46 प्रतिशत के साथ रूस आज भी सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है। पिछले दिनों ही रूस ने युद्ध के बावजूद भारत को एस 400 एयर डिफेंस सिस्टम सप्लाई कर अपनी प्रतिबद्धता दिखा दी है। यही कारण है, जो अमेरिका को चिंतित करता है। अमेरिका पिछले कुछ समय से भारत को हथियार निर्यात करने में पिछड़ रहा था, इसलिए अमेरिका ने अब भारत को बिना किसी शर्त के 500 मिलियन डॉलर के हथियार बिना किसी पैसे के देने की घोषणा की है। पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच टू प्लस टू की मीटिंग व भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर की अमेरिकी यात्रा के बाद अमेरिका ने भारत को यह सहायता देने का ऐलान किया है। भारत की रक्षा जरुरतों को पूरा करने में अब तक रूस अहम पार्टनर रहा है, लेकिन रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान अमेरिका के लाख चाहने के बाद भी भारत ने रूस की खुलकर निंदा नहीं की है, जो अमेरिका को बहुत तकलीफ दे रही है। अमेरिका लगातार इस प्रयास में रहा है कि भारत भी दुनिया के दूसरे देशों की तरह यूक्रेन पर आक्रमण को गलत बताकर निंदा प्रस्ताव पास करे। अलबत्ता भारत यूएन में ही 13 बार की वोटिंग में हिस्सा नहीं लेकर परोक्ष रुप से रूस की सहायता की है। चाहे तेल आयात का मामला हो या कोयला खरीदने की बात, हर बार भारत ने अमेरिका को यही कहा है कि वह अपनी जरुरतों को वहां से पूरा करेगा, जो सबसे सस्ता माल देगा। इसके साथ ही भारत ने बार बार अमेरिका को साफ किया था कि वह इसके लिए किसी के दबाव में झुकने वाला नहीं है। भारत की इस स्पष्ट सोच के चलते अमेरिका के समझ आ चुका है कि जब तक भारत की जरुरतों को पूरा नहीं किया जाएगा, तब तक वह अमेरिका के कहने से कुछ नहीं करने वाला है। यही कारण है कि अमेरिका ने भारत को बिना शर्त 500 मिलियन डॉलर की सहायता देने की घोषणा की है। साथ ही एशिया महाद्वीप में चीन की बढ़ती चुनौती से भी अमेरिका चिंतित है। रूस व यूक्रेन युद्ध के बीच कई बार ये खबरें सामने आई हैं कि चीन भी इस युद्ध के बहाने ताइवान पर हमला कर मिटा देना चाहता है। इसके कारण क्वाड का महत्व बढ़ जाता है, जिसमें भारत, अमेरिका, ओस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं। भारत और ओस्ट्रेलिया को सहायता देकर अमेरिका इंडो—पेसेफिक क्षेत्र में खुद की पकड़ मजबूत करना चाहता है, ताकि चीन की ताइवान पर हमला करने या फिर उसको कब्जाने की हिम्मत नहीं हो। भारत को हर तरह की सहायता देकर अमेरिका ना केवल इस युद्ध के वक्त, बल्कि भविष्य के लिए भी एशिया में एक मजबूत सहयोगी ढूंढ रहा है। असल में एशिया में चीन सबसे बड़ी ताकत है, जिसका वैश्विक स्तर पर अमेरिका से टकराव चलता रहता है। और यही चीन एशिया महाद्वीप में अमेरिका को घुसने से रोकना चाहता है, ताकि इस क्षेत्र में वह अपना दबदबा बनाए रखे। चीन से मुकाबला करने के लिए अमेरिका को भारत जैसे मजबूत और उभरते हुए शक्तिशाली देश की जरुरत है। यही तीन कारण हैं, जिनके चलते अमेरिका बिना शर्त भारत में को बड़े पैमाने पर हथियार सहायता देने को मजबूर हो रहा है।

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