कहते हैं जैसा राजा, वैसी प्रजा। भारत में यह कहावत हजारों वर्षों से चली आ रही है। आचार्य चाण्क्य ने करीब ढाई हजार साल पहले कहा था कि राजा के आचारण के अनुसार ही प्रजा का व्यवहार होता है। यह बात सतयुग से लेकर द्वापर युग और अब कलयुग में भी सटीक साबित हो रही है। राम राज्य में प्रजा भगवान राम की तरह ही व्यवहार करती थी, कृष्णकाल में प्रजा भगवान कृष्ण का अनुसरण करती थी। आधुनिक भारत की बात की जाए तो आजादी से पहले देश का बच्चा बच्चा अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की जंग में कूद पड़ा था। जब इंदिरा गांधी ने 1974 और अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में परमाणु परीक्षण किया तो अमेरिका समेत पूरे यूरोप ने भारत पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए, लेकिन देश के नागरिकों ने कभी अपने प्रधानमंत्री का साथ नहीं छोड़ा। ऐसे ही 2004 से 2014 का काल रहा, जब प्रधानमंत्री की निष्क्रियता के चलते देश निराशा के भाव से जी रहा था। इसके बाद 2014 से मोदी युग प्रारम्भ हुआ तो देश की जनता भी ऐसे ही बर्ताव करने लगी है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं, तो वहां पर किसी भी धर्म या मजहब के हों, योगी के अनुसार ही चल रहे हैं। बीते पांच—छह साल से गुंडा प्रदेश की छवि से उत्तर प्रदेश बाहर निकल चुका है। इधर, राजस्थान में अशोक गहलोत की ढुलमुल सरकार है, तो यहां पर करौली, अलवर, जोधपुर, भीलवाड़ा कांड़ सामने आ रहे हैं, जहां स्लीपर सेल की तरह छुपे हुए बदमाश सरेआम मारकाट करने में लगे हुए हैं। यही कारण है कि राजस्थान की जनता निराशा के भाव में डूब रही है, जबकि उत्तर प्रदेश में निवेश के नये द्वार खुल रहे हैं। राजस्थान में गहलोत सरकार के मंत्री अनाचार में लिप्त हैं तो मंत्रीपुत्र दुराचार करने में लगे हुए हैं।
साल 2014 के बाद देश में जो बदलाव सरकार ने किए, और लगातार करने का प्रयास कर रही है, उसी का कारण है कि चाहे ओडीएफ के तहत खुले में शोच करने से देश ने मुक्ति पाई हो, या गरीबों के घर में गैस सिलेंडर पहुंचा हो, या फिर प्रधानमंत्री के एक आव्हान पर देश के करीब एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ी हो। इसी तरह से मैक इन इंडिया के अभियान में जनता साथ दे रही है। जब डोकलाम और लद्दाख में चीन द्वारा सीमा पार करने की हिमाकत की गई और देश की सरकार ने चीन के आयात को कम करने के लिए आत्म निर्भर भारत का आव्हान किया तो भारत का छोटे छोटा औ बड़े से बड़ा उद्योगपति इसका हिस्सा बनने का आतुर दिखाई दे रहा है। भले आज डीजल पेट्रोल के भाव 100 रुपये लीटर से उपर चले गये हों, लेकिन फिर भी देश की जनता में एक आशा है, नागरिक कष्ट सहन करके भी यूपीए सरकार के समय की तरह निराशा में नहीं है। हालांकि, विचारधारा और दलगत राजनीति के कारण एक वर्ग ऐसा भी है जो सरकार की हमेशा आलोचना ही करता रहता है। अन्यथा अधिसंख्य लोग आज भारत सरकार के हर कदम पर साथ देने को तैयार हैं।
कहते हैं जब जनता राजा के साथ खड़ी होती है, तो उसका भी आत्मविश्वा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। यही कारण है कि आज मोदी सरकार अमेरिका को बारबरी में बिठाकर बात करती है। चाहे रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा भारत को अपने पक्ष में कर रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास करने और उससे कारोबार बंद करने का कितना ही दबाव बनाया गया हो, लेकिन भारत ने अमेरिका की कभी परवाह नहीं है, उल्टा जरुरत पड़ी तो रूस से सस्ता कच्चा तेल, गैस और कोयले का सौदा अमेरिका को दिखा दिया कि यह नया भारत है। भारत को दबाने के लिए हमेशा की भांति अमेरिका ने अपने सभी पैंतरे चले, लेकिन इस बार उसकी पार नहीं पड़ी। अंतत: उसने यह सोच लिया है कि भारत से अब केवल बराबर के साथी की तरह बर्ताव कर ही कुछ हासिल जा सकता है, पहले की भांति कमजोर देश मानकर झुकाया नहीं जा सकेगा। भारत ने बीते 100 दिन में विभिन्न मंचों पर अमेरिका को यह अहसास करवाया है कि उसकी जनता के हित में जो होगा, भारत वही करेगा, उसको अमेरिका अपने हिसाब से नहीं चला पाएगा। इसके चलते अमेरिका आज भारत को विश्व में सबसे ज्यादा तवज्जो देने वाले देशों में शामिल कर चुका है। अमेरिका के लिए आज सामरिक, राजनीतिक और वैश्विक स्तर पर भारत उतना ही महत्वपूर्ण है, जितने चीन व रूस हैं। अलबत्ता भारत ने सैन्य खर्च में रूस को पीछे छोड़कर यह भी दिखा दिया है कि सुरक्षा की दृष्टि से वह अब सशक्त हो चुका है, और ऐसे में चीन जैसे देश को भी सोच विचार के बाद ही कदम उठाना चाहिए।
इस आत्मविश्वास का नतीजा है कि भारत सरकार ने अमेरिका को एक तरह से अनसुना कर डेटा प्रोटेक्शन बिल लाने का फैसला किया है। अभी तक अमेरिका ही ऐसा देश था, जहां पर दुनियाभर का डेटा स्टोर रहता था। इसके अलावा पिछले साल यूरोपीयन यूनियन ने भी डेटा प्रोटेक्शन बिल लागू किया है। भारत सरकार के 'डेटा ही पूंजी' के सिद्धांत को लागू करने के फैसले से विदेशी कंपनियाों के हाथ पांव फूल गये हैं। इस वक्त डेटा के मामले में वैश्विक कंपनियों के लिए भारत सोने की चिड़िया है। इसलिए भारत सरकार ने तय किया है कि अमेरिकी कंपनियां अब तक भारत से जो डेटा को मुफ्त में ले रही थीं, उसका पैसा वसूला जाएगा, तो अमेरिका के सिलिकॉन वैली में डेटा दबाकर बैठी कंपनियों की बिलबिलाहट सामने आने लगी है।
मोदी सरकार ने तय किया है कि भारत के नागरिकों को डेटा भारत में ही स्टोर किया जाएगा, इसको लेकर बिल का मसौदा तैयार किया जा चुका है। सरकार ने कहा है कि आने वाले मानसून सत्र में डेटा प्रोटेक्शन बिल संसद में रखा जाएगा और उसको पास कराकर कानून बनाया जाएगा। मोदी सरकार के इस फैसले के बाद से ही अमेरिकी कंपनियां भारत सरकार पर दबाव बनाने में लगी हैं। इस बिल में यह प्रावधान है कि भारत का डेटा कंपनियों को भारत में ही स्टोर करना होगा। इन कंपनियों की बात को भारत सरकार द्वारा अनसुना करने के बाद कई कंपनियों ने भारत में कारोबार बंद करने की धमकी भी दे डाली है। आपको याद होगा, मोदी की पहली सरकार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी दुनिया की कंपनियों को कहते थे कि यहां आइए और कारोबार कीजिए, अब मोदी ने अपनी पिछली यात्रा के दौरान यूरोप में साफ कर दिया है कि जिनको भी ग्लोबल बनना है, उनको भारत में कारोबार करना होगा, अन्यथा उसके ग्लोबल बनने का सपना अधूरा रह जाएगा।
डेटा प्रोटेक्शन बिल और उसके फायदे नुकसान की बात करें तो इस बिल के कानून बनने के बाद तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत के नागरिकों से संबंधित डेटा भारत में ही स्टोर करना होगा। कोई कंपनी इसको रखना चाहेगी तो उसको भारत में ही अपना प्लांट लगाना होगा। ऐसे लोकल डेटा सेंटर ही देश की अर्थव्यवस्था में भारी योगदान देंगे। डेटा सेंटर भारत में होने से विरोधी देश हमारे डेटा का गलत इस्तेमाल, सर्विलांस और कंज्यूमर बिहेवियर भांपने के लिए नहीं कर पाएंगे। भारत में डेटा सेंटर लगने के कारण इससे जुड़ी नौकरियां पैदा होंगी और बडे पैमाने पर डेटा कूलिंग टावर बनेंगे। इसके साथ ही दूसरे देशों के साथ भारत की मोलभाव करने की क्षमता बढ़ेगी, सरकार लोगों के अथाह डेटा के बल पर दूसरे देशों के साथ वाणिज्यिक समझौते कर पाएगी। अभी तक कई देशों ने भारत के साथ करार कर रखे हैं, लेकिन विदेशी सर्वर होने के कारण भारत सरकार को अपराधियों का डेटा नहीं मिल पाता है, इस कानून के बाद यह बाध्यता खत्म् हो जाएगी।
सबसे बड़ी बात यह है कि अभी तक भारत का पूरा डेटा अमेरिका के सिलिकॉन वैली में जमा होता है। वहां पर अधिकतर कंपनियां अपनी मर्जी से डेटा बेचती हैं, कई बार भारत सरकार को ही भारत के नागरिकों का डेटा नहीं देती हैं। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि इस वक्त क्लाउड डेटा स्टोरेज से डिजिटल कंपनियों की कमाई 50 अरब डॉलर से अधिक है, और यह कमाई अगले तीन साल के भीतर 137 अरब डॉलर से ज्यादा हो जाएगी, जो 10.60 लाख करोड़ रुपये होती है। असल में जितनी अधिक जनसंख्या होती है, उसी के अनुसार डेटा की मात्रा बढ़ती जाती है। भारत की आबादी इस वक्त करीब 140 करोड़ है, जबकि इंटरनेट खपत में भारत दुनिया का नंबर एक देश है। भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। सोशल मीडिया साइट्स से लेकर वेबसाइट्स का भारत में तेजी प्रसार हो रहा है। इसके कारण भारत के डेटा की मात्रा में तेजी इजाफा हो रहा है। जनसंख्या के हिसाब से देखा जाए तो अमेरिका व यूरोप की कुल जनसंख्या भी भारत से अधिक नहीं है।
ऐसे में आप सहज ही समझ सकते हैं कि अमेरिका समेत दुनिया की तमाम कंपनियां भारत के डेटा से प्रतिवर्ष कितना कारोबार कर रही हैं। यही कारण है कि भारत ने अपने डेटा को अपने ही देश में सुरक्षित रखने के लिए कानून बनाने का फैसला किया है। इस कानून के बनने के बाद अमेरिका की बड़ी कंपनियों को बहुत बड़ा झटका लगने वाला है, जिसके कारण अमेरिका इतना तिलमिलाया हुआ है।
मोदी सरकार अमेरिका को 137 अरब डॉलर का झटका देने की तैयारी में!
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