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नाचते-कूदते रालोपा सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल

आपने बहुत बार सुना होगा नाच ना जाने आंगन टेढ़ा! इस लोकोक्ति का अर्थ ही बदल दिया राजस्थान के एक दिग्गज नेता ने! वे एक चुनावी सभा में क्या नाचे, सामने ताल ठोक रही दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के मंच पर, जो चुनाव में टेढ़े नजर आ रहे हैं।

राजस्थान की राजनीति में वो साल था 2018 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले का। चुनाव से ठीक 29 दिन पहले अक्टूबर के महीने में हनुमान बेनीवाल ने अपनी पार्टी की घोषणा की थी, इसका नाम रखा गया राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी। अब साल 2021 में यह अक्टूबर का महीना चल रहा है। मतलब आरएलपी का तीसरा स्थापना दिवस इसी महीने में है। आरएलपी पार्टी का तीसरा स्थापना वर्ष समर्थकों के लिए खास हो सकता है।

क्योंकि इन दिनों राजस्थान में उदयपुर की वल्लभनगर और प्रतापगढ़ की धरियावाद सीट पर उपचुनाव होने हैं। और इसके लिए चुनाव प्रचार भी जोरों पर है। बीते मंगलवार को हनुमान बेनीवाल का मंच से नाचने वाला वीडियो वायरल हुआ। आखिर बेनीवाल नाच क्यों रहे हैं? अलबत्ता कुछ सियासी जानकार मान रहे हैं कि बेनीवाल इसलिए नाच रहे हैं, क्योंकि उन्होंने वल्लभनगर सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों का खेल बिगाड़ दिया है। बस इसी खुशी में मंच पर समर्थकों संग बेनीवाल झूम पड़े।


लिहाजा झूमे भी क्यों ना, न तो बूथ अध्यक्ष है पार्टी का, ना पन्ना प्रमुख है, ना गांव गांव में पार्टी मजबूत है, लेकिन भाजपा से टिकट नहीं मिलने से नाराज उदय लाल डांगी को अपनी पार्टी आरएलपी का बोतल वाला सिंबल दे दिया, तो पार्टी एक झटके में ही बूथ से लेकर चुनाव में भी पार्टी सीधे ही कड़ी टक्कर देने तक मजबूत हो गई।

इससे पहले 21 अप्रैल को 3 सीटों पर हुए उपचुनाव के दौरान भी अगर राजसमंद सीट पर आरएलपी के  बेहद कमजोर प्रदर्शन को छोड़ दें, तो चुरू जिले की विधानसभा सीट सुजानगढ़ में दूसरे नंबर पर और भीलवाड़ा के सहाड़ा में आरएलपी तीसरे नंबर पर रही थी। यही एक बड़ी वजह है कि भाजपा के 2018 के चुनाव के प्रत्याशी रहे उदय लाल डांगी को अब हनुमान बेनीवाल का साथ मिल गया है। डांगी इसी वजह से भाजपा से टिकट कटने के बाद आरएलपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

इससे पहले साल 2018 का विधानसभा चुनाव उदय लाल डांगी ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और तब उन्होंने तकरीबन 45000 वोट हासिल किए थे। इस बार बीजेपी ने उनका टिकट काटकर हिम्मत सिंह झाला को मैदान में उतारा है। वैसे भी आरएलपी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, पाने के लिए बहुत कुछ है। अगर भाजपा हारी तो भी बेनीवाल को फायदा है, और कांग्रेस हारी तो भी वह फायदे में ही रहेंगे। तो इस चुनाव ने हनुमान बेनीवाल को खुशी से नाचने को मजबूर कर दिया है।

शेखावाटी और मारवाड़ में अपना वजूद रखने वाली आरएलपी पार्टी अब धीरे-धीरे ही सही, मेवाड़ में भी सेंधमारी कर रही है। यह भी एक बड़ी वजह है कि हनुमान बेनीवाल नामांकन के बाद लगातार उदयपुर के वल्लभनगर में समर्थकों के साथ डेरा डाले बैठे हैं और अपने प्रत्याशी उदय लाल डांगी के साथ हर गांव और हर सभा में जा रहे हैं।

कुछ सियासी जानकार मान रहे हैं, टिकट कटने की सहानुभूति और सत्ता विरोधी लहर के कारण उदय लाल डांगी की जीतने की संभावनाएं प्रबल हैं। इसके साथ  बड़ी वजह यह भी है, कि वल्लभनगर सीट पर तीन दिग्गज राजपूत प्रत्याशी हो गए हैं। जनता सेना से रणबीर भिंडर, बीजेपी से हिम्मत सिंह झाला और कांग्रेस के पूर्व देवबंद विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत की धर्मपत्नी प्रीति शक्तावत हैं, जो आपस में वोट भी काटेंगे। इस 4 उम्मीदवारों की लड़ाई में यदि डांगी बाजी मार लेते हैं, तो हनुमान बेनीवाल के लिए नाचने का और आरएलपी भी जश्न का मौका होगा।

कहा जा रहा है कि पिछली बार 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर 42000 वोट पा चुके उदय लाल डांगी, अपने डांगी समुदाय के साथ आरएलपी को मिलने वाला समर्थन अपने साथ ले लेंगे और राजपूत समाज का वोट तीन जगह बटवारा हो जाएगा। इसके चलते उदय लाल डांगी के जीतने का गणित फिट बैठ जाएगा। अब देखते हैं कि वल्लभनगर सीट पर कौन जीतता है।

अमूमन नेताओं के नाचने-गाने के स्टेप चुनाव की जीत के बाद होते हैं, लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान ही हनुमान बेनीवाल इतना कॉन्फिडेंस इसलिए भी हैं, क्योंकि उनके पास होने के लिए कुछ भी नहीं है और पाने के लिए बहुत कुछ। अब देखते हैं उपचुनाव के इस मंथन से क्या परिणाम निकलता है।

सियासी भारत के लिए रामकिशन गुर्जर की रिपोर्ट

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