राजस्थान सरकार में मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्ति को लेकर इंतजार का फलसफा लगातार जारी है। विधायकों से लेकर उनके समर्थकों की आंखों के पुतलियां थक गई हैं, राह तकते तकते कि उनका विधायक, उनका नेता मंत्री बनेगा।
राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार की राह में कभी कोरोना आ गया, तो कभी पंचायती राज, कभी उपचनाव तो कभी निकाय चुनाव, और मंत्री बनने के इसी इंतजार में सावन से लेकर भादो बीत गया और अब नवरात्रि समाप्त हो गई है।
कांग्रेस के विश्वस्त सूत्रों से खबर आ रही है कि 16 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दिल्ली दरबार में जाएंगे। कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक होनी है और उसके बाद अशोक गहलोत सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा समेत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं, जिसमें पूरी उम्मीद है कि राजस्थान में लंबे इंतजार के बाद होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर ठोस बातचीत हो सकती है।
लिहाजा संवैधानिक तौर पर 200 सदस्यों वाली राजस्थान विधानसभा के में 30 सदस्यों को मंत्री बनाए जा सकता है, जिनमें से 9 मंत्री पद फिलहाल खाली हैं। ऐसे में संकट यह है कि सचिन पायलट कैंप के कितने मंत्री बनेंगे, निर्दलीयों को कितना मौका देंगे और बीएसपी से कांग्रेस में आए 6 विधायकों का क्या होगा?
गहलोत सरकार के कुछ निष्क्रिय मंत्रियों के छुट्टी होने की खबरें भी सामने आ रही हैं। पिछले दिनों पीसीसी चीफ और शिक्षामंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने तो बोर्ड का रिजल्ट जारी करते वक्त अधिकारियों से कहीं दिया था, मैं तो दो-चार दिन का मेहमान हूं, जो काम करवाना है वह करवा लो। डोटासरा का यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। इधर, अजमेर के केकड़ी से विधायक और गहलोत सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रघु शर्मा को गुजरात कांग्रेस का प्रभारी बना दिया गया है, और वह कह भी चुके हैं, कि उनकी रूचि संगठन में काम करने की है।
ऐसे में इसी बहाने पार्टी में एक व्यक्ति एक पद किस सिद्धांत को लागू किया जा सकता है। कुछ मंत्रियों को घटिया काम करने, यानी नॉन परफॉर्मेंस के आधार पर भी हटाया जा सकता है।
सियासी जानकारों का कहना है राजस्थान में जिस तरीके से लगातार कांग्रेस पार्टी के भीतर गुटबाजी देखने को मिल रही है और अब धीरे-धीरे विपक्ष मजबूत होता हुआ दिखाई दे रहा है, जिसका ही परिणाम है कि ढाई साल में सत्ता विरोधी लहर बनती हुई दिख रही है। ऐसे में संकेत मिल गए हैं कि राजस्थान का जिस तरीके का बीते 25 साल का हर 5 साल में सरकार बदलने का इतिहास रहा है, उसको कैसे भी बदला जाए। यह भी एक बड़ी वजह है कि कांग्रेस आलाकमान अपने ज्यादा विधायकों को संतुष्ट करके ग्राउंड पर काम से फिर सरकार की वापसी की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं।
किसी जमाने में देश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी अब कुछ राज्य में सिमट गई हैं, जिनमें पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान शामिल हैं। मध्य प्रदेश को वापसी करने के बाद खो चुके हैं। इन बाकी 3 बचे राज्यों में भी इसी तरह के कलह लगातार जारी है, तो इसलिए कांग्रेस पार्टी सीडब्ल्यूसी की बैठक में कुछ कड़े फैसले ले सकती हैं। 2023 में सत्ता रिपीट कराने के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को पूरी उम्मीद है राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार होने के साथ-साथ मुख्यमंत्री भी बदला जा सकता है।
वैसे भी पिछले दिनों सचिन पायलट की राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा से हुई मुलाकातें भी काफी अहम हैं। जिनको लेकर चर्चा हुई है कि राजस्थान में भी कांग्रेस आलाकमान बड़ा और कड़ा फैसला ले सकता है।
सियासी भारत के लिए रामकिशन गुर्जर की रिपोर्ट
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