अपनी भारी-भरकम आवाज और विशेष अंदाज की शैली के चलते राजस्थान विधानसभा के भीतर ही नहीं, बल्कि मीडिया में भी हमेशा चर्चित रहने वाले भाजपा के नेता राजेंद्र राठौड़ लगातार सात बार विधायक चुने जा चुके हैं, किंतु इन दिनों भाजपा और कांग्रेस दोनों ही की तरफ से 2023 में मुख्यमंत्री के लिए जिन्हें चेहरों की चर्चा हो रही है, उनमें राजेंद्र राठौड़ का नाम लगभग नहीं के बराबर है। बावजूद इसके राजेंद्र राठौड़ बिना किसी लालच के अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं।
विधानसभा में आज की तारीख में राजेंद्र राठौड़ के बराबर के राजनीतिक कद के मुश्किल से 3 या 4 सदस्य हैं, इसके बावजूद राजेंद्र राठौड़ को भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं माना जा रहा है। इसके पीछे के तमाम कारण हैं, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजेंद्र राठौड़ का सियासी जन्म 1990 के दौरान बीजेपी के बजाए जनता दल से हुआ था, जिसके कारण वह सीएम की रेस से बाहर हो जाते हैं, लेकिन यह कहना भी अपवाद ही है, क्योंकि इस साल के शुरुआत में बीजेपी की ओर से आसाम का मुख्यमंत्री ऐसे व्यक्ति को बनाया गया है, जो 5 साल पहले तक कांग्रेस के नेता थे।
ऐसे में राजस्थान में भी यदि अवसर आया तो राजेंद्र राठौड़ मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। वैसे तो राजस्थान में जाट और राजपूत समुदाय के बीच हमेशा से ही टकराव बताया जाता रहा है लेकिन यह भी एक बहुत बड़ा अपवाद ही है कि राजेंद्र राठौड़ जहां से 7 बार चुनाव जीत चुके हैं, वह विधानसभा क्षेत्र जाट बाहुल्य है।
कहा जाता है कि जाट समाज में राजेंद्र राठौड़ की ठीक वैसी ही पेठ है, जैसी अपने खुद के समाज में है। राजेंद्र राठौड़ के निवास पर सुबह-सुबह विधानसभा क्षेत्र से आए हुए लोगों को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राठौड़ के ऊपर जाट समाज का विरोधी होने का ठप्पा क्यों नहीं लगा। राजेंद्र राठौड़ सुबह अपने निवास पर जनता दरबार लगाते हैं, जिसमें बिना किसी जाति-बिरादरी के भेदभाव क्षेत्र की जनता का खूब काम करते हैं। भैरोंसिंह शेखावत की सरकार से लेकर वसुंधरा राजे की दोनों सरकारों में मंत्री रहे राजेंद्र राठौड़ इन दिनों पार्टी अध्यक्ष सतीश पूनिया के बेहद करीबी बताए जाते हैं। इसके साथ ही विधानसभा के भीतर और बाहर कांग्रेस पार्टी के नेताओं द्वारा उनको उपनेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की चुटकी भी ली जाती है,
लेकिन राजेंद्र राठौड़ जानते हैं कि नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के होते हुए उनको नेता प्रतिपक्ष बनने की कोई जल्दबाजी नहीं है। यह बात सही है कि विधानसभा के भीतर और विधानसभा के बाहर भी कांग्रेस पार्टी को जवाब देने में राजेंद्र राठौड़ भाजपा के अन्य नेताओं से आगे रहते हैं, लेकिन बावजूद इसके कभी भी राजेंद्र राठौड़ ने खुद को नेता प्रतिपक्ष बनाने या मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल करने की कोशिश नहीं की, जो उनके पार्टी के प्रति समर्पण और व्यक्तिगत सहजता को दर्शाता है। अपने विधानसभा क्षेत्र में जबरदस्त पकड़ और सदन के भीतर व बाहर हमेशा सक्रिय रहने वाले राजेंद्र राठौड़ 2023 के चुनाव में जीत हासिल करेंगे, इसमें तो किसी प्रकार का कोई दोराय नहीं है,
लेकिन पार्टी के द्वारा अगर सबसे सक्रिय नेताओं में से मुख्यमंत्री चुनने का मन बनाया गया, तो हो सकता है राजेंद्र राठौड़ 2023 के बाद राज्य की कमान भी संभाल लें। राठौड़ के सियासी सफर की बात करें तो काफी रोचक और बेहद सफल कहा जा सकता है। जब 27 फरवरी 1990 को राजस्थान विधानसभा के चुनाव का परिणाम आया, तब कांग्रेस पार्टी को भयानक नुकसान हुआ और तत्कालीन नेता भैरोंसिंह शेखावत की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी ने 46 सीटों के उछाल के साथ 85 सीटों पर जीत दर्ज की। इस चुनाव में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात जनता दल के लिए रही, जिसको 45 सीटों के फायदे के साथ 55 सीटों पर जीत हासिल हुई।
चुनाव के बाद राजस्थान विधानसभा त्रिशंकु हो गई, लेकिन भैरों सिंह शेखावत के चमत्कारिक नेतृत्व में जनता दल के विधायक टूटकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। इनमें अगुआ विधायक थे चुरू से जीत कर आए राजेंद्र सिंह राठौड़। राजेंद्र सिंह राठौड़ राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रह चुके थे और इसी दरमियान एक सती कांड को लेकर राजेंद्र राठौड़ का नाम चर्चा में आया था। जनता दल के द्वारा 1990 के विधानसभा चुनाव में राजेंद्र राठौड़ को टिकट दिया गया। वह पहली बार चुनाव जीते, लेकिन राज्य विधानसभा त्रिशंकु होने के कारण उनकी अगुवाई में जनता दल के कई विधायकों ने पार्टी बदलते हुए भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था।
इसके बाद 1993 के मध्यावधि उपचुनाव हुआ, जिसमें भैरोंसिंह शेखावत की अगुवाई में एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी बहुमत के बेहद करीब जाकर रह गई। राजेंद्र राठौड़ ने 1993 का चुनाव भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर लड़ा था। लगातार दूसरी बार राठौड़ विधानसभा पहुंचे इस बार उनको भैरों सिंह शेखावत की सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया। राजेंद्र राठौड़ ने 1993 से लेकर 1998 तक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के राज्य मंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया।
इसके बाद 1998 में अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार बनी। वर्ष 2003 में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया और इस इस बार राजेंद्र राठौड़ को पीडब्ल्यूडी विभाग का मंत्री बनाया गया। राजेंद्र राठौड़ साल 2003 से लेकर 2008 तक लगातार पांच बरस तक पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर रहे, लेकिन साल 2008 में एक बार फिर से कांग्रेसी सरकार बनी। सरकार रही या ना रही, किन्तु राजेंद्र राठौड़ चूरू से चुनाव जीतते रहे। वर्ष 2013 में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में दूसरी बार भाजपा ने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई और राजेंद्र राठौड़ का प्रमोशन हुआ। उनको स्वास्थ्य विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया, लेकिन 2016 में उनको मेडिकल डिपार्टमेंट से हटाकर ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री का जिम्मा सौंपा दिया गया।
इसके बाद साल 2018 में वसुंधरा राजे की सरकार सत्ता से बाहर हो गई, लेकिन राजेंद्र राठौड़ चूरू से सातवीं बाहर विधायक चुने गए। आज की तारीख में राजेंद्र राठौड़ भाजपा की तरफ से विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष हैं, और ऐसे वक्त पर हर बार राजेंद्र राठौड़ भाजपा के संकटमोचक होते हैं, जब भी सरकार की तरफ से हमला किया जाता है।
सियासी भारत के लिए एडिटर रामगोपाल जाट की रिपोर्ट
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