Siyasibharat:
1. भाजपा के नेता रोहिताश शर्मा को संगठन की ओर से मिले नोटिस के सियासी मायने क्या हैं?
2. पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत के चंगू-मंगू की दोस्ती में आई दरार!
3. भाजपा के खेमेबाजी भी खुलकर आई सामने।
राजनीति में अगर "दोस्त दोस्त ना रहा और दुश्मन दुश्मन ना रहा" वाले जुमले को सदाबहार जुमला कह दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
मतलब सियासत में आया राम गया राम तो चलता ही रहता है और उससे ज्यादा अपनी पार्टी के बीच खेमेबाजी के दौरान समय के साथ लोग अपना पाला बदलते रहते हैं, अपनी निष्ठा और अपना नेता बदलते हैं। कई नेता तो ऐसे हैं, जिनको देखकर एक बार तो बहरूपिया भी शर्मा जाए।
जहां राजस्थान में एक तरफ सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच सियासी रस्साकशी बीते 1 बरस में लगातार जारी है। तो भाजपा में भी अब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पार्टी अध्यक्ष सतीश पूनियां के रूप में दो फाड़ दिखाई दे रही है।
एक खेमें में संगठन और सतीश पूनिया नजर आ रहे है, तो दूसरे खेमे में वसुंधरा राजे सिंधिया और उसके सिपहसालार लगातार सतीश पूनियां पर बयानबाजी कर रहे हैं।
दरअसल, वसुंधरा राजे के पक्ष में और संगठन के खिलाफ बयानबाजी करने के बाद पूर्व मंत्री रोहिताश्व शर्मा को भाजपा राजस्थान संगठन की ओर से नोटिस जारी कर दिया गया है, जिसका जवाब 15 दिन में देना होगा।
उम्मीद थी कि नोटिस के बाद यह सियासी घटनाक्रम धीमा पड़ जाएगा, लेकिन मामला एकदम उल्टा पड़ गया है। इसी बयानबाजी की सूची में प्रताप सिंह सिंघवी से लेकर प्रहलाद गुंजल, भवानी सिंह राजावत जैसे नाम शुमार हैं।
हालांकि, संगठन की ओर से इन लोगों को अभी तक कोई नोटिस जारी नहीं हुआ है। कई सियासी जानकारों का मानना है कि रोहिताश्व शर्मा के खिलाफ संगठन के पास अनुशासनहीनता के कुछ पुख्ता प्रमाण हैं, जिसके चलते नोटिस देने वाला कदम उठाया गया है।
वह इस प्रकरण में सतीश पूनियां से मीडिया में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने साफ कहा है कि "मैं आज संगठन में हूं कल रहूं या ना रहूं, संगठन सर्वोपरि है", साथ ही उन्होंने कहा शिशुपाल के 99 पाप माफ किए जा सकते हैं, पर 100वां नहीं।
मतलब बेहद साफ और स्पष्ट है कि कोई अगर अपने आप को संगठन से उपर समझेगा तो उसपर संगठन कड़ी कार्रवाई करेगा। पार्टी अब राजे समर्थकों को गलतियों के बाद नजरअंदाज करने के मूड में बिल्कुल नहीं है।
इस मामले ने तूल पकड़ लिया है। सोशल मीडिया पर सतीश पूनिया का 22 साल पुराना युवा मोर्चा भाजपा राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष पद से 1999 में दिया गया इस्तीफे वाला लेटर वायरल हो गया है।
यह मामला यहीं नहीं रुका, आज रोहिताश्व शर्मा और राजेंद्र सिंह राठौड़ ने एक दूसरे पर तंज कसे हैं, रोहिताश ने कहा राजनीति में अक्सर लोग बदल जाते हैं, कल तक कुछ लोग भस्मासुर थे, आज वह वैद्य बनकर मरहम पट्टी लगा रहे हैं।
तो राजेंद्र राठौड़ भी पीछे नहीं रहे, उन्होंने कहा मैं दोस्ती का धर्म याद दिला रहा हूं, पार्टी के प्रति निष्ठा ही सब कुछ है। रोहिताश मेरे दोस्त हैं, उन्हें समझा रहा हूं कि उचित मंच पर ही अपनी बात या पीड़ा जाहिर करें।
आपको बता दें इन दोनों दिग्गज नेताओं के बीच व्यंग्यात्मक शैली में की गई बातचीत इनकी बरसों पुरानी चंगू मंगू वाली दोस्ती पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
दरअसल, भैरों सिंह शेखावत की 1993 से 1998 वाली सरकार में रोहिताश्व शर्मा को यातायात मंत्री बनाया गया था, तो राजेंद्र राठौड़ को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्रालय मिला था। आज के इन दोनों दिग्गज नेताओं को प्यार से बाबोसा तब चंगू मंगू की जोड़ी कहते थे।
गौरतलब है कि राजेंद्र राठौड़ अब तक 7 बार विधायक बन विधानसभा पहुंचे हैं तो उम्र में उनसे बड़े रोहिताश शर्मा केवल 3 बार ही विधानसभा पहुंच सके हैं।
हालांकि, शर्मा ने एक समय दौसा लोकसभा सीट पर राजेश पायलट को कड़ी टक्कर देकर सुर्खियां बटोरी थी। उस लोकसभा चुनाव में रोहिताश शर्मा राजेश पायलट से सिर्फ 5000 वोटों से चुनाव हारे थे।
कहते हैं सियासत में ना तो स्थाई दोस्त होता है और ना ही दुश्मन, वक्त के साथ और सियासी समीकरणों के साथ दुश्मन और दोस्त बदलते रहते हैं।
सियासी जानकार तो यहां तक कहते हैं कि 22 साल पहले सतीश पूनिया के भस्मासुर की उपाधि पाने वाले राजेंद्र राठौड़ आजकल खत्म खास नजर आ रहे हैं, तो वसुंधरा राजे सरकार के दौरान नंबर दो माने जाने वाले राजेंद्र राठौड़ कभी राजे के एकदम खासम खास थे, लेकिन अब राठौड़ उनसे अदावत कर चुके हैं।
मतलब राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस दोनों में गुटबाजी है और लगातार अपने अपने नेताओं को मजबूत बताने के लिए बयानबाजी जारी है। हालांकि, सबकुछ तो 2023 के विधानसभा के नतीजों पर ही टिका है, उससे पहले कई तरीके की बातें, बयानबाजी और रिश्ते बनते बिगड़ते चलते रहने वाले हैं।
इस पूरी लड़ाई में जिस व्यक्ति को सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है, वह हैं पार्टी के अध्यक्ष सतीश पूनिया और जिस नेता को सर्वाधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है, वह हैं पांच बार की सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजस्थान में दो बार मुख्यमंत्री रही वसुंधरा राजे।
क्योंकि किसान परिवार से निकलकर अपने 40 साल के संघर्ष के बाद आज सतीश पूनियां पहली बार के विधायक हैं, पार्टी के मुखिया हैं और उनका मुकाबला राज परिवार से निकलकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने वालीं वसुंधरा राजे से हैं।
ऐसे में सतीश पूनिया के पास खोने को कुछ भी नहीं है तो दूसरी तरफ वसुंधरा राजे इस सियासी युद्ध मे अपनी राजनीतिक पारी का संभवत सबसे आखरी और सबसे बड़ा दांव खेल रही हैं।
सियासी भारत के लिए रामकिशन गुर्जर की रिपोर्ट
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