राम गोपाल जाट
1.क्या 2022 चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राह में जेडीयू और मुकेश साहनी बनेंगे रोड़ा?
2.क्या 2022 के यूपी चुनाव में एनडीए में दिखेगी दरार?
3.बिहार के 'सन ऑफ मल्लाह' ने यूपी के अखबारों में फुल पेज विज्ञापन दिया, इसके सियासी मायने क्या हैं?
कहते हैं दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है। 2022 के शुरुआत में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी के लिहाज से 2022 का विधानसभा चुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल माना जा रहा है।
बहरहाल, योगी आदित्यनाथ की कोशिश होगी कि भाजपा के सहयोगी पार्टियों और जातियों में फूट ना हो, ताकि एक बार फिर से यूपी में कमल खिल सके। लेकिन हाल के दिनों में यूपी चुनाव को देखते हुए एनडीए के कुछ घटक दलों ने सियासी उठापटक और राजनीतिक मैसेज देने की कोशिशें शुरू कर दी है।
जहां बिहार में जेडीयू के साथ भाजपा का एलाइंस है, लेकिन माना यह जा रहा है कि जिस तरीके से जेडीयू के नेता बयानबाजी कर रहे हैं, संगठन और पार्टी के विस्तार के लिए यूपी को वह एक नये सियासी मैदान के तौर पर देख रहे हैं।
जेडीयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा था उत्तर प्रदेश में हम पहले भी एनडीए का हिस्सा रहे हैं, वहां हमारे विधायक, सांसद और मंत्री रहे हैं।
साल 2017 के चुनाव में हम पूरी तरह से तैयार थे, लेकिन पार्टी में सर्व सहमति के बाद हमने नहीं लड़ने का निर्णय लिया था, जिसका फायदा बीजेपी को मिला था। लेकिन केसी त्यागी के सुर इस बार बदले बदले नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा मैंने योगी आदित्यनाथ से बात की है।
उन्होंने कहा है कि नीतीश कुमार पिछड़े समाज में लोकप्रियता का इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर भाजपा से बात नहीं बनती है तो हम अकेले चुनाव में जा सकते हैं। बिहार में रहते हुए भी पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में अलग चुनाव लड़ चुके हैं।
लेकिन जेडीयू के बाद अब चिंता का विषय भाजपा के लिए विकासशील इंसान पार्टी वीआईपी के मुकेश साहनी नजर आ रहे हैं। आपको बता दें शुक्रवार को मुकेश सहनी में उत्तर प्रदेश के हर बड़े अखबार में फुल पेज विज्ञापन दिया है। मतलब बेहद साफ है कि जेडीयू के बाद विकासशील इंसान पार्टी वीआईपी भी यूपी में अपनी सियासी जमीन तलाश रही है।
अगर 2017 के विधानसभा चुनाव के इतिहास को एक बार अलग रख दें तो यूपी का इतिहास विकास के बजाय जातिवाद पर केंद्रित रहा है। ऐसे में जातीय समीकरण के लिहाज से मुकेश सहनी कि निषाद, यानि मल्लाह जाति से आते हैं तो वहीं सीएम नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं।
जिसका पूर्वांचल के इलाके में अच्छी खासी आबादी हैं। ऐसे में जीत हार के समीकरण को बड़े स्तर पर प्रभावित करते हैं। तकरीबन 100 सीटों पर इन जातियों का खासा प्रभाव माना जाता है।
सियासी जानकारों का मानना है अगर बीजेपी के घटक दल और भाजपा समर्थित जातियां अगर अलग-अलग होती रही तो 2022 में भाजपा के लिए यूपी की सत्ता में वापसी करना मुश्किल हो जाएगा।
सियासी भारत के लिए रामकिशन गुर्जर की रिपोर्ट
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